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________________ विष्णुपुराण] ( ५१३) [विष्णुपुराण १६-५९]। 'विष्णुधर्मोत्तरपुराण' के अष्टादश अध्याय में गीत, स्वर, ग्राम तथा मूर्छनाओं का वर्णन है जो गद्य में प्रस्तुत किया गया है। उन्नीसवां अध्याय भी गद्य में है जिसमें चार प्रकार के वाद्य, बीस मण्डल एवं प्रत्येक के दो प्रकार से दस-दस भेद तथा ३६ अङ्गहार वणित हैं। बीसवें अध्याय में अभिनय का वर्णन है। इस अध्याय में दूसरे के अनुकरण को नाट्य कहा गया है, जिसे नृत्त द्वारा संस्कार एवं शोभा प्रदान किया जाता है। ____ अध्याय २१-२३ तक शय्या, आसन एवं स्थानक का प्रतिपादन एवं २४-२५ में बांगिक अभिनय वर्णित है। २६ वें अध्याय में १३ प्रकार के संकेत तथा २७ वें में बाहार्याभिनय का प्रतिपादन है। आहार्याभिनय के चार प्रकार माने गए हैं-प्रस्त, बलंकार, अङ्गरचना एवं संजीव । २९ वें अध्याय में पात्रों की गति का वर्णन एवं ३० वें में २८ श्लोकों में रम-निरूपण है। ३१ में अध्याय में ५८ श्लोकों में ४९, भावों का वर्णन तथा ३२ वें में हस्तमुद्राओं का विवेचन है। ३३ वें अध्याय में नृत्यविषयक मुद्रायें १२४ श्लोकों में वर्णित हैं तथा ३४ वें अध्याय में नृत्य का वर्णन है। ३५ से ४३ तक चित्रकला, ४४-८५ तक मूर्ति एवं स्थापत्य कला का वर्णन है । विष्णुधर्मोत्तर के काव्यशास्त्रीय अंशों पर नाट्य शास्त्र का प्रभाव है, किन्तु रूपक और रसों के सम्बन्ध में कुछ अन्तर भी है। डॉ. काणे के अनुसार इसका समय पांचवीं शताब्दी के पूर्व का नहीं है। ___ आधारग्रन्थ-१. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत पोइटिक्स-म० म० काणे । २. उक्त ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद-मोतीलाल बनारसीदास। ३. सम कन्सेप्टस् ऑफ अलंकारशास्त्र-वी. राघवन् । ४. अलबेलनी का भारत-हिन्दी अनुवाद ( आदर्श पुस्तकालय)। विष्णुपुराण-यह क्रमानुसार तृतीय पुराण है। इस पुराण में विष्णु की महिमा का आख्यान करते हुए उन्हें एकमात्र सर्वोच्च देवता के रूप में उपस्थित किया गया है। यह पुराण छह खण्डों में विभक्त है, जिसमें कुल १२६ अध्याय एवं ६ सहस्र श्लोक हैं। इसकी श्लोक संख्या के सम्बन्ध में 'नारदीयपुराण' एवं 'मत्स्यपुराण' में मतैक्य नहीं है और प्रथम के अनुसार २४ हजार तथा द्वितीय के अनुसार इसकी श्लोकसंख्या २३ हजार मानी गयी है। इस पुराण की तीन टीकायें उपलब्ध होती हैंश्रीधरस्वामी कृत टीका, विष्णुचित्त कृत विष्णुचित्तीय तथा रत्नगर्भभट्टाचार्य कृत वैष्णवाकूत चन्द्रिका । इसके वक्ता एवं स्रोता पराशर और मैत्रेय हैं। विष्णुपुराण' के प्रथम अंश में सृष्टिवर्णन तथा ध्रुव और प्रहलाद का चरित्र वर्णित है तथा देवों, दैत्यों, वीरों एवं मनुष्यों की उत्पत्ति के साथ-ही-साथ अनेक काल्पनिक कथाओं का वर्णन है। द्वितीय अंश में भौगोलिक विवरण है जिसके अन्तर्गत सात द्वीपों, सात समुद्रों एवं सुमेरु पर्वत का कथन किया गया है। पृथ्वीवर्णन के अनन्तर पाताललोक का भी विवरण है तथा उसके नीचे स्थित नरकों का उल्लेख किया गया है । इसके बाद धुलोक का वर्णन है, जिसमें सूर्य, उनके रथ और घोड़े, उनकी गति एवं ग्रहों के साथ चन्द्रमा एवं चन्द्रमण्डल का वर्णन है। इसमें भारतवर्ष नाम के प्रसंग में राजा भरत की कथा कही गयी है। ३३ सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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