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________________ घरकसंहिता] ( १७१) [चिरंजीवभट्टाचर्य सरसपटीरकुन्जवनसजवनाभिपतन् । __मृगमदगन्धगन्धवहमेदुरितेम्बुनिधिः। तटनिकटे लुठत्पनसतालरसालफलै रुदितमदा विचेरुरुदरंभरयो हरयः ॥ ११ ॥ आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ पाण्डेय । चरकसंहिता-आयुर्वेदशास्त्र का सर्वोत्तम ग्रन्थ । इस ग्रन्थ के प्रतिसंस्कर्ता चरक है । इनका समय ईसा की प्रथम शताब्दी के आसपास है। विद्वानों का कहना है कि चरक एक शाखा है जिसका सम्बन्ध वैशम्पायन से है । 'कृष्ण यजुर्वेद' से सम्बद्ध व्यक्ति चरक कहे जाते थे उन्हीं में से किसी एक ने इस संहिता का प्रतिसंस्कार किया था। कहा जाता है कि चरक कनिष्क का राजवैद्य था, पर इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। उपनिषदों में चरक शब्द का प्रयोग बहुवचन के रूप में मिलता है-मद्रेषु चरकाः पर्यनजाम (बृहदारण्यक ३३।१)। 'चरक संहिता' में मुख्य रूप से कायचिकित्सा का वर्णन है। इसमें वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार हैरसायन, वाजीकरण, ज्वर, रक्तपित्त, गुल्म, प्रमेह, कुष्ठ, राजयक्ष्मा, उन्माद, अपस्मार, क्षत, शोथ, उदर, अशं, ग्रहणी, पाण्डु, श्वास, कास, अतिसार, छर्दि, विसयं, तृष्णा, विष, मदात्यय, द्विवणीय, त्रिमर्मीय, ऊरुस्तम्भ, वातव्याधि, वातशोणित एवं योनिव्यापद । 'चरकसंहिता' में दर्शन एवं अर्थशास्त्र के भी विषय वर्णित हैं तथा अनेक स्थानों एवं व्यक्तियों के संकेत के कारण इसका सांस्कृतिक महत्त्व अत्यधिक बढ़ा हुआ है। यह ग्रन्थ भारतीय चिकित्साशास्त्र की अप्रतिम रचना के रूप में प्रतिष्ठित है जिसका अनुवाद संसार की प्रसिद्ध भाषाओं में हो चुका है। इसकी हिन्दी व्याख्या (विद्योतिनी) पं० काशीनाथ शास्त्री एवं डॉ. गोरखनाथ चतुर्वेदी ने की है। ___आधारग्रन्थ-१. आयुर्वेद का बृहत् इतिहास-श्री अत्रिदेव विद्यालंकार २. चरक का सांस्कृतिक अध्ययन-श्री अत्रिदेव विद्यालंकार ३. चरक संहिता का निर्माणकाल-वैद्य रघुवीर शरण शर्मा ४. वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्पराग० सत्य प्रकाश ५. प्राचीन भारत में रसायनशास्त्र-डॉ सत्य प्रकाश ६. प्राचीन भारत में विज्ञान-डॉ सत्य प्रकाश । चिरंजीवभट्टाचार्य-इनके द्वारा रचित दो चम्पू काव्यों का प्रकाशन हो चुका है। वे हैं-'विद्वन्मोदतरंगिणी' (श्री वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से १९२८ ई. से प्रकाशित) तथा 'माधवचम्पू' (कलकत्ता से प्रकाशित)। इनका जन्म गौड़देशीय राढापुर के निवासी काशीनाथ के घर हुआ जो इनके पिता थे। ये काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनका वास्तविक नाम वामदेव था पर पिता ने इन्हें स्नेह वश चिरंजीव नाम दे दिया था। इनका समय १५१२ ई० है। 'विद्वन्मोदतरंगिणी' आठ तरंगों में विभक्त है। प्रथम तरंग में कवि ने अपने वंश का वर्णन किया है। द्वितीय में वैष्णव, शाक्त, शेव, अद्वैतवादी, वैशेषिक, न्याय, मीमांसा-वेदान्त, सांख्य तथा पातंजल योग के ज्ञाता, पौराणिक, ज्योतिषी, आयुर्वेदज्ञ, वैयाकरण, आलंकारिक तथा नास्तिकों का समागम
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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