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________________ वेदान्त देशिक ] ( ५३८ ) [ वेबर शारीरक भाष्य की टीका 'भावप्रकाशिका', ब्रह्मसिद्धि की टीका 'अभिप्राय प्रकाशिका' तथा 'नैष्कम्यं सिद्धि' की टीका 'भावतत्त्वप्रकाशिका' । माधवाचार्य ने 'पंचदशी' नामक असाधारण ग्रन्थ लिखा है । मधुसूदन सरस्वती की 'अद्वैत सिद्धि' नामक पुस्तक वेदान्तविषयक श्रेष्ठ ग्रन्थ है । धर्मराजाध्वरीन्द्र कृत 'वेदान्त परिभाषा' अपने विषय की अत्यन्त लोकप्रिय रचना है जो वेदान्त प्रामाण्यशास्त्र पर लिखी गयी है । सदानन्द कृत 'वेदान्तसार' ( १६ वीं शताब्दी ) में वेदान्त के सभी सिद्धान्त पर प्रारम्भिक ज्ञान के रूप में वर्णित है । यह अत्यन्त लोकप्रिय पुस्तक है । आधारग्रन्थ - १. भारतीयदर्शन - पं० बलदेव उपाध्याय । २. भारतीयदर्शन - चटर्जी और दत्त ( हिन्दी अनुवाद ) । ३ षड्दर्शन रहस्य - पं० रंगनाथ पाठक । ४. भारतीय ईश्वरवाद - डॉ० रामावतार शर्मा । ५. दर्शन-संग्रह - डॉ० दीवानचन्द, अन्य टीका ग्रन्थ — ६. ब्रह्मसूत्र - ( हिन्दी भाष्य ) - गीता प्रेस, गोरखपुर । ७. हिन्दी ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य । ( चतुःसूत्री ) - व्याख्याता आ० विश्वेश्वर ( चौखम्बा प्रकाशन) । ८. हिन्दी ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य - व्याख्याता स्वामी हनुमान प्रसाद ( चौखम्बा प्रकाशन) । ९. वेदान्त परिभाषा - ( हिन्दी अनुवाद ) चौखम्बा प्रकाशन । १०. वेदान्तसार ( हिन्दी टीका ) चौखम्बा प्रकाशन । ११. वेदान्त दर्शन - श्रीराम शर्मा ( ब्रह्मसूत्र का हिन्दी अनुवाद ) । १२. खण्डनखण्डखाद्य - - ( हिन्दी अनुवाद) अनुवादक - स्वामी हनुमान प्रसाद ( चौखम्बा प्रकाशन ) । वेदान्तदेशिक - [ समय १२५० से १३५० ई० के मध्य ] इन्होंने 'यादवाभ्युदय' नामक महाकाव्य की रचना की है जिसमें श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन किया गया है । इस महाकाव्य में हृदयपक्ष गौण एवं बुद्धिपक्ष प्रधान है । इन्होंने 'हंसदूत' नामक सन्देश काथ्य भी लिखा है [ दे० हंसदूत ] । वेबर - जर्मनी निवासी संस्कृत के विद्वान् । इनका जन्म १८२५ ई० में हुआ था । इन्होंने बर्लिन (जर्मनी) के राजकीय पुस्तकालय में संस्कृत की हस्तलिखित पोथियों का बृहत् सूचीपत्र प्रस्तुत किया है । संस्कृत-साहित्य के अनुशीलन के लिए इस सूचीपत्र का अत्यधिक महत्व है । इन्होंने अत्यधिक परिश्रम के पश्चात् १८८२ ई० में भारतीय साहित्य के सर्वप्रथम इतिहास का प्रणयन किया । इनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है 'इंदिस्केन स्तदियन' जिसके निर्माण में लेखक ने जीवन के ३५ वर्ष लगाये हैं तथा यह ग्रन्थ १८५० से १६८५ के बीच अनवरत गति से लिखा जाता रहा है । यह महाग्रन्थ सत्रह भागों में समाप्त हुआ है। इस मनीषी के कार्यों एवं प्रतिभा से प्रभावित होकर अनेक यूरोपीय एवं अमेरिकी विद्वान् इसके शिष्य हुए और भारतीय विद्या- विशेषकर संस्कृत के अध्ययन में निरत हुए। वेबर वैदिक वाङ्मय के असाधारण विद्वान् थे । वेद-विवयक रचित इनके ग्रन्थों की सूची इस प्रकार है१ - शतपथ ब्राह्मण का सायण, हरिस्वामी एवं गङ्गाचार्य की टीकाओं के साथ सम्पादन, १८४४ । २ – यजुर्वेद की मैत्रायणी संहिता का सम्पादन, १८४७ । ३ - शुक्ल यजुर्वेद की कण्व संहिता का प्रकाशन, १८५२ । ४ – कात्यायन एवं श्रौतसूत्र
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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