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________________ ( १३४ ) [ काव्यशास्त्र औचित्य सम्प्रदाय - इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य क्षेमेन्द्र हैं । इन्होंने 'औचित्य - विचारचर्चा' नामक पुस्तक में औचित्य को काव्यसिद्धान्त के रूप में उपस्थित किया है । raft औचित्य को काव्य का जीवित या प्राणतत्व मानने का श्रेय क्षेमेन्द्र को है फिर भी इसका विवरण अत्यन्त प्राचीनकाल से प्राप्त होता है । भरत के 'नाट्यशास्त्र' में पात्रों की वेश-भूषा के निरूपण में औचित्य का व्यावहारिक विधान प्राप्त होता है और 'ध्वन्यालोक' में अनौचित्य को रस-भंग का प्रधान कारण मान कर इसकी गरिमा स्थापित की गयी है। : अनौचित्याद् ऋते नान्यद् रसभङ्गस्य कारणम् । भौचित्योपनिबन्धस्तु रसस्योपनिषत् परा ॥ ३ । १५ ध्वन्या० क्षेमेन्द्र ने रस को काव्य की आत्मा मान कर औचित्य को उसका जीवित स्वीकार किया । औचित्यं रससिद्धस्य स्थिरं काव्यस्य जीवितम् । ५। औचित्य ० क्षेमेन्द्र ने ओचित्य के २८ प्रकार किये हैं और इसमें रस, अलंकार, गुण, पद, वाक्य, कारक, क्रिया आदि के औचित्य का भी निर्देश किया है । औचित्य की परिभाषा देते हुए क्षेमेन्द्र ने कहा कि उचित का भाव ही ओचित्य है । जिस वस्तु का जिससे मेल मिलता है उसे उचित कहते हैं और उचित का भाव भौचित्य कहा जाता हैउचितं प्राहराचार्याः सदृशं किल यस्य यत् । उचितस्य च यो भाव:, तदीचित्यं प्रचक्षते ॥ ३॥ भोचित्यविचारचर्चा संस्कृत का काव्यशास्त्र अत्यन्त प्रौढ़ एवं महनीय काव्यालोचन का रूप प्रस्तुत करने वाला है । दो सहस्र वर्षों की अनवरत साधना के फलस्वरूप आचायों को चिंतनसरणि में जिन छह सिद्धान्तों का प्रादुर्भाव हुआ उनसे संस्कृत काव्यशास्त्र का स्वरूप निखर गया । आचार्यों ने मुख्यतः काव्य के स्वरूप, कारण, प्रयोजन, भेद आदि के सम्बन्ध में अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ विचार कर उसके वष्यं विषयों का भी निरूपण किया । काव्य के उत्तम, मध्यम एवं अधम तीन भेद किये गए और ध्वनि को सर्वोत्कृष्ट रूप माना गया । मध्यम काव्य के अन्तर्गत गुणीभूत व्यंग्य को स्थान मिला और अलंकार - काव्य को अवर या अधम काव्य की संज्ञा प्राप्त हुई । अन्य दृष्टि से भी काव्य के कई प्रकार किये गए और उसका विभाजन श्रव्य एवं दृश्य के रूप में किया गया । श्रव्यकाव्य के भी प्रबन्ध एवं मुक्तक के रूप में कई भेद हुए । प्रबन्ध के अन्तर्गत महाकाव्य एवं खण्डकाव्य का विवेचन किया गया और इनके स्वरूप का विस्तृत विवेचन हुआ । हृदयकाव्य के अन्तर्गत रूपक का विवेचन हुआ जिसके रूपक एवं उपरूपक के नाम से दो भेद किये गए । रूपक के १० एवं उपरूपक के १८ प्रकार मानकर इनके स्वरूप का विश्लेषण कर संस्कृत आचार्यों ने भारतीय नाट्यशास्त्र का वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत किया । गद्यकाव्य के कथा, आख्यायिक, परिकथा, कथालिका आदि भेद किये गए । क्रमशः काव्यशास्त्र का विकास होता गया और इसकी नींव सुदृढ़ होती गयी; फलतः ध्वनि, रस एवं अलंकार सिद्धान्त के रूप में भारतीय काव्यशास्त्र के तीन मीलस्तम्भ 'स्थित हुए । भारतीय काव्यशास्त्र में सौन्दर्यान्वेषण का कार्य पूर्ण काव्यशास्त्र ] MA
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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