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मुनीश्वर ]
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[ मुरारि
हुए भी अपनी राजनीतिकपटुता, कठोर कर्तव्यनिष्ठा तथा सच्ची मैत्री के कारण महान् सिद्ध होता है । इन सारे गुणों के अतिरिक्त उसे युद्धकला में निपुणता भी प्राप्त है । युद्ध-संचालन की क्षमता एवं सैन्य संगठन की निपुणता उसमें कूट-कूट कर भरी हुई है । एक योग्य मन्त्री के लिए जिन-जिन गुणों की आवश्यकता होती है, वे सारे मुण राक्षस में भरे हुए हैं। इसके अन्य पात्रों में चन्द्रगुप्त एवं मलयकेतु हैं किन्तु चाणक्य एवं राक्षस के समक्ष इनका व्यक्तित्व उभर नहीं सका है ।
आधारग्रन्थ - १. मुद्राराक्षस - हिन्दी अनुसाद सहित डॉ० सत्यव्रत सिंह, चोखम्बा प्रकाशन । २. संस्कृत नाटक - डॉ० कोथ (हिन्दी अनुवाद) । ३. संस्कृत-कवि-दर्शनडॉ० भोलाशंकर व्यास । ४. संस्कृत - नाटक - समीक्षा -डॉ० इन्द्रपाल सिंह 'इन्द्र' । संस्कृत-काव्यकार - डॉ० हरिदत्त शास्त्री । ६. संस्कृत के कवि और काव्य - डॉ० रामजी उपाध्याय । ७. इन्ट्रोडक्शन टू मुद्राराक्षस - -डॉ० देवस्थली । ८. संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास – गैरोला ।
मुनीश्वर -- ज्योतिषशास्त्र के आचार्य । प्रसिद्ध ज्योतिषी रंगनाथ इनके पिता [ [ दे० रंगनाथ ] | इनका स्थितिकाल १६०३ ई० है । इन्होंने 'सिद्धान्त सार्वभौम' नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की है तथा भास्कराचार्य विरचित 'सिद्धान्त शिरोमणि' एवं 'लीलावती' के ऊपर टीकायें लिखी हैं ।
आधारग्रन्थ - भारतीय ज्योतिष – डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री |
मुरारि -- 'अनर्घराघव' नामक नाटक के रचयिता [ दे० अनधराघव ] । उनके जीवन के सम्बन्ध में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं है । 'अनर्घराघव' की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि उनके पिता का नाम वर्धमानभट्ट एवं माता का नाम तन्तुमती था । वे मौद्गल्यगोत्रीय ब्राह्मण थे । सूक्तिग्रन्थों में इनकी प्रशंसा के अनेक श्लोक प्राप्त होते हैं- -- क. मुरारि-पदचिन्तायां भवभूतेस्तु का कथा । भवभूतिं परितज्य मुरारिमुररीकुरु ॥ ख. देवीं वाचमुपासते हि बहवः सारं तु सारस्वतं जानीते नितरामसी गुरुकुलक्लिष्टो मुरारिः कविः । अब्धिलेखित एव वानरभटैः किं त्वस्य गम्भीरतामापातालनिमग्नपीवरतनुर्जानाति मन्याचलः ॥ सदुक्तिकर्णामृत, ५।२७।५ । सूक्तिग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि मुरारि माघ और भवभूति के परवर्ती थे । ये भवभूति की काव्यशैली से प्रभावित भी हैं, अतः उनका समय ७०० ई० के पश्चात् है । रत्नाकर ने अपने 'हरविजय' महाकाव्य के एक श्लोक में मुरारि की चर्चा की है, अतः वे रत्नाकर (६५० ई० ) के पूर्ववर्त्ती हैं | मंख रचित 'श्रीकण्ठचरित' ( ११३५ ई० ) में मुरारि राजशेखर के पूर्ववर्ती सिद्ध किये गए हैं । इन सभी प्रमाणों आधार पर उनका समय ८०० ई० के आसपास
निश्चित होता है ।
मुरारि के सम्बन्ध में विद्वानों का कहना है कि वे शुद्ध नाटक लेखक न होकर गीतिनाट्य के रचयिता थे । उन्हें नाट्यकला का पूर्ण ज्ञान नहीं था । उनके 'अनघंराघव' में लम्बे-लम्बे अंक, कथावस्तु की विश्वङ्खलता, नाटकीय कौतूहल का अभाव, कृत्रिम शैली एवं संवादों का आधिक्य उन्हें सफल नाटककार की श्रेणी से गिरा देता