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________________ ज्योतिषशास्त्र] - ( १८७) [ज्योतिषशास्त्र उससे घृणा करती हैं। रावण उन्हें कृपाण से मारने के लिए दौड़ता है, किन्तु उसी समय उसे हनुमान द्वारा मारे गये अपने पुत्र अक्षय का सिर दिखाई पड़ता है। सीता हताश होकर, चिता से, अपने को जला देना चाहती हैं, पर अंगार मोती के रूप में परिणत हो जाता है। हनुमान द्वारा अंगूठी गिराने की भी घटना का वर्णन किया गया है। हनुमान् प्रकट होकर उनसे राम के एक पत्नीव्रत का समाचार सुनाते हैं जिससे सीता को संतोष होता है । सप्तम अध्याय में प्रहस्त द्वारा रावण को एक चित्र दिखाया जाता है जिसे माल्यवान् ने भेजा है। इस चित्र में शत्रु के आक्रमण एवं सेतु-बन्धन का दृश्य चित्रित है, पर रावण इसे कोरी कल्पना मान कर इस पर ध्यान नहीं देता। कवि ने विद्याधर एवं विद्याधरी के संवाद के रूप में युद्ध का वर्णन किया है । अन्ततः सपरिवार रावण मारा जाता है। अन्त में राम, सीता, लक्ष्मण, विभीषण एवं सुग्रीव के द्वारा बारी-बारी सूर्यास्त तथा चन्द्रोदय का वर्णन कराया गया है। आधारग्रन्थ-प्रसन्नराधव-हिन्दी अनुवाद सहित चौखम्बा से प्रकाशित । ज्योतिषशास्त्र ज्योतिषशास्त्र में सूर्यादि ग्रहों एवं काल का बोध होता हैज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम् । 'इसमें प्रधानतः ग्रह, नक्षत्र, धूमकेतु, आदि ज्योतिः पदार्थों का स्वरूप, संचार, परिभ्रमणकाल, ग्रहण और स्थिति प्रभृति समस्त घटनाओं का निरूपण एवं ग्रह, नक्षत्रों की गति, स्थिति और संचारानुसार शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है।' भारतीय ज्योतिष पृ० ४ (चतुर्थ संस्करण)। ___ भारत में ज्योतिषशास्त्र की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है और वैदिक वाङ्मय में भी इसका अस्तित्व सर्वत्र प्राप्त होता है। वैदिक साहित्य के अन्तर्गत 'वेदांग' में ज्योतिष को अत्यन्त महत्त्व प्राप्त हुआ है। वेदों में सूर्य, चन्द्रमा एवं नक्षत्रों के सम्बन्ध में कतिपय स्तुतिपरक मन्त्र प्राप्त होते हैं और उनमें ग्रह-नक्षत्रों के रूप-रंग तथा रहस्यमयता के अतिरिक्त उनके प्रभाव पर भी प्रकाश डाला गया है। आगे चल कर यज्ञों के विधि-विधान में ऋतु, अयन, दिनमान एवं लग्न के शुभाशुभ पर विचार करने के लिए ज्योतिषशास्त्र का विकास हुआ और वेदांगों में इसे महनीय स्थान की प्राप्ति हुई। प्रारम्भ में ज्योतिषशास्त्र के दो भेद किये गए थे-गणित एवं फलित, किन्तु कालान्तर में इसके पांच अंगों का विकास हुआ जिन्हें-होरा, गणित, संहिता, प्रश्न और निमित्त कहा गया। होरा ज्योतिषशास्त्र का वह अंग है जिसमें जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यक्ति के फलाफल का विचार किया जाता है। इसे जातकशास्त्र भी कहते हैं। इसमें मुख्यतः जन्मकुण्डली के द्वादश भावों के फलाफल का विचार किया जाता है और मनुष्य के सुख-दुःख, इष्ट, अनिष्ट, उन्नति, अवनति एवं भाग्योदय का वर्णन होता है। भारतीय ज्योतिर्विदों में इस शास्त्र (होरा ) के प्रतिनिधि आचार्य हैं-वाराहमिहिर, नारचन्द्र, सिद्धसेन, ढुन्दिराज, केशव, श्रीपति एवं श्रीधर । गणित ज्योतिष में कालगणना, सौर-चान्द्रमानों का प्रतिपादन, ग्रह गतियों का निरूपण, व्यक्त-अव्यक्त गणित का प्रयोजन, प्रश्नोत्तर-विधि, ग्रह, नक्षत्र की स्थिति,
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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