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________________ जयदेव] [जयदेव गीतगोविन्द का कोई क्या हुआ एक ही रूप नहीं है, पाठ्य और गीत, कथा, वर्णन और भाषण, इन सबको उसमें एक निश्चित उद्देश्य के साथ कुशलतापूर्वक कर दिया गया है। प्रस्तुत काव्य का विभाग सगों के साथ ही प्रबन्धों में भी किया गया है । प्रत्येक गीत एक प्रबन्ध माना गया है और सम्पूर्ण काव्य में ऐसे चौबीस प्रबन्ध हैं। संस्कृत साहित्य का इतिहास ( हिन्दी अनुवाद )पृ० २३२ । ____ 'गीतगोविन्द' के अनेक गद्यानुवाद एवं पद्यानुवाद हिन्दी में उपलब्ध होते हैं। आधुनिक युग के अनुवादों में डॉ. विनयमोहन शर्माकृत पद्यानुवाद अधिक सुन्दर है। आधारग्रन्थ-संस्कृत कविदर्शन-डॉ० भोलाशंकर व्यास । जयदेव-(नाटककार) इन्होंने 'प्रसन्नराघव' नामक नाटक की रचना की है। ये गीतगोविन्दकार जयदेव से सर्वथा भिन्न हैं। आचार्य विश्वनाथ ने अपने 'साहित्यदर्पण' में इनका एक श्लोक 'कदली कदली' ध्वनि के प्रकरण में उद्धृत किया है, अतः ये त्रयोदश शतक के पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं। नाटक की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि इनके पिता का नाम महादेव एवं माता का नाम सुमित्रा था। ये कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण तथा मिथिलानिवासी थे। ये न्यायशास्त्र के आलोक नामक टीका लिखने वाले जयदेव से अभिन्न थे। _ 'प्रसन्नराघव' नामक नाटक के अतिरिक्त इन्होंने 'चन्द्रालोक' नामक काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ की भी रचना की है जो अपनी लोकप्रियता के कारण प्रसिद्ध है । 'प्रसन्न राघव की रचना सात अंकों में हुई है तथा इसका कथानक रामायण पर आधृत है। कवि ने मूलकथा में, नाट्यकौशल के प्रदर्शनार्थ, अनेक परिवर्तन किये हैं तथा प्रथम चार अंकों में बालकाण्ड की ही कथा का वर्णन किया है। प्रथम अंक में मंजीरक एवं नुपूरक नामक बन्दीजनों के द्वारा सीता-स्वयंवर का वर्णन किया गया है। इस अंक में रावण तथा बाणासुर अपने-अपने बल की प्रशंसा करते हुए एवं परस्पर संघर्ष करते हुए प्रदर्शित किये गए हैं। द्वितीय अंक में जनक की बाटिका में पुष्पावचय करते हुए राम एवं सीता के प्रथम दर्शन का वर्णन किया गया है । तृतीय अंक में विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण का स्वयंवर-मण्डप में पधारने का वर्णन है। विश्वामित्र राजा जनक को राम-लक्ष्मण का परिचय देते हैं और राजा जनक उनकी सुन्दरता पर मुग्ध होकर अपनी प्रतिज्ञा के लिए मन-ही-मन दुःखित होते हैं। विश्वामित्र का आदेश प्राप्त कर रामचन्द्र शिव-धनुष को तोड़ डालते हैं। चतुर्थ अंक में परशुराम का आगमन एवं राम के साथ उनके वाग्युद्ध का वर्णन है। पंचम अंक में गंगा, यमुना एवं सरयू के संवाद के रूप राम-वनगमन एवं दशरथ की मृत्यु की घटनाओं की सूचना प्राप्त होती है। हंस नामक पात्र ने सीताहरण तक की घटनाओं को सुनाया है। षष्ठ अंक में विरही राम का अत्यन्त मार्मिक चित्र उपस्थित किया गया है। हनुमान का लंका जाना एवं लंका-दहन की घटना का वर्णन इसी अंक में है । शोकाकुल सीता दिखाई पड़ती हैं और उनके मन में इस प्रकार का भाव है कि राम को उनके चरित्र के सम्बन्ध में शंका तो नहीं है या राम का उनके प्रति अनुराग तो नहीं नष्ट हो गया है ? उसी समय रावण आता है और उनके प्रति अपना प्रेम प्रकट करता है। सीता
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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