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________________ अमरसेन (वयरसेन) हस्तिनापुर के राजा शूरसेन का पुत्र । उसका एक लघुभ्राता था-वयरसेन। इन दोनों कुमारों की माता का नाम विजया था। दोनों कुमार धीर, वीर और गुणी थे। परिवार और प्रजा में दोनों भ्राताओं का विशेष सम्मान था। राजा की लघु रानी का नाम निरंकुशा था। उसके एक पुत्र था-इन्दुसेन। निरंकुशा पर राजा का विशेष अनुग्रह भाव था। पर निरंकुशा देह से उजली होकर भी मन से काली थी। वह अमरसेन और वयरसेन के सम्मान से मन ही मन जलती रहती थी। एक दिन उसने स्वांग रच कर अमर और वयर पर आरोप मढ़ दिया कि उन दोनों ने उसके साथ कुचेष्टा करने का प्रयास किया है। विवेकान्ध राजा ने बिना सत्य की जांच किए ही चाण्डाल को आदेश दे दिया कि वह अमरसेन और वयरसेन, दोनों को जंगल में ले जाकर उनका वध कर दे। चाण्डाल दोनों कुमारों को जंगल में ले गया, पर वह उनकी हत्या नहीं कर सका। उसने दोनों कुमारों को देशान्तर भाग जाने के लिए कहा और वह दो मृगशावकों की आंखें निकालकर राजा के पास पहुंचा। उन्हें पुत्रों की आंखें समझकर राजा संतुष्ट हो गया कि दुष्टों का अन्त हो गया है। उधर दोनों कुमार-अमर और वयर निर्जन वनों को नापते हुए गहरे जंगल में पहुंच गए। रात्रि घिरने लगी तो दोनों भाइयों ने बारी-बारी से सोने और पहरा देने का निर्णय किया। रात्रि के पूर्वार्द्ध भाग में अमरसेन सो गया और वयरसेन जागकर पहरा देने लगा। जिस वृक्ष के नीचे ये दोनों कुमार ठहरे हुए थे, उस वृक्ष पर एक शुक युगल रहता था। शुकी ने शुक से कहा, हमारे वृक्ष के नीचे दो अतिथि युवक पधारे हैं, हमें इनका आतिथ्य करना चाहिए। शुक ने कहा, तुम्हारा कथन युक्तियुक्त है। मैं अभी दो आम्र फल लेकर आता हूं, जिन्हें खाक कर एक युवक तो सातवें दिन राजपद प्राप्त कर लेगा और दूसरे के मुख से प्रतिदिन पांच स्वर्णमुद्राएं प्रकट हआ करेंगी। कहकर तोता उड गया। कछ ही देर में वह लौटा तो उसकी चोंच में दो आम फल थे। उसने वे दोनों फल वयरसेन की गोद में गिरा दिए। वयरसेन ने अमरसेन को जगाया और शुकयुगल की वार्ता का संदर्भ बताते हए दोनों भाइयों ने एक-एक फल खा लिया। प्रभात खिलते ही दोनों भाई आगे बढ़े। एक जलाशय के किनारे स्नान-कुल्ला करने लगे। कुल्ला करते हुए वयरसेन के मुख से पांच स्वर्णमुद्राएं प्रगट हुईं। इससे दोनों कुमारों को पक्षीयुगल की बातों पर पूर्ण विश्वास हो गया। भ्रातृयुगल आगे बढ़े। कंचनपुर नामक नगर में पहुंचे। अमरसेन उद्यान में विश्राम करने लगा। वयरसेन ने विचार किया, अमरसेन को तो शीघ्र ही राजपद की प्राप्ति होने वाली है। अब उसे भी स्वतंत्र विचरण कर अपने भाग्य की चमक की परख करनी चाहिए। ऐसा विचार कर वह चल दिया और कंचनपर के बाजारों में घमने लगा। अपने गह-गवाक्ष में बैठी एक गणिका की दष्टि वयरसेन पर पडी। गणिका ने दासी को भेजकर वयरसेन को अपने पास बुला लिया। वयरसेन ने उसे पांच स्वर्णमुद्राएं भेंट की। गणिका ने उसे अपने रूप का दीवाना बना लिया। वयर प्रतिदिन गणिका को पांच स्वर्णमुद्राएं देता और सुखपूर्वक वहीं पर रहता। उधर कंचनपुर नरेश निःसंतान अवस्था में ही कालधर्म को प्राप्त हो गया तो सुसज्जित हस्तिनी छोड़कर नए राजा के चयन का उपक्रम नागरिकों ने किया। हस्तिनी ने उद्यान में विश्रामरत अमरसेन के गले में पुष्पाहार पहना राजा के रूप में उसका चयन किया। अमरसेन कंचनपुर के राजसिंहासन पर बैठकर प्रजा का पालन करने लगा। ____कहावत है कि गणिका कभी एक पुरुष से संतुष्ट नहीं होती है। वयरसेन से प्रतिदिन पांच स्वर्णमुद्राएं पाकर भी वह गणिका संतुष्ट नहीं बनी। एक दिन उसने वयरसेन से प्रतिदिन बिना कमाए मुद्राएं ...30 ... .. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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