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________________ ही याकिनी महत्तरा के रात्रि में आने का कारण पूछा। महत्तरा ने कहा, महाराज ! मुझे प्रायश्चित्त लेना है। मेरे पैर के नीचे दबकर एक मेंढ़क की हत्या हो गई है। आचार्य श्री ने कहा, इसका प्रायश्चित्त आप प्रभात में करें। याकिनी महत्तरा ने कहा, महाराज ! जीवन का भरोसा ही कहां है ? क्या यह सुनिश्चित है कि मैं प्रभात तक जीवित रहूंगी ही? आचार्य हरिभद्र को द्वार खोलना पड़ा। उन्होंने मातृ स्वरूपा महत्तरा को तीन उपवास का दण्ड प्रदान किया। इस पर याकिनी महत्तरा ने कहा, महाराज! तुच्छ जीव की अजाने में हुई हत्या का इतना बड़ा दण्ड? आचार्य हरिभद्र ने कहा, पञ्चेन्द्रिय जीव के वध का न्यूनतम यही प्रायश्चित्त है। उपयुक्त भूमिका तलाश कर याकिनी महत्तरा ने कहा, महाराज ! एक क्षुद्र जीव के अनजाने से हुए वध का यह दण्ड है तो 1444 मानवों की क्रोध पूर्वक की गई हत्या का क्या प्रायश्चित्त होगा? __याकिनी महत्तरा की इस सामयिक बात ने आचार्य हरिभद्र के नेत्र खोल दिए। वे तत्क्षण संभल गए। उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं को मुक्त कर दिया और अपने क्रोध और मर्यादा-प्रतिकूल उपक्रम के लिए आलोचना-प्रायश्चित्त द्वारा आत्म-शुद्धि की। आचार्य हरिभद्र ने कई आगमों पर टीकाएं लिख कर आगमों में प्रवेश को सरल बनाया। वे जैन परम्परा के प्रथम टीकाकार माने जाते हैं। टीका साहित्य के अतिरिक्त भी उन्होंने विभिन्न विषयों पर प्रचुर मात्रा में साहित्य सृजन किया। जैन परम्परा में योग पर कलम चलाने वाले वे प्रथम आचार्य हैं। योग विषय पर उनके कई ग्रन्थ हैं जो अद्भुत हैं। आचार्य हरिभद्र को 1440 ग्रन्थों का रचयिता माना जाता है। ललिग नामक एक श्रावक रात्रि में उपाश्रय में मणि रख जाता था, जिसके प्रकाश में आचार्य श्री साहित्य सृजन करते थे। आचार्य हरिभद्र का समय वी.नि. की तेरहवीं शताब्दी माना जाता है। -प्रभावक चरित्र हरिराजा हरिवंश का आद्य पुरुष जिसके नाम पर यह वंश चला। हरि कैसे राजा बना यह एक रोचक प्रकरण है। कहते हैं कि पूर्वजन्म में वह कौशाम्बी नगर का राजा सुमुख था। किसी समय वह राजा वीरक नामक माली की पत्नी वनमाला के रूप पर आसक्त हो गया और उसे अपनी रानी बनाकर महल में रख लिया। वीरक वनमाला के विरह में बावला बना गली-गली उसे पुकारता हुआ भटकने लगा। एक बार जब वीरक अपनी पत्नी को पुकारता हुआ राजमहल के नीचे से गुजर रहा था तब राजा वनमाला के साथ महल के गवाक्ष में बैठा था। वीरक की स्थिति देख उसे अपनी भूल पर विचार उत्पन्न हुआ। पर तत्क्षण विद्युत्पात से राजा सुमुख और वनमाला की मृत्यु हो गई। दोनों मरकर हरिवर्ष क्षेत्र में युगल रूप में जन्मे। उधर वीरक मरकर किल्विषी देव हुआ। ज्ञान बल से उसने हरिवर्षीय युगल के रूप में राजा और अपनी पत्नी को देखा। प्रतिशोध लेने के लिए उसने एक विचित्र निर्णय लिया। उसने उस युगल का अपहरण कर भरत क्षेत्र के चम्पापुर में पहुंचाया और घोषणा की कि उक्त युगल को राजा और रानी बनाया जाए। हरिक्षेत्र से आहत होने से वह हरिराजा कहलाया। देव ने युगल का आकार भरतक्षेत्रानुरूप कर दिया था। देव के इंगित पर नागरिकों ने राजा रानी को मद्य और मांसप्रिय बना दिया। फलतः राजा मरकर नरक में गया। इस प्रकार वीरक ने अपना प्रतिशोध लिया। इसी हरिराजा के नाम पर हरिवंश चला जिसमें आगे चलकर कई बड़े-बड़े राजा और महापुरुष पैदा हुए। ... 718 -... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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