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________________ पन्चरात्र] ( २६३ ) [पन्चशिख तैयार नहीं होते । इसी बीच विराट नगर से एक दूत आकर सूचना देता है कि कीचक सहित सी भाइयों को किसी व्यक्ति ने बाहों से ही रात्रि में मार डाला इसलिए राजा यज्ञ में सम्मिलित नहीं हुए। भीष्म को विश्वास हो जाता है कि अवश्य ही यह कार्य भीम ने किया होगा। अतः वे द्रोण से दुर्योधन की शर्त मान लेने को कहते हैं । द्रोण इस शतं को स्वीकार कर लेते हैं और यज्ञ में आये हुए राजाओं के समक्ष उसे सुना दिया जाता है : भीष्म विराट के ऊपर चढ़ाई कर उसके गोधन को हरण करने की सलाह देते हैं जिसे दुर्योधन मान लेता है। द्वितीय अंक में विराट के जन्मदिन के अवसर पर कौरवों द्वारा गोधन के हरण का वर्णन है । युद्ध में भीमसेन द्वारा अभिमन्यु पकड़ लिया जाता है और वह राजा विराट के समक्ष निर्भय होकर बातें करता है। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन सभी प्रकट हो जाते हैं पर राजा विराट् उन्हें गुप्त होने के लिए कहते हैं । इस पर युधिष्ठिर कहते हैं कि अज्ञातवास पूरा हो गया है। तृतीय अंक का प्रारम्भ कौरवों के यहाँ से हुआ है। सूत द्वारा यह सूचना मिली कि अभिमन्यु शत्रुओं द्वारा पकड़ लिया गया है । सूत ने बताया कि कोई व्यक्ति पैदल ही आकर अभिमन्यु को पकड़ ले गया। भीष्म ने कहा कि निश्चितरूप से वह भीमसेन होगा। इसी समय युधिष्ठिर का संवाद लेकर दूत आता है । गुरु द्रोण दुर्योधन को गुरुदक्षिणा पूरी करने को कहते हैं। दुर्योधन उसे स्वीकार कर कहता है कि उसने पाण्डवों को आधा राज्य दे दिया। भरतवाक्य के पश्चात् नाटक समाप्त हो जाता है। __ आधार ग्रन्थ-भासनाटकचक्रम्-चौखम्बा प्रकाशन । पञ्चशिख-सांख्य दर्शन को व्यवस्थित एवं सुसम्बद्ध करने वाले प्रथम आचार्य के रूप में पञ्चशिख का नाम आता है। ये आचार्य आसुरि [ सांख्यदर्शन के प्रवत्तंक महर्षि कपिल के शिष्य ] के शिष्य थे। इनके सिद्धान्त-वाक्य अनेक ग्रन्थों में उद्धृत हैं जिन्हें 'पाञ्चशिख-सूत्र' कहा जाता है । इनमें से प्रधान सूत्रों को उद्धृत किया जाता है १. एकमेव दर्शनं ख्यातिरेव दर्शनम् [योगभाष्य १।४] २. तमणुमात्रमात्मानमनुविद्याऽस्मीत्येवं तावत्संप्रजानीते [योग० ११३६] ३. बुद्धितः परं पुरुषमाकारशीलविद्यादिभिविभक्तमपश्यन् कुर्यात्तत्रात्मबुद्धि मोहेन । वही-१६ ४. तत्संयोगहेतुविवर्जनात्स्यादयमात्यन्तिको दुःखप्रतीकारः । योग-भाष्य २०१७, ब्रह्मसूत्र-भामती २।२।१० ५. अपरिणामिनी हि भोक्तृशक्तिरप्रतिसंक्रमा च परिणामिन्यर्थे प्रतिसंक्रान्तेव तद्वृत्तिमनुपतति तस्याश्च प्राप्तचैतन्योपग्रहरूपाया बुद्धिवृत्तेरनुकारमात्रतया बुद्धिवृत्त्यविशिष्टा हि ज्ञानवृत्तिरित्याख्यायते । योग-भाष्य २।२० चीनी परम्परा इन्हें षष्टितन्त्र' का रचयिता मानती है जिसमें साठ हजार श्लोक थे। इनके सिद्धान्तों का विवरण 'महाभारत' (शान्तिपर्व, अध्याय ३०२-३०८) में भी प्राप्त होता है । षष्टितन्त्र' के रचयिता के संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं । श्री उदयवीर शास्त्री एवं कालीपद भट्टाचार्य 'षप्रितन्त्र' का रचयिता कपिल को मानते हैं।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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