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________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] वृतत्वम्। जम्बू० ३९७। वृत्तम्। प्रश्न० ७५ परिमण्डलः | परियट्टणा- परिवर्तना सूत्रस्य गुणनम्। प्रश्न. १२९। संस्थानविशेषः। प्रज्ञा० २४२ षटसंस्थाने प्रथमः। भग. परि-वर्तना-प्रच्छनाविशोधितस्य सूत्रस्य मा ८५८ भूविस्मरणं इति सूत्रस्य गणनम्। स्था० ३४९। परिमंडिया-परिमण्डिका-धात्रीविशेषः। ज्ञाता०४१। परावर्तना-गणनम्। उत्त० ५८४१ परिमण्डलसण्ठाणपरिणया-परिमण्डलसंस्थानपरिणता | परियट्टिउं- परिकर्षयितुं, परिवर्द्धयितुं वा वल-यवत्। प्रज्ञा० १११ परिपालयितुमिति। प्रश्न. १५३। परिमद्दणं-परिमर्दनं-सर्वतः शरीरमलनम्। प्रश्न. १३७ | परियट्टिए- परिवर्तितं साधुनिमित्तं कृतपरावर्त, दशम परिमर्दनं-पिष्टादिमलनमात्रम्। स्था० २४७। उदग-मदोषः। पिण्ड० ३४॥ परिमद्दा-पुणो पुणो सा संवाहणा। निशी. ११६अ। परियट्टिय-अप्पणिज्जं देति परसंतियं गेण्हावेति त्ति अणेगसो संबाधेति सा। निशी. १८८ । परिय-ट्टियं। निशी. २०५। परिमाण- परिमाणं-नियमनम्। स्था० २९१] परियट्टियलावण्णं-परिवर्तितं कालपरिणत्याऽन्यथाकृतं परिमाणकड-दशधाप्रत्याख्याने सप्तमम्। लाव-ण्य-अभिरामगणात्मकमस्येति परिमाणसंख्यानं दत्तिकवलगृहभिक्षादीनां कृतं परिवर्तितलावण्यम्। उत्त० ३३४१ यस्मिंस्तत्परिमाणकृतम्। स्था०४९८ परिमाणकृतं- परियट्टेइ-परिवर्तयति-गुणयति। ओघ० १९९| दत्त्यादिकृतपरिमाणम्। आव० ८४०| परियडति-सातत्येन पर्यटति। उत्त० २९६। परिमाणकय-दत्यादिकृतपरिमाणम्। भग० २९६। परियण-परिजनः दासादिः। भग. १६३। परिजनःपरिमासा-परिमर्शो जलधिजलस्पर्शः। ज्ञाता० १५७ परिवर्गः। उत्त०३०७ परिमितपिंडवाय-परिमितपिण्डपातः-अर्द्धपोषादिलाभः। | परियणादिकं-जेण दोसा समिज्जंति तं च परियणादिकं। औप० ३९। निशी. ९९ आ। परिमितपिंडवाविते-परिमितो-द्रव्यादिपरिमाणतः- परियत्तंति-परिय{ति य परिवर्तमाना अतिक्रामन्ति। पिण्डपातो-भक्तादिलाभो यस्यास्ति स उत्त०४७६| परिमितपिण्डपातिकः। स्था० २९८१ परियत्त-संभावना। ब्रह. १२आ। परिमियपिंडवाइय-परिमितपिण्डपातिकः परियत्तणं- इयरदिसीकरणं। निशी० २११ अ। परिमितगृहप्रवेशा-दिना वृत्तिसक्षेपवान्। प्रश्न. १०६ | परियत्ते-परावृत्तमधोमुखं स्थितम्। ओघ० १६१| परिमोस-परिमोषः। उत्त० २१४। परिवर्तिते अधोमुखीकृते। ओघ० १६८१ परिवंचिऊणं- परीत्य। आव० १९६। परियत्तेति-अधोदेशस्य तथैव पुनःस्थापनेन परियंतजगं- पर्यन्तयुगं कलियुगम्। प्रश्न० ५१। परिवर्तयति। ज्ञाता०९४१ परियंति-पर्यटन्ति। उत्त० ५५३ परियर- परिकरः-कवचः। प्रश्न. ४७। परिकरः। उत्त परियंदा-रमयति क्रीडयति उल्लापयति वा। आव० ८२४। २१६॥ परियंदिज्जमाण-स्तूयमानः। राज०१४८१ परियरबंध- परिकरबन्धः-विशिष्टनेपथ्यरचना। अनुयो. परिय-पर्यायः द्वारम्। सूत्र० ५। १४३ परियच्छिज्जइ-परीक्ष्यते परिज्ञायते। आव०६२८१ परियल्ल- पर्यटनः। निशी. १८५आ। परावर्तकः। परियढें- परिवर्तनम्। विपा० ३७ वेष्टनम्। ओघ० २१४१ परियट्टइ-पर्यटति पौनःपन्येन भ्रमति। भग० ९५ परियस्सअ-परिपार्श्वतः। भग०६३० परियट्टण-पूर्वाधीतस्यैव । परियाइणया- पर्यादानता पर्यादानंसूत्रादेरविस्मरणनिजरार्थमभ्यासः परिवर्तनम्। स्था० यथायोगमङ्गप्रत्यङ्गैर्लोमा-हारादिना समन्ततः १९०| पुद्गलादानं तद्भावः। प्रज्ञा० ५४४| मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [205] "आगम-सागर-कोषः" [३]
SR No.016135
Book TitleAgam Sagar Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepratnasagar, Dipratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2018
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationDictionary & agam_dictionary
File Size5 MB
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