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________________ भरत ] [ भरतेश्वराभ्युदय चम्पू लिखा है -भट्टोत्पलेन शिष्यानुकम्पयावलोक्य सर्वशास्त्राणि । आर्यासप्तशत्यैवं प्रश्नज्ञानं समासतो रचितम् ॥ आधारग्रन्थ – १. भारतीय ज्योतिष - श्रीशंकर बालकृष्ण दीक्षित ( हिन्दी अनुवाद) । २. भारतीय ज्योतिष - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री । ३. भारतीय ज्योतिष का इतिहास - डॉ० गोरख प्रसाद । ( ३३० ) भरत - भारतीय काव्यशास्त्र, नाट्यशास्त्र एवं अन्य ललित कलाओं के आद्य आचार्यं । इनका सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है 'नाट्यशास्त्र' जो अपने विषय का 'महाकोश' है, [ दे० नाट्यशास्त्र ] | संस्कृत साहित्य में भरत नामधारी पांच व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है - दशरथपुत्र भरत, दुष्यन्ततनय भरत, मान्धाता के प्रपीत्र भरत, जड़ भरत तथा नाट्यशास्त्र के प्रणेता भरत । इनमें से अन्तिम व्यक्ति ही भारतीय काव्यशास्त्र के आद्याचार्य माने जाते हैं। भरत का समय अद्यावधि विवादास्पद है । डॉ० मनमोहन घोष ने 'नाट्यशास्त्र' के आंग्लानुवाद की भूमिका में भरत को काल्पनिक व्यक्ति माना है ( १९५० ई० में प्रकाशित रायल एशियाटिक सोसाइटी, बङ्गाल ) 1 पर अनेक परवर्ती ग्रन्थों में भरत का उल्लेख होने के कारण यह धारणा निर्मूल सिद्ध हो चुकी है। महाकवि कालिदास ने अपने नाटक 'विक्रमोर्वशीय' में भरतमुनि का उल्लेख किया है मुनिना भरतेन यः प्रयोगो भवतीष्वष्टरखाश्रयः प्रयुक्तः । 1 ललिताभिनयं तमद्य भर्ता मरुतां ब्रष्टुमनाः स लोकपालः ॥ २ । १८ अश्वघोष कृत 'शारिपुत्रप्रकरण' पर 'नाट्यशास्त्र' प्रभाव का दिखाई पड़ता इनका समय विक्रम की प्रथम शताब्दी है, अतः भरत का काल विक्रमपूर्व सिद्ध होता है । इन्हीं प्रमाणों के आधार पर भरत का समय वि० पू० ५०० ई० से लेकर एक सौ ई० तक माना जाता है। भरत बहुविध प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति ज्ञात होते हैं । इन्होंने नाट्यशास्त्र, सङ्गीत, काव्यशास्त्र, नृत्य आदि विषयों का अत्यन्त वैज्ञानिक एवं सूक्ष्म विवेचन किया है। इन्होंने सर्वप्रथम चार अलङ्कारों का विवेचन किया था— उपमा, रूपक, दीपक एवं यमक । नाटक को दृष्टि में रख कर भरत ने रस का निरूपण किया है ओर अभिनय की दृष्टि से आठ ही रखों को मान्यता दी है। भरत का रस-निरूपण अत्यन्त प्रौढ़ एवं व्यावहारिक है। इसी प्रकार सङ्गीत के सम्बन्ध में भी इनके विचार अत्यन्त प्रौढ़ सिद्ध होते हैं। नाटकीय विविध विधि-विधानों के वर्णन के क्रम में तत्सम्बन्धी अनेक विषयों का वर्णन कर भरत ने संस्कृत वाङ्मय में अपना महान् व्यक्तित्व बना लिया है। आधारग्रन्थ – क - संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास - डॉ० पा० वा० काणे । ख - भारतीय साहित्यशाखा भाग १ - मा० बलदेव उपाध्याय । भरतेश्वराभ्युदय चम्पू- इस चम्पू काव्य के रचयिता ( दिगम्बर जैनी ) आशाधर हैं। इनका समय वि० सं० १३०० के आसपास है । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण मद्रास कैटलग संख्या १२४४४ में है। आशाधर के अम्यं ग्रन्थ हैं - 'जिनयज्ञकल्प', 'सागर धर्मामृत', 'अनागारधर्मामृत', 'सहस्रनामस्तोत्र',
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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