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________________ अभिज्ञान शाकुन्तल] [अभिज्ञान शाकुन्तल आकाशवाणी हुई कि शकुन्तला तुम्हारी पत्नी है और सर्वदमन तुम्हारा पुत्र है। ऐसा सुनकर पुरोहित और मन्त्रियों की राय से राजा ने उन्हें अपना लिया। उसने लोगों से कहा कि मैं सारा वृत्तान्त जानता था पर यदि मैं पहले ही इन्हें स्वीकार कर लेता तो आप लोग शङ्का कर सकते थे, किन्तु आकाशवाणी के द्वारा देवताओं की स्वीकृति प्राप्त हो जाने पर इनकी शुद्धता प्रकट हो गई है । शकुन्तला के कथानक का वैशिष्टय-'महाभारत' की इस निर्जीव एवं चमत्कारहीन कथा में कालिदास ने आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर इसे सरस एवं रोचक बनाया है। इस कथा में दुष्यन्त का चरित्र गिर गया है और वह अत्यन्त कामी, लोलुप तथा व्यभिचारी सिद्ध होता है और शकुन्तला अपने पुत्र को राजा बनाने की शर्त लगा कर एक स्वार्थी नारी के रूप में उपस्थित होती है। शकुन्तला का प्रेम, प्रेम न रह कर, व्यापार हो जाता है । 'महाभारत' में शकुन्तला दुष्यन्त से अपने जन्म की कथा स्वयं कहती है पर 'शकुन्तला नाटक' में यह बात शकुन्तला की दो सखियों-अनुसूया एवं प्रियंवदा-की बातचीत से ज्ञात हो जाती है। ऐसा कर कवि ने शकुन्तला के शील एवं मुग्धत्व की रक्षा की है । 'महाभारत' की शकुन्तला विवाह के लिए शर्त रखती है और वह प्रगल्भ, स्पष्टवादिनी एवं निर्भीक तरुणी के रूप में उपस्थित होती है। उसमें हृदय की अपेक्षा मस्तिष्क का प्राधान्य है। 'शकुन्तला नाटक' की शकुन्तला में उपर्युक्त दोष नहीं है । वह लज्जावती, प्रेमपरायण एवं निश्छल मुग्धा बालिका के रूप में प्रस्तुत की गई है। 'महाभारत' में कण्व फल-मूलादि लाने के लिए वन में गये हैं, जहां से वे एक या दो घण्टे के भीतर आ गये होंगे। इसी अन्तराल में प्रेम और विवाह की बात अयोक्तिक-सी लगती है। पर, कालिदास ने नाटक में कण्व ऋषि को शकुन्तला के भावी अनिष्ट के शमन के लिए सोमतीर्थ में जाने का वर्णन किया है । अतः उनकी दीर्घकालीन अनुपस्थिति में घटित होने वाली यह घटना स्वाभाविक लगती है । कालिदास ने दुर्वासा का शाप तथा अंगूठी की बात की कल्पना कर दो महत्त्वपूर्ण नवीनताएं जोड़ी हैं । इससे दुष्यन्त कामी, लोलुप, भीरु एवं स्वार्थी न होकर शुद्ध उदात्त चरित्र का व्यक्ति सिद्ध होता है । 'महाभारत' में वह समाजभीर है तथा जानबूझ कर शकुन्तला को तिरस्कृत करता है, पर कालिदास ने शाप की बात कहकर उसके चरित्र का प्रक्षालन किया है। शाप के अनुसार शकुन्तला का पति द्वारा तिरस्कार आवश्यक था तथा शीलस्खलन के कारण उसका अभिशप्त होना भी अनिवार्य था। इससे उसका चरित्र, दण्ड प्राप्त कर, उज्ज्वल हो जाता है। शाप की घटना के द्वारा कवि ने शकुन्तला के दण्ड का भी विधान किया है तथा अंगूठी की बात का नियोजन कर शाप-विमोचन के साधन की सृष्टि की है। राजा के पास जाने के पूर्व ही शकुन्तला की अंगूठी का गिर जाना एवं शकुन्तला के तिरस्कार के पश्चात् अंगूठी के मिलने पर राजा को उसकी स्मृति का होना, ये दोनों ही बातें अत्यन्त स्वाभाविक ढङ्ग से वर्णित हैं। कथानक का वैशिष्ट्य- 'शकुन्तला-नाटक' का वस्तु-विन्यास मनोरम तथा सुगठित है। कवि ने विभिन्न प्रसङ्गों की योजना इस उन से की है कि अन्त-अन्त तक उनमें
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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