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आर्यदेव]
[ आर्यभट्ट प्रथम Ammarrammarnamammarrinaamdimaxammar गोचर होता है। काल का व्यावहारिक रूप अनेक है जो मुहूर्त, दिवारात्र, पक्ष, मास आदि के रूप में एकाकार हुआ करता है
नदीव प्रभवात् काश्चिद् अक्षप्यात् स्यन्दते यथा ।
तां नद्योऽभिसमायान्ति सोरुः सती न निवर्तते ।। तैत्तिरीय आरण्यक १२ आरण्यकों का आध्यात्मिक तत्त्व उपनिषदों के तत्त्वचिंतन का पूर्व रूप है, जिसका पूर्ण विकास उपनिषदों में दिखाई पड़ता है। प्रत्येक वेद के पृथक्-पृथक् आरण्यक हैं जिनका विवरण दिया गया है। 'ऋग्वेद' के दो आरण्यक हैं-'ऐतरेय आरण्यक' एवं शाङ्खायन आरण्यक । 'अथर्ववेद' का कोई आरण्यक प्राप्त नहीं होता। 'सामवेद' के आरण्यक का नाम 'तलवकार' है ।।
आधारग्रन्थ --वैदिक साहित्य और संस्कृति-आ० बलदेव उपाध्याय ।
आर्यदेव-बौद्ध-दर्शन के माध्यमिक मत के आचार्यों में आर्यदेव का नाम महत्त्वपूर्ण है। (दे० बोद्धदर्शन ) इनका समय २०० से २२४ ई. के बीच है। चन्द्रकीति नामक विद्वान् के अनुसार ये सिंहल द्वीप के नृपति के पुत्र थे। इन्होंने अपने अपार वैभव का त्याग कर नागार्जुन का शिष्यत्व ग्रहण किया था। शून्यवाद के आचार्यों में इनका स्थान है। वुस्तोन नामक विद्वान् के अनुसार इनको रचनाओं को संख्या दस है।
१. चतुःशतक-इसमें १६ अध्याय एवं चार सो कारिकाएँ हैं। इसका चोना अनुवाद ह्वेनसांग ने किया था। इसका कुछ अंश संस्कृत में भी प्राप्त हाता है । इसमें शून्यवाद का प्रतिपादन है।
२. चित्तविशुद्धिप्रकरण-विद्वानों ने इसे किसी नवीन आर्यदेव को रचना मानी है । इसमें ब्राह्मणों के कर्मकाण्ड का खण्डन तथा तान्त्रिक बातों का समावेश किया गया है। वार एवं राशियों के नाम प्राप्त होने से इसे आर्यदेव की रचना होने में सन्देह प्रकट किया गया है।
३ हस्तलाघवप्रकरण -इसका नाम 'मुष्टिप्रकरण' भी है। इसका अनुवाद चीनो एवं तिब्बती भाषा में प्राप्त होता है और उन्हों के आधार पर इसका संस्कृत में अनुवाद प्रकाशित किया गया है। यह ग्रन्थ कुल ६ कारिकाओं का है जिनमें ५ कारिकाएं जगत् के मायिक रूप का विवरण प्रस्तुत करतो हैं ओर अन्तिम कारिका में परमार्थ का विवेचन है । इस पर दिङ्नाग ने टीका लिखी है ।
४. अन्य ग्रन्थों के नाम हैं-स्वलितप्रमथनयुक्ति हेतु सिद्धि, ज्ञानसारसमुच्चय, चर्यानेलायनप्रदीप, चतुःपीठ तन्त्रराज, चतुःपीठ साधन, ज्ञान डाकिनी साधन एवं एक. द्रुमपत्रिका । चतुःशतक इनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। आधारग्रन्थ-१ बौद्ध-दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय ।
२-भारतीय दर्शन- , , आर्यभट्ट प्रथम-ज्योतिषशास्त्र के महान् आचार्य। भारतीय ज्योतिष का क्रमबद्ध इतिहास आर्यभट्ट से ही प्रारम्भ होता है। इनके ग्रन्थ का नाम 'आर्यभटीय' है । आर्यभट्ट ( प्रथम ) का जन्म-काल ४७६ ई० है। इन्होंने 'तन्त्र' नामक ग्रन्थ की