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चन्द्रकीर्ति ]
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[ चम्पूरामायण
आधारग्रन्थ - भारतीय राजशास्त्र प्रणेता - डॉ० श्यामलाल पाण्डेय । चन्द्रकीर्त्ति – माध्यमिक सम्प्रदाय ( बौद्ध दर्शन ) के प्रतिनिधि आचायों में चन्द्रकीति का नाम आता है। इनका समय ६०० से ६५० ई० के मध्य है । ये दक्षिण भारतीय बुद्धिपालित नामक विद्वान् के शिष्य कमलबुद्धि के शिष्य थे जिनसे इन्होंने शून्यवाद का अध्ययन किया था । महायान दर्शन के ये प्रकाण्ड पण्डित माने जाते थे । इन्हें नालन्दा महाविहार में अध्यापक का पद प्राप्त हुआ था । इनके द्वारा रचित तीन ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । माध्यमिक सम्प्रदाय के लिए दे० बौद्धदर्शन ।
१. माध्यमिकावतार - इसका मूल रूप प्राप्त नहीं होता, किन्तु तिब्बती भाषा में इसका अनुवाद उपलब्ध है । इसमें लेखक ने शून्यवाद का विशद विवेचन प्रस्तुत किया है ।
२. प्रसन्नपदा - यह मौलिक ग्रन्थ न होकर नागार्जुन रचित 'माध्यमिककारिका' की टीका है । इसकी शैली प्रसादपूर्ण एवं सरल है ।
३. चतुःशतक टीका- - यद आयंदेव रचित 'शतुःशतक' नामक ग्रन्थ की टीका है । आधार ग्रन्थ बौद्ध दर्शन - आ० बलदेव उपाध्याय ।
चन्द्रसेन -- ये ज्योतिषशास्त्र के आचार्य हैं । इन्होंने 'केवलज्ञानहोरा' नामक ग्रन्थ की रचना की है । इनका समय सप्तम शताब्दी है ।. 'कर्णाटक प्रान्त के निवासी थे । इन्होंने अपने ग्रन्थ में बीच-बीच में कन्नड़भाषा का भी प्रयोग किया है । यह अपने विषय का विशालकाय ग्रन्थ है जिसमें चार हजार के लगभग श्लोक हैं। इसके विवेच्य विषयों की सूची इस प्रकार है - हेमप्रकरण, दाम्य, शिला, मृत्तिका, वृक्ष, कार्मासगुल्म-वल्कालतृणरोम-पट प्रकरण, संख्याप्रकरण, नष्टद्रव्य-प्रकरण, निर्वाह प्रकरण, अपत्य-प्रकरण, लाभालाभप्रकरण, स्वप्रकरण, स्वप्नप्रकरण, वास्तुविद्या प्रकरण, भोजनप्रकरण, देहलोहदीक्षाप्रकरण, अंजन विद्याप्रकरण तथा विषविद्याप्रकरण। विषय-सूची के अनुसार यह होरा-विषयक ग्रन्थ न होकर संहिता विषयक रचना सिद्ध होता है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में लेखक ने अपनी प्रशंसा स्वयं की है-
होरा नाम महाविद्या वक्तव्यञ्च भवद्धितम् ।
ज्योति ने कसारं च आगमैः सदृशो जैन:
भूषणं बुधपोषणम् ॥ चन्द्रसेनसमो मुनिः । केवलसदृशी विद्या दुर्लभा सचराचरे ॥
केवलज्ञानहोरा — जैनसिद्धान्त भवन, आरा ।
आधारग्रन्थ - भारतीय ज्योतिष - डॉ० नेमिचन्द्रशास्त्री ।
चम्पूरामायण युद्धकाण्ड - इस चम्पू-काव्य के रचयिता लक्ष्मण कवि हैं । इस पर भोज कृत 'चम्पूरामायण' का अत्यधिक प्रभाव है और यह 'चमूरामायण' के ही साथ प्रकाशित है । प्रारम्भ में कवि ने भोज की वन्दना की है। इस पर महाकविकालिदास के 'रघुवंश' के रामप्रत्यागमन की छाया दिखाई पड़ती है । बन्दरों के विचरण का वर्णन देखिए