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________________ भारतचम्पूतिलक ] ( ३४२ ) [ भारतीय दर्शन पं० रामचन्द्र मिश्र की हिन्दी टीका के साथ भारत चम्पू का प्रकाशन चौखम्बा विद्याभवन से १९५७ ई० में हो चुका है । आधारग्रन्थ- संस्कृत चम्पू काव्य का ऐतिहासिक एवं आलोचनात्मक अध्ययनडॉ० छविनाथ त्रिपाठी । भारतचम्पूतिलक- इस चम्पू के प्रणेता लक्ष्मणसूरि हैं। इनका निवास स्थान शनगर था । ये शत्रहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में विद्यमान थे । इनके पिता का नाम गङ्गाधर एवं माता का नाम गंगाम्बिका था । 'भारतचम्पू' में महाभारत की उस कथा का वर्णन है जिसका सम्बन्ध पाण्डवों से है । पाण्डवों के जन्म से लेकर युधिष्ठिर के राज्य करने तक की घटना इसमें वर्णित है । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण डी० सी० मद्रास १२३३२ में प्राप्त होता है । ग्रन्थ के अन्त में कवि ने अपना परिचय दिया है - इत्थं लक्ष्मणसूरिणा शनगरग्रामावतंसायितश्री गंगाधरधीर सिन्धुविधुना गंगा बिकासूनुना । श्राव्ये भारतचम्पुकाव्य तिलके भव्ये प्रणीते महत्याश्वासोभिनवार्थशब्दघटना साथंश्चतुर्थोगमत् । आधारग्रन्थ - चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी | में भारत पारिजात महाकाव्य - बीसवीं शताब्दी का महाकाव्य । इसके रचयिता श्री भगवदाचार्य हैं । इसमें महात्मा गान्धी का जीवन-चरित तीन भागों में वर्णित है । प्रथम भाग में २५ सगँ हैं जिसमें दांडी प्रयाण तक की कथा है। द्वितीय भाग में १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन तक की घटना २९ सर्गों में २१ सर्गों में नोवाखाली तक की यात्रा का उल्लेख है । रहा है गान्धी दर्शन को लोकप्रिय बनाना और इसमें उसकी भाषा की सरलता सहायक हुई है । नानापराधं हरिमन्दिरेषु येवां प्रवेशः प्रतिषिद्ध आसीत् । तेषां ममी हर्षभरो न चिसे संचिन्त्य सर्वोद्धृतिकृत्प्रसूतिम् ॥ २२८ ॥ वर्णित है। तृतीय भाग इसमें कवि का मुख्य लक्ष्य भारतीय दर्शन - दर्शन शब्द का व्युत्पत्तिलब्ध अर्थ है - जिसके द्वारा देखा जाय दृश्यते अनेन इति दर्शनम् । यहाँ 'देखना' शब्द 'पर्यालोचन' या 'विश्लेषण' का द्योतक है। दर्शन शब्द का प्रयोग एक विशेष अर्थ ( तत्त्व-चिन्तन के अर्थ में ) में किया जाता है । जिस शास्त्र के द्वारा विश्व के मूल तत्त्व का पर्यालोचन किया जाय तथा वस्तु के सत्यभूत तात्विक स्वरूप का विवेचन हो, वह दर्शन है। भारतीयदर्शन में धर्म और दर्शन ( अध्यात्म ) का घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किया गया है । भारतीय जीवन के आध्यात्मिक प्रयोजन ने ही दर्शन पर धर्म का रङ्ग भर दिया है। यहाँ 'भारतीय दर्शन' का प्रयोग एक विशेष अर्थ में किया गया है । संस्कृत माध्यम से रचित तर चिन्तन की विविध धाराओं का विवेचन ही हमारा प्रतिपाद्य है । प्राचीन समय से ही भारतीय दर्शन के दो विभाग किये गए हैं- आस्तिक तथा नास्तिक । मीमांसा, वेदान्त, सांख्य, योग, न्याय और वैशेषिक की गणना आस्तिक दर्शनों में होती है । इन्हें 'षड्दर्शन' भी कहा जाता है। आस्तिक शब्द का अर्थ ईश्वरवादी न होकर वेद में आस्था रखनेवाला है । षड्शंनों में भी सभी सभी ईश्वर को नहीं मानते, पर
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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