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पण्डित अम्बिकादत्त व्यास ]
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[ पण्डितराज जगन्नाथ
भास्कराचार्य ने अपने ब्रह्मसूत्र के भाष्य में कपिल को ही उक्त ग्रन्थ का प्रणेता कहा है'कपिलमषिप्रणीत षष्टितन्त्राख्यस्मृतेः' । ब्रह्मसूत्र २।१।१ पर म० म० डॉ गोपीनाथ कविराज के अनुसार 'षष्टितन्त्र' के रचयिता पञ्चशिख हैं— जयमंगला की भूमिका ।
आधारग्रन्थ -१ भारतीयदर्शन- -आ० वलदेव उपाध्याय । २ सांख्यदर्शन का इतिहास - श्री उदयवीर शास्त्री । ३ सांख्यतत्त्वकौमुदी - डॉ० आद्याप्रसाद मिश्र ।
पण्डित अम्बिकादत्त व्यास-ये उन्नीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध गद्यलेखक, कवि एवं नाटककार हैं । इनका समय १८५८ से १९०० ई० है । इनके पूर्वज जयपुर राज्य के निवासी थे, किन्तु पीछे आकर इनके पिता वाराणसी में बस गए। व्यासजी पटना राजकीय संस्कृत महाविद्यालय में अध्यापक थे और उक्त पद पर जीवन पर्यन्त रहे । इनकी ग्रन्थों की संख्या ७५ है । इन्होंने हिन्दी एवं संस्कृत दोनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ रचनाएं की हैं ।
नामक महान् गद्य
इनका 'सामवतम्'
व्यासजी ने छत्रपति शिवाजी के जीवन पर 'शिवराजविजय' काव्य की रचना की है जो 'कादम्बरी' की शैली में रचित है। नामक नाटक उन्नीसवीं शताब्दी का सर्वश्रेष्ठ नाटक माना जाता है । इसकी शैली अलंकृत एवं पाण्डित्यपूर्ण है तथा अलंकारों के प्रयोग में स्वाभाविकता एवं अपूर्वं रचनाशक्ति का परिचय दिया गया है। एक उदाहरण 'लें
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कदाsहं कान्ताया नलिननयनायाः करतलं गृहीत्वा सानन्दं निजकर तलेना तिरुचिरम् । सुधापारावाराप्लुतमिव मनः स्वं विरचयन् शचीयुक्तं जिष्णुं चिरमुपहसिष्यामि मुदितः ॥ ७७ ॥
पण्डितराज जगन्नाथ -ये महान् काव्यशास्त्री एवं कवि हैं। इनका युगप्रवर्तक ग्रन्थ 'रसगंगाधर' है जो भारतीय आलोचनाशास्त्र की अन्तिम प्रौढ़ रचना है । पण्डितराज तैलङ्ग ब्राह्मण तथा शाहजहाँ के सभापण्डित थे। शाहजहाँ के द्वारा ही इन्हें 'पण्डितराज' की उपाधि प्राप्त हुई थी। इनके पिता का नाम पेरुभट्ट या पेरमभट्ट एवं माता का नाम लक्ष्मी था ।
पाषाणादपि पीयूषं स्यन्दते यस्य लीलया ।
तं वन्दे पेरुभट्टास्यं लक्ष्मीकान्तं महागुरुम् || रसगंगाधर ११३ पण्डितराजकृत 'भामिनीविलास' से ज्ञात होता है कि इन्होंने अपनी युवावस्था दिल्लीश्वर साहजहां के आश्रय में व्यतीत की थी ।
शास्त्राण्याकलितानि नित्यविधयः सर्वेऽपि सम्भावितादिलीवमपाणिपल्लवतले नीतनवीनं वयः ॥ ४।४५
ये चार नरेशों के आश्रय में रहे— जहाँगीर, जगतसिंह, शाहजहाँ एवं प्राणनारायण । " पण्डितराज ने प्रारम्भ के कुछ वर्ष जहांगीर के आश्रय में बिताया । १६२७ ई० के बाढ़ के उदयपुर नरेश जगतसिंह के यहाँ चले गए। कुछ दिन वहां रहे और उनकी प्रशंसा में 'जगदाभरण' की रचना की क्योंकि जगतसिंह भी गद्दी पर १६२८ ई०