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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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घयविक्किणओ-घृतविक्रायकः। आव० ४२७॥ | घसिरो- बहुभक्खगो। ओघ० ९८१ निशी० २०१ अ। घरंतरं-घरंतरा उपरेण जंतं घरंतरं। निशी. १८७ घसो- भूराजिः। जीवा० २८२ स्थलादधस्तादवतरणम्। घर-गृहाणि सामान्यजनानां सामान्यानि वा। अनुयो. आचा० ३३८५ १५९। गृहम्। आव० ५८१, ८४५। गृह-सामान्यम्। प्रश्न. | घाए- घातः-गमनम्। सूर्य०८, ४९।
घाओ-घाताः-प्रमाराः। ज्ञाता०६९। संपीडनम्। ओघ. घरओ- गृहम्। आव० ३९१||
१३६] घरकुटीए-बहिरवस्थितं घनकादि, अथवा
घाड-घाट:-मस्तकायववविशेषः। पुरुषादिवधः। ज्ञाता० तत्कलहिकान्त-र्गतकुट्यां वा निवसति। आव० ५७ १३८ घरकोइल- गृहगोधिका। पिण्ड० १०३
घाडामुह- घाटामुख-शिरोदेवविषयः। भग० ३०८। घाटाघरकोइलओ- गृहकोकिलः-गृहगोधा। आव० ३८९। मुखं-कृकाटिकावदनम्। जम्बू. १७०| घरकोइलिआ- गृहकोकिलिका-घरोलिका। ओघ० १२६। घाडिए-मित्रम्। निशी. ७८ अ। घरकोइलिया-गिहिकोइला। निशी. १८२ आ। गृह- घाडिय-सहचारी। ज्ञाता०८९। मित्रम्। निशी. १२७। कोकिला-गृहगोधिका। आव०७११।
घाणं-तिलपीडनयन्त्रम्। पिण्ड०१७ घ्राणं-गन्धः। प्रज्ञा घरकोइलो- गृहकोकिला। आव०६४१|
६०१। घ्राणो-गन्धो गन्धोपलम्भक्रिया वा। गन्धगुणः। घरघरओ-घरघरकः-कण्ठाभरणविशेषः। जम्बू०५२९। भग०७५३ घरचिडओ- चटकः। निशी. ३३ आ।
घाणामाड-घ्राणमयात्। स्था० ३६९। घरछाइणिया- गृहच्छादनिका। उत्त०१४७)
घाणिदिए-ध्राणेन्द्रियम्। प्रणा० २९३। घरछादणिया- गृहच्छादनिका। आव० ३४३।
घात-हन्यन्ते प्राणिनः स्वकृतकर्मविपाकेन यस्मिन् घरजामाउ- गृहजामाता। ज्ञाता०२०१|
घातः-नरकः। सूत्र. १२८१ घरट्ट-घंटी, यन्त्रविशेषः। ओघ० १६५। भ्रमणकल्पम्। घातिकर्म- वेदनीयादिकर्म। प्रज्ञा० ५६५) दशवै० ११४॥
घातो-घातः-देशतो घातनम्। प्रश्न. १३७। घरणी- गृहिणी। आव० २२४।
घाय- घात्यन्ते-व्यापादयन्ते नानाविधैः प्रकारैर्यस्मिन् घरवइ- गृहाणां वृतिः। बृह. १८४ ।
प्राणिनः स घातः-संसारः। सूत्र० १६१। घरवगडा- गृहवगडा-गृहवृतिपरिक्षेपः। बृह. ३०९ आ। घायए- चातकः-योऽन्येन घातयति। जम्बू. १२३। घरसमुदाणिया- गृहसमुदान-प्रतिग्रहम्। औप० १०६) घायओ- घातकः-योऽन्येन घातयति। जीवा० २८० घरा- गृहाणि सामान्यतः जम्बू. १०७। गृहाणिप्रसादाः। | घायणा-घातना-प्राणवधस्य षष्ठः पर्यायः। प्रश्न. ५ दशवै. १९३। गृहाणि सामान्यजनानां सामान्य वा। भग. | घालती- गृहीतभाण्डाः। निर० २५० ૨૨૮૫
घास- ग्रासम्-आहारम्। उत्त०६०६। ग्रासम्। उत्त० २९४१ घरास-घरावासो। निशी. २०५आ। गृहवासः। ब्रहः २०७ घासाः-बृहत्यो भूमिराजयः। आचा० ४११। ग्रस्यत इति
ग्रासः-आहारः। सूत्र०४९। औप० ३८१ घरोइला-भुजपरिसर्पविशेषः। प्रज्ञा० ४६।
घिसिसिखासे- ग्रीष्मकाले, शिशिरकाले, वर्षाकाले। ओघ. घरोलिका- गृहकोकिलिका। ओघ. १२६)
२०५४ घरोलिया-भजपरिसर्पतिर्यग्योनिकः। जीवा०४०। | प्रिंसु- ग्रीष्मे। उत्त० १२३॥ घर्मा-आद्यभूमिः। आव०६००
घिणा-घृणा-पापजुगुप्सालक्षणा। प्रश्न. ५ आव० २५१| घसा-जत्थ एगदेसे अक्कममाणे सो पदेसो सव्वो सलइ | घिणीअण्णो-जीवदयालु। निशी० १२० अ।
सा। दशवै० १०२। शुषिरभूमिः । दशवै० २०५। | घीरोलिय- गृहकोकिलिकाः-गृहगोधिकाः। प्रश्न० ८५ घसिरं- ग्रसिता-बहलक्षी। बृह. २४८ अ।
| घुटकः- गुल्फः। प्रश्न० ८०
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मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]