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________________ वि.सं. 1719 आश्विन शुक्ल चतुर्दशी रविवार के दिन हुआ। तातेर गौत्रीय जौहरी श्री देवीसिंह जी आपके पिता तथा श्रीमती कमलादेवी आपकी माता थी। बाल्यावस्था से ही अमरसिंह एक होनहार बालक थे। अध्ययन रुचि प्रबल थी। उन्होंने संस्कृत, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। बाल्यकाल में ही तत्युगीन परम्परानुसार आपको विवाहसूत्र में बांध दिया गया था। परन्तु वह सूत्र आपके लिए बन्धन नहीं बन सका। आपने आचार्य श्री लालचन्द जी महाराज का प्रवचन सुनकर सम्बोधि प्राप्त की और मात्र इक्कीस वर्ष की अवस्था में आपने सपत्नी ब्रह्मचर्य व्रत का नियम ले लिया। _ वि.सं. 1741 चैत्र कृष्णा दशमी के दिन आपने आचार्य श्री लालचन्द जी महाराज के सान्निध्य में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षित होने पर आप गुरुसेवा और स्वाध्याय में प्राणपण से समर्पित हो गए। दीक्षा पर्याय के कछ ही वर्षों में आप जैन जगत के यशस्वी मनियों में गिने जाने लगे। गरुदेव के स्वर्गगमन के पश्चात अमृतसर नगर में संवत् 1762 में आप आचार्य पाट पर प्रतिष्ठित हुए। __ आचार्य श्री अमरसिंह जी महाराज ने राजाओं से लेकर रंकों तक को प्रभावित किया। मुगल बादशाह बहादुरशाह आचार्य श्री से बहुत प्रभावित था। कई कठिन प्रसंगों पर आचार्य श्री ने बादशाह का मार्गदर्शन किया था। जोधपुर के महामंत्री खींवसी जी भण्डारी आचार्य श्री के श्रावकों में प्रमुख थे। उन्हीं की विशेष प्रार्थना पर आचार्य श्री ने राजस्थान में धर्मोद्योत किया। जयपुर, पाली, जोधपुर, अजमेर आदि नगरों में शुद्ध धर्म की ज्योत जलाई और जड़ पूजा के विश्वासी मतों का निरसन किया। ___आचार्य श्री की दृष्टि में तेज और वाणी में ओज था। उन्होंने सहस्रों लोगों को शुद्ध धर्म का अनुयायी बनाया। अनेक को कष्टमुक्त किया। बलिप्रथा आदि से अनेकों को मुक्ति दी। आचार्य श्री अपने युग के एक तेजस्वी, वर्चस्वी और यशस्वी संत थे। इतिहास में उनका नाम सदा अमर रहेगा। वि.सं. 1812 में पांच दिन के संथारे के साथ अजमेर नगर में उनका स्वर्गारोहण हुआ। -जैन जगत के ज्योतिर्धर आचार्य (देवेन्द्र मुनि) (ख) अमरसिंह जी महाराज (आचार्य) आप का जन्म अमृतसर (पंजाब) में सं. 1862 में हुआ। श्रीमान बुद्धसिंह जी आपके पिता तथा श्रीमती कमदिवी आपकी माता थी। मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में ज्वालादेवी नामक कन्या से आपका पाणिग्रहण हुआ। क्रम से आपको पांच संतानों -दो पुत्रियों और तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई। दो पुत्र तो जन्म के कुछ दिन बाद ही चल बसे। तृतीय पुत्र भी आठ वर्ष की अवस्था में स्वल्प रुग्णता के बाद दिवंगत हो गया। इस घटना ने अमरसिंह के अचल धैर्य को चलायमान कर दिया। संसार की नश्वरता का दर्शन उनके लिए आत्मदर्शन का राजमार्ग सिद्ध हुआ। दिल्ली में विराजित आचार्य श्री रामलाल जी के सान्निध्य में पहुंचकर उन्होंने सं. 1899 वैशाख शुक्ल द्वितीया के दिन दीक्षा धारण कर ली। शीघ्र ही उन्होंने जैनागमों का पारायण कर लिया। वे एक प्रभावशाली मुनि के रूप में मान्य हुए। उनके 12 शिष्य हुए। सं. 1913 में दिल्ली में ही आपको पंजाब परम्परा का आचार्य नियुक्त किया गया। उत्तर भारत में आज का समस्त मुनि-मण्डल आपका ही शिष्य-प्रशिष्य परिवार है। छत्तीस वर्षों के संयम जीवन में आपने पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में विचरण कर सहस्रों लोगों को सत्पथ का पथिक बनाया। सं. 1938 में आषाढ शुक्ला द्वितीया के दिन आपका स्वर्गवास हुआ। न चरित्र कोश... 0.29 ..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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