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________________ रावणार्जुनीयमहाकाव्य ] ( ४७७ ) [रुक्मिणीहरणम थीं तथा पटना कालिज के संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राच्यविभाग के प्राचार्य पद पर नियुक्त हुए थे। इन्होंने वैज्ञानिक विधि से सभी शास्त्रों का अध्ययन किया था। इनका देहान्त १९२९ ई० में हुआ। इन्होंने नाटक, गीत, काव्य, निबन्ध आदि के साथ-ही-साथ दर्शन (परमार्थ ) तथा संस्कृत विश्वकोश का भी प्रणयन किया है। इनके 'परमार्थ-दर्शन' की ख्याति सप्तम दर्शन के रूप में हुई है । १५ वर्ष की अवस्था में शर्मा जी ने 'धीरनैषध' नामक नाटक की रचना की थी जिसमें पद्य का बाहुल्य है। 'भारतगीतिका' (१९०४ ) तथा 'मुद्गरदूत' (१९१४ ) इनके काव्य ग्रन्थ हैं। 'मुद्गरदूत' (१४८२ श्लोक ) में 'मेघदूत' के आधार पर किसी व्यभिचारी मूखदेव का जीवन चित्रित किया गया है। इनका प्रसिद्ध पद्यबद्ध कोश 'वाङ्मयाणव' के नाम से ज्ञानमण्डल, वाराणसी से ( १९६७ ई०) प्रकाशित हुआ है । 'मुद्गरदूत' का प्रारम्भिक श्लोक-कि मे पुत्रैर्गुणनिधिरयं तात एवष पुत्रः शून्यध्यानैस्तदहमधुना वर्तये ब्रह्मचर्यम् । कश्चिन्मूखंश्चपलविधवा स्नानपूतोदकेषु स्वान्ते कुर्वन्निति समवसत्कामगिर्याश्रमेषु ॥ रावणार्जुनीयमहाकाव्य-इसके रचयिता भट्टभीम या भौमक है। यह संस्कृत के ऐसे महाकाव्यों में है जिनकी रचना व्याकरणिक प्रयोगों के आधार पर हुई है। इसकी रचना भट्टिकाव्य के अनुकरण पर हुई है [ दे० भट्टिकाव्य ] । इसमें रावण एवं कार्तवीयं अर्जुन के युद्ध का वर्णन है। कवि ने २७ सर्गों में 'अष्टाध्यायी' के क्रम से पदों का निदर्शन किया है। ज्ञेमेन्द्र के 'सुवृत्ततिलक' में (१४) इसका उल्लेख है, अतः भट्टभीम का समय ग्यारहवीं शताब्दी से पूर्व सिद्ध होता है । भट्टभीम काश्मीरक कवि थे। रुक्मिणीपरिणय चम्पू-इस चम्पूकाव्य के रचयिता अम्मल या अमलानन्द हैं। इनका समय चौदहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण है ।, इनके निवासस्थान आदि के सम्बन्ध में कोई निश्चत प्रमाण प्राप्त नहीं होता। अम्मल को अमलानन्द से अभिन्न माना गया है जो प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य थे। इन्होंने 'वेदान्तकल्पतरु' (भामती टीका की व्याख्या) शास्त्रदर्पण तथा पंचपादिका की व्याख्या नामक पुस्तकों का प्रणयन किया है। इस चम्पूकाव्य में रुक्मिणी के विवाह की कथा अत्यन्त प्रांजल भाषा में वर्णित है जिसका आधार 'हरिवंशपुराण' एवं श्रीमद्भागवत की तत्सम्बन्धी कथा है । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण मैसूर कैटलग संख्या २७० ___ आधारग्रन्थ-चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी। रुक्मिणीहरणम् महाकाव्य-यह बीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध महाकाव्यों में है। इसके रचयिता पं० काशीनाथ शर्मा द्विवेदी 'सुधीसुधानिधि' हैं। इनका निवासस्थान अस्सी ( वाराणसी) १२२२ है। इस महाकाव्य का प्रकाशन १९६६ ई० में हुआ है । इसमें 'श्रीमद्भागवत' की प्रसिद्ध कथा 'रुक्मिणीहरण' के आधार पर श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी के परिणय का वर्णन किया गया है। प्राचीन शास्त्रीय परिपाटी के अनुसार
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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