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________________ . (१२५) [काकुत्स्न प्रौढ़ता को प्राप्त हुआ और प्रीति तथा विस्मय के रूप में काव्यशास्त्र की दो आधार शिलाएं स्थापित हुई जिनका प्रतिनिधित्व रस एवं अलंकार ने किया। रस को व्यंग्य मान कर उसे ध्वनि का एक रूप माना गया और अन्ततः तीन सिद्धान्त भारतीय काव्यशास्त्र के अप्रतिम सिद्धान्त बने । बाधारमन्व-भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १, २-० बलदेव उपाध्याय ।। कामन्दक-प्राचीन भारतीय राजशास्त्र के प्रणेता। इन्होंने 'कामन्दक-नीति' नामक राजशास्त्र-विषयक ग्रन्थ की रचना की है। इनके समय-निरूपण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। डॉ. अनन्त सदाशिव अल्तेकर के अनुसार कामन्दक-नीति' का रचनाकाल ५०० ई. के लगभग है। इस प्रन्थ में भारतीय राजशास्त्र के कतिपय लेखकों के नाम उल्लिखित हैं जिससे इसके लेखनकाल पर प्रभाव पड़ता है। मनु, बृहस्पति, इन्द्र, उशना, मय, विशालाक्ष, बहुदन्तीपुत्र, पराशर एवं कौटिल्य के उद्धरण इस अन्य में यत्र-तत्र प्राप्त होते हैं। इससे स्पष्ट है कि कामन्दक का आविर्भाव कौटिल्य के बाद ही हुआ होगा। कामन्दक ने अपने ग्रन्थ में स्वीकार किया है कि इस ग्रन्थ के लेखन में अर्थशास्त्र की विषयवस्तु का आश्रय ग्रहण किया गया है । 'कामन्दकनीति' की रचना १९ सर्गों में हुई है जिसमें ग्यारह सौ तिरसठ छन्द हैं । ' 'कामन्दक-नीति' के प्रारम्भ में विद्याओं का वर्गीकरण करते हुए उनके चार विभाग किये गए हैं-आन्वीक्षिकी, त्रयी, बार्ता एवं दण्डनीति । इसमें बताया गया है कि नय एवं अन्यक सम्यक बोध कराने वाली विद्या को दण्डनीति कहते हैं। इसमें वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है-राज्य का स्वरूप, राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त, राजा की उपयोगिता, राज्याधिकार-विधि, राजा का आचरण, राजा के कर्तव्य, राज्य की सुरक्षा, मन्त्रिमण्डल, मन्त्रिमण्डल की सदस्यसंख्या, कार्यप्रणाली, मन्त्र का महत्व, मन्त्र के अंग, मन्त्र-भेद, मन्त्रणास्थान, राजकर्मचारियों की आवश्यकता, राजकर्मचारियों के आचार-नियम, दूत का महत्व, योग्यता, प्रकार एवं कर्तव्य, चर एवं उसकी उपयोगिता, कोश का महत्त्व, आय के साधन, राष्ट्र का स्वरूप एवं तत्त्व, सैन्यबल, सेना के अंग आदि । कामन्दककृत विविध राजमण्डलों के निर्माण का वर्णन भारतीय राजशास्त्र के इतिहास में अभूतपूर्व देन के रूप में स्वीकृत है। आधारग्रन्थ-भारतीय राजशास्त्र प्रणेता-डॉ० श्यामलाल पाण्डेय । काशकृत्स्न-संस्कृत के प्राचीन वैयाकरण । पं० युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार इनका समय ३१०० वर्ष वि० पू० है। इनके व्याकरण, मीमांसा एवं वेदान्त सम्बन्धी अन्य उपलब्ध होते हैं। 'महाभाष्य' में इनके 'शब्दानुशासन' नामक ग्रन्थ का उबेख हैपाणिनिनाप्राक्तं पाणिनीयम् आपिशलम् काशकृत्स्न इति । महाभाष्य प्रथम आहिक का इनके ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है-काशकृत्स्न शब्दकलाप धातुपाठ-सम्प्रति 'काशकृत्स्न व्याकरण' के लगभग १४० सूत्र उपलब्ध हो चुके हैं। धातुपाठ-इसका प्रकाशन चन्नवीर कवि की कन्नर टीका के साथ हो चुका है। 'उणादिपाठ'- इसका उल्लेख 'महाभाष्य' तयाँ भास के 'यशफलक' नाटक में है ।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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