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________________ वेणीसंहार [वेणीसंहार की थी कि वह तबतक अपनी वेणी नहीं बांधेगी जबकि उसके अपमान का बदला नहीं लिया जाता। कवि ने इसी घटना को नाटकीय रूप दिया है। इस नाटक में छह बंक हैं। प्रथम अंक-नान्दी के अनन्तर प्रस्तावना में सूत्राधार के द्वारा श्लिष्ट वचनों में पाण्डवों तथा कौरवों के बीच सन्धि कराने के लिए श्रीकृष्ण के आगमन की सूचना दी गयी है। सन्धि के प्रस्ताव को सुनकर भीम तथा द्रौपदी को अत्यधिक क्रोध होता है। वे अपने अपमान का प्रतीकार युद्ध द्वारा करना चाहते हैं, सन्धि से नहीं। भीम स्पष्टतः यह कह देते हैं कि बिना प्रतिशोध लिए मैं रह नहीं सकता और सन्धि का प्रस्ताव करने पर युधिष्ठिर से भी सम्बन्ध विच्छेद कर दूंगा। भीम को शान्त करने का सहदेव का प्रयत्न भी निष्फल सिद्ध होता है, और द्रोपदी अपने केशों को दिखाकर भीम के क्रोध को द्विगुणित कर देती है। भीम द्रौपदो को सान्त्वना देते हैं कि वे अपनी भुजाओं से गदा को घुमाते हुए दुर्योधन को जांघ तोड़ डालेंगे तथा उसके रक्तरन्जित हाथों से ही उसकी (द्रोपदी की ) वेणी बधिंगे। इस समय नेपथ्य से श्रीकृष्ण के असफल प्रयत्न को सूचना होती है और क्रुद्ध युधिष्ठिर रणघोषणा करते हैं। रण-घोषणा सुनते ही भीम एवं द्रोपदी उल्लसित होते हैं तथा भीम और सहदेव उमंग भरे चित्त से द्रोपदी से विदा लेकर रण-क्षेत्र की यात्रा करते हैं। द्वितीय अंक का प्रारम्भ दुर्योधन की पत्नी भानुमतो के अशुभ स्वप्न से होता है । वह रात्रि में देखे गए अमङ्गलजनक स्वप्न को अपनो सखियों से कह कर व्यथित हो जाती है और भावी आशंका की चिन्ता से उसके निवारण का उपाय जानना चाहती है। उसने देखा कि एक नकुल, सौ सौ का वध कर, उसके स्तनांशुक हरने के लिए प्रयत्न कर रहा है। दुर्योधन छिप कर इस घटना को सुनता है तथा माद्रोपुत्र नकुल एवं अपनी पत्नी के गुप्त प्रेम के प्रति संदेह होने से क्रोधित हो उठता है । पर सम्पूर्ण स्वप्न की घटना सुन कर उसके सन्देह का निराकरण हो जाता है। सखियां अमंगल के दोष को हटाने के लिए पूजा का विधान करती हैं। भानुमतो सूर्य को पूजा में रत होकर अपनी दासी से अयपात्र मांगती है, पर वह अन्यत्र व्यस्त होने के कारण नहीं आती, उसी समय स्वयं दुर्योधन अध्यंपात्र लेकर प्रवेश करता है । वह व्रत में संलग्न भानुमती के सोन्दयं की प्रशंसा करता है और उसके मना करने पर भी उसे आलिंगनपाश में जकड़ लेता है। इसी समय तीव्र शंशावात के षां जाने से भानुमती भयतीत होकर दुर्योधन से लिपट जाती है। झंझावात के शान्त होने पर जयद्रथ की माता एवं पत्नी ( दुर्योधन की बहिन ) आकर उसे सूचित करती हैं कि अभिमन्यु की मृत्यु से दुःखित होकर अर्जुन ने सूर्यास्त होने तक जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा की है, अतः आप उसकी रक्षा को व्यवस्था करें। दुर्योधन उमें साम्स्वना देकर; रथारूढ़ हो; संग्राम स्थल की ओर प्रस्थान करता है। तृतीय अंक के प्रवेशक में एक राक्षस एवं राक्षसी के वार्तालाप से भीषण युद्ध की सुचना प्राप्त होती है तथा यह भी जात होता है कि द्रोर्णाचार्य का वष हो पुका है। तत्पश्चात् पिता की मृत्यु से कुछ अश्वत्थामा का रंगमंच पर प्रवेश होता है ।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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