SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचाय पण्डितराज जगन्नाथ ] ( ४५ ) [आनन्दवर्द्धन कविगता केवल प्रतिभा । इनके अनुसार काव्य के चार भेद हैं-उत्तमोत्तम, उत्तम, मध्यम तथा अधम । रस, ध्वनि, गुण तथा अलंकार के विवेचन में भी पण्डितराज ने अनेक नवीन तथ्य प्रस्तुत कर अपनी मौलिकता का निदर्शन किया है। इन्होंने अद्वैतवेदान्तदर्शन के आधार पर रस-मीमांसा प्रस्तुत की। 'आत्मा पर अज्ञान का आवरण है। काव्य के प्रभाव से वह दूर हो जाता है। केवल रत्यादि का आवरण शेष रह जाता है। आत्मा के प्रकाश में वह आवरण भी प्रकाशित हो उठता है। इस प्रकार सहृदय रत्यादि से युक्त अपने ही आत्मा का आनन्द अनुभव करता है। यही काव्यरस है।' रसगंगाधर का काव्यशास्त्रीय अध्ययन पृ० २१९ से उद्धृत । इन्होंने गुण को द्रुत्यादि-प्रयोजकत्व के रूप में ग्रहण कर उसका सम्बन्ध वर्ण एवं रचना से स्थापित किया है । 'वे वर्ण एवं रचना का सीधा गुणाभिव्यन्जन मानते हैं, रसाभिव्यंजन की मध्यस्था के साथ नहीं।' अलंकारों का आधार शब्दशक्तियों को सिद्ध कर पण्डितराज ने संस्कृत काव्यशास्त्र के विवेचन में नवीन दृष्टिकोण उपस्थित किया है। ___आधार ग्रन्थ-क. रसगङ्गाधर का काव्यशास्त्रीय अव्ययन-डॉ० प्रेमस्वरूप गुप्त ख. रसगंगाधर (हिन्दी अनुवाद ३ खण्डों में)-पं० पुरुषोत्तम शर्मा चतुर्वेदी ग. रसगंगाधर (हिन्दी अनुवाद ३ खण्डों में)-पं. मदनमोहन झा घ. रसगंगाधर-हिन्दी अनुवादमधुसूदनशास्त्री। आनन्दवर्द्धन-प्रसिद्ध काव्यशास्त्री एवं ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तक (दे० काव्य शास्त्र)। ये संस्कृत काव्यशास्त्र के विलक्षण प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति हैं और ध्वन्यालोक अपने विषय का असाधारण ग्रन्थ है। ये काश्मीर के निवासी थे और इनका समय नवम शताब्दी है। 'राजतरंगिणी' में ये काश्मीरनरेश अवन्तिवर्मा के समकालीन माने गए हैं मुक्ताकणः शिवस्वामी कविरानन्दवर्धनः । प्रथां रत्नाकरश्चागात् साम्राज्येऽवन्तिवर्मणः ।। ५२४ अवन्ति वर्मा का समय ८५५ से ८८४ ई. तक माना जाता है, अतः आनन्दवर्धन का भी यही समय होना चाहिए। इनके द्वारा रचित पांच ग्रन्थों का विवरण प्राप्त होता है-'विषमबाणलीला', 'अर्जुनचरित', 'देवीशतक', 'तत्त्वालोक', एवं 'ध्वन्यालोक'। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'ध्वन्यालोक' ही है जिसमें ध्वनिसिद्धान्त का विवेचन किया गया है और अन्य सभी काव्यशास्त्रीय मतों का अन्तर्भाव उसी में कर दिया गया है। 'देवीशतक' नामक ग्रन्थ में इन्होंने अपने पिता का नाम 'नोण' दिया है ( देवीशतक श्लोक ११०) हेमचन्द्र के 'काव्यानुशासन' में भी इनके पिता का यही नाम आया है-काव्यानुशासन पृ० २२५। इन्होंने प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक धर्मकीत्ति के ग्रन्थ' 'प्रमाणविनिश्चय' पर 'धर्मोत्तमा' नामक टीका की भी रचना की है। ध्वन्यालोक' की रचना कारिका एवं वृत्ति में हुई है। कतिपय विद्वान् इस मत के हैं कि दोनों के ही रचयिता आनन्दवर्द्धन थे पर कई पण्डितों का यह विचार है कि कारिकाएं ध्वनिकार की रची हुई हैं जो आनन्दवर्द्धन के पूर्ववर्ती थे और आनन्दवर्टन
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy