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________________ रामायण] ( ४७३ ) [रामायण शपथ लेना, भुतल से सिंहासन का प्रकट होना और सीता का रसातल प्रवेश, तापसधारी काल का ब्रह्मा का सन्देश लेकर राम के पास आना, दुर्वासा का आगमन एवं लक्ष्मण को शाप देना, लक्ष्मण की मृत्यु तथा सरयू तीर पर पधार कर राम का स्वर्गारोहण करना । रामायण के पाठ का फल-कथन । रामायण' के बालकाण्ड एवं उत्तरकाण्ड के सम्बन्ध में विद्वानों का मत है कि ये . प्रतिप्त अंश हैं। इस सम्बन्ध में यूरोपीय विद्वानों ने ही ऐसे विचार प्रकट किये हैं। उनके अनुसार बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड की रचना वास्तविक काव्य के बहुत बाद हुई। मूल ग्रन्थ की शैली एवं वर्णन-पद्धति के आधार पर भी दोनों काण्ड स्वतन्त्र रचना प्रतीत होते हैं। ___ बालकाण्ड के प्रारम्भ में रामायण की जो विषयसूची दी गयी है उसमें उत्तरकाण्ड का उल्लेख नहीं है। जर्मन विद्वान् याकोबी के अनुसार मूल रामायण में पांच ही काण्ड थे। लंकाकाण्ड के अन्त में अन्ध-समाप्ति के निर्देश प्राप्त हो जाते हैं जिससे ज्ञात होता है कि उत्तरकाण्ड आगे चल कर जोड़ा गया। उत्तरकाण्ड में कुछ ऐसे उपाख्यानों का वर्णन है जिनका कोई संकेत पूर्ववर्ती काण्डों में नहीं मिलता। विद्वानों का ऐसा विश्वास है कि 'रामायण' के प्रक्षिप्तांश 'महाभारत' के 'शतसाहस्री' रूप प्राप्त होने के पूर्व रचे जा चुके थे। "केवल पहले और सातवे काण्डों में हो राम को देवता, विष्णु का अवतार माना गया है । कुछ ऐसे प्रकरणों के अलावा जो निस्सन्देह प्रक्षिप्त हैं, दूसरे काण्ड से छठे काण्ड तक राम सर्वदा मनुष्य के रूप में आते हैं। महाकाव्य के सारे निर्विवाद रूप से असली भागों में राम के विष्णु अवतार होने का कोई भी संकेत नहीं मिलता। असली भागों में, जहां पुराण-कल्पना का सहारा लिया गया है, विष्णु को ही नहीं बल्कि वेदों की तरह इन्द्र को सबसे बड़ा देवता माना गया है।" विन्टरनित्स-प्राचीन भारतीय साहित्य, भाग १, खण्ड २, पृ० १६७-१६८ (हिन्दी अनुवाद )। ___'रामायण' का रचनाकाल बतलाने के लिए अभी तक कोई सर्वसम्मत प्रमाण उपस्थित नहीं हो सका है। प्रथम एवं सातवे काण्ड को आधार बनाते हुए मैकडोनल ने अपनी सम्मति दी है कि यह एक व्यक्ति की रचना नहीं है। उन्होंने 'रामायण' का अन्त्येष्टिकाल ५०० ई० पू० तथा उसमें किये गए प्रक्षेपों का समय २०० ई० पू० स्वीकार किया है । 'रामायण' के सामाजिक-चित्रण के आधार पर भारतीय विद्वान् इसका समय ५००ई० पू० मानते हैं। एक श्लेगल के अनुसार रामायण की रचना ११००ई० पू० हुई थी। जी० गोरेसियो के अनुसार १२०० ई० पू० तथा ह्वीलर एवं वेबर के अनुसार इस पर बौद्धमत का प्रभाव होने के कारण इसकी रचना और भी पीछे हुई है। याकोवी इसकी रचना ५०० ई० पू० से ५०० ई. पू० के बीच मानते हैं। पर, भारतीय परम्परा के अनुसार रामायण की रचना लाखों वर्ष पूर्व त्रेतायुग के प्रारम्भ में हुई थी, किन्तु इस सम्बन्ध में अभी पूर्ण अनुसन्धान की आवश्यकता है कि त्रेतायुग की काल-सीमा क्या हो ? 'महाभारत' में 'रामायण' की कथा की चर्चा है। अतः इसकी रचना 'महाभारत' के पूर्व हुई थी। इसमें बीरधर्म
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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