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________________ संस्कृत नाटक] ( ६१७ ) [संस्कृत नाटक उसे नर्तकी के रूप में वर्णित किया गया है। विद्वानों ने भारतीय नाटक का बीज वेदकालीन नृत्य में ही माना है। नाटक के प्रमुख दो तत्वों-संवाद एवं अभिनयकी स्थिति पाश्चात्य विद्वानों ने भी वैदिक साहित्य में स्वीकार की है। वैदिक युग में संगीत का भी अतिशय विकास हो चुका था और सामवेद तो इसके लिए प्रसिद्ध ही था। ऋग्वेद में ऐसी नतंकियों का उल्लेख प्राप्त होता है, जो सुन्दर वस्त्राभरण से सुसज्जित होकर नवयुवकों के चित्त को आत्कृष्ट करती हैं। अथर्ववेद में नाचने-गाने के भी सकेत हैं । इन विवरणों के द्वारा हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बैदिक युग में नाव्यात्मक अभिनय का सम्यक् प्रचार था। लेबी, मैक्समूलर एवं हतल प्रभृति विद्वान् भी इस तथ्य का समर्थन करते हैं। यजुर्वेद में 'शैलुष' का प्रयोग हुआ है। इस प्रकार हम देखते हैं कि वैदिक काल में नाटक के प्रमुख उपकरणों-नृत्य, संगीत, अभिनय एवं संवाद--का पूर्ण विकास हो चुका था। रामायण एवं महाभारत में भी नाटक के कई उपकरणों का उल्लेख है। रामायण के अनेक प्रसङ्गों में 'शैलूष', 'नट' एवं 'नत्तक' का उल्लेख किया गया है। वाल्मीकि ने कहा है कि जिस जनपद में राजा नहीं रहता वहां नट एवं नत्तंक सुखी नहीं रहतेनाराजके जनपदे प्रहृष्टनटनतंकाः । रामायण २१६७११५ । महाभारत में ऐसे विवरण प्राप्त होते हैं-आनश्चि तथा सर्वे नटनतंकगायिकाः। वनपर्व १५॥१३ । हरिवंश पुरण जो महाभारत का एक अंश है, में रामायण की कथा को नाटक के रूप में प्रदर्शित करने का वर्णन प्राप्त होता है। पाणिनि की अष्टाध्यायी में शिलालि एवं कृशाश्व द्वारा रचित नटसूत्रों का भी वर्णन है-पाराशर्यशिलालिभ्यां भिक्षुनटसूत्रयोः । ४।३।१२० । कर्ममन्दकृशाश्वादिनिः ४।३।१११ । इससे ज्ञात होता है कि पाणिनि के पूर्व नाटकों का इतना विकास हो चुका था कि उनके नियमन के लिए नटसूत्रों के निर्माण की आवश्यकता हो गयी थी। पतंजलि के महाभाष्य में कंसवध एवं बलिबन्ध नामक दो नाटकों का उल्लेख मिलता है तथा नाटक करनेवाले नट 'शोभानिक' एवं 'अथास्तभिक' शब्द से संबोधित किये गए हैं। वात्स्यायन कामसूत्र एवं चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी कुशीलवों का उल्लेख है जो नागरकों के मनोरंजनाथं अभिनय किया करते थे। पक्षस्य मासस्य वा प्रज्ञातेऽहनि सरस्वत्या भवने नियुक्तानां नित्यं समाजः । कुशीलवाश्चागन्तवः प्रेक्षकमेषां दद्यु:-कामसूत्र । इस प्रकार वैदिककाल से लेकर ईसापूर्व द्वितीय शताब्दी तक नाटकों के प्रचलन एवं नटों की शिक्षा के लिए रचे गये ग्रंथों के उल्लेख प्राप्त होते हैं, जिससे भारतीय नाट्य साहित्य की प्राचीनता का ज्ञान होता है। ई०पू० प्रथम शताब्दी में कालिदास ने नाटकों की रचना की थी। ___ भारत में नाट्यकला की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानों के अनेक मतवाद प्रचलित हैं। डॉ. रिजवे ने भारतीय नाटकों की उत्पत्ति का स्रोत 'वीरपूजा' में माना है ( दे० ड्रामा एण्ड ड्रामेटिक डान्सेज ऑफ नॉन यूरोपीयम रेसेज)। पर यूरोपीय विद्वानों ने ही इस मत को अमान्य ठहरा दिया है। डॉ० कीप के अनुसार प्राकृतिक परिवर्तनों को जनता के समक्ष मूर्त रूप से प्रदर्शित करने की अभिलाषा में ही नाटकों की उत्पत्ति का स्रोत विद्यमान है। पर यह सिद्धान्त इस आधार पर खटित हो पाता है कि
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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