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________________ रामायणचम्पू ] ( ४७६ ) [ रामायणचम्पू उदात्तता, सौन्दर्य, नीति-विधान, राजधर्म, सामाजिक आदर्श आदि की सुखकर अभिव्यक्ति रामायण में है जिससे इसकी महाकाव्यात्मक गरिमा में वृद्धि हुई है । वस्तुव्यंजना, भावव्यंजना एवं शैली का सहज तथा अलंकृत रूप इसे महाकाव्य की उदात्त श्रेणी पर पहुँचाये बिना नहीं रहता । वाल्मीकि महाकाण्यात्मक कथानक के विस्तृत क्षेत्र के पूर्ण गीतात्मक और कवित्वमय रूप का वर्णन करने वाले प्रकृत कवि हैं । आधारग्रन्थ - १ - प्राचीन भारतीय साहित्य भाग १, खण्ड २ – विन्टरनित्स (हिन्दी अनुवाद), । २ - संस्कृत साहित्य का इतिहास – पं० बलदेव उपाध्याय । ३संस्कृत साहित्य का नवीन इतिहास - श्री कृष्ण चैतन्य (हिन्दी अनुवाद) । ४ -- -- संस्कृत साहित्य का इतिहास -- श्री वाचस्पति शास्त्री गैरोला । ५ – भारतीय संस्कृति — डॉ० देवराज । ६ - रामायण कोष- श्री रामकुमार राय । ७- रामकथा - फादर कामिल बुल्के । ८ - रामायणकालीन संस्कृति — डॉ० नानूराम व्यास । ९ - रामायणकालीन समाज · डी० नानूराम व्यास । १० – प्राचीन संस्कृत साहित्य की सांस्कृतिक भूमिकाडॉ० रामजी उपाध्याय । ११ - व्यास एण्ड वाल्मीकि - महर्षि अरविन्द ( अंगरेजी ) । १२ - रामायण ( हिन्दी अनुवाद सहित ) - गीता प्रेस, गोरखपुर । शमायण के कुछ प्रसिद्ध अनुवाद एवं अन्य ग्रन्थ १- दस रामायण ( जर्मन ) - याकोबी, बोन १८९३ ई० । २ – उबेर दस रामायण ( जर्मन ) - ए. ए. वेबर, १८७० ई० । ३ दि रिडड्ल ऑफ रामायण - सी. बी. वैद्य, बम्बई १९०६ ई० । ४ – लैटिन भाषा में अनुबाद - स्लेगल (१८२९ - ३८ ई० ) ( दो भागों में ) । ५ – अंगरेजी पद्यानुवाद आर. टी. एच. ग्रफिथ ५ भागों में । ६ - मन्मथनाथ द्वारा अंग्रेजी गद्यानुवादकलकत्ता १८९२-९४ई० । ७ - संक्षिप्त पद्यानुवाद - रमेशचन्द्र दत्त, लंडन १९०० ई० । ८ - इतालवी अनुवाद - जी० गोरेसियो ( १८४७ - ५८ ) । ९ - फ्रेंच अनुवाद - ए० रोसेल ( १९०३ - ११०९, पेरिस ) । १० – प्रथम काण्ड का जर्मन अनुवाद - जे० मनराड (१८९७) । ११ - कुछ अंशों का जर्मन अनुवाद - फ्रे० रूकटं । के रामायणचम्पू – इसके रचयिता धाराधिप परमारवंशी राजा भोज हैं (दे० भोज ) । इसकी रचना वाल्मीकि रामायण आधार पर हुई है। इसमें बालकाण्ड से सुन्दरकाण्ड तक की रचना भोज ने की है तथा अन्तिम युद्धकाण्ड लक्ष्मणसूरि द्वारा रचा गया है । इसमें वाल्मीकि रामायण का भावापहरण प्रचुर मात्रा में है तथा बालकाण्ड के अतिरिक्त शेष काण्डों का प्रारम्भ रामायण के ही श्लोकों से किया गया है । इसमें गद्यभाग संक्षिप्त एवं पद्य का बाहुल्य है । कवि ने स्वयं वाल्मीकि का आधार स्वीकार किया है - वाल्मीकिगीति रघुपुंगव की त्ति लेश स्तृप्ति करोमि कथमप्यधुना बुधानाम् । गंगाजलैर्भुवि भगीरथ यत्नलब्धः किं तर्पणं न विदधाति नरः पितृनाम् । १।४ आधारग्रन्थ – चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी रामावतार शर्मा ( महामहोपाध्याय ) - बीसवीं शताब्दी के असाधारण विद्वान् । इनका जन्म ६ मार्च १८७७ ई० में विहार के छपरा जिले में हुआ था । इन्होंने प्रथम श्रेणी में साहित्याचार्य एवं एम० ए० ( संस्कृत ) की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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