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________________ सुप्रभ (बलदेव) चतुर्थ बलेदव। (दखिए-पुरुषोत्तम वासुदेव) (क) सुप्रभा चम्पानगरी निवासी श्रेष्ठि पुत्र गुणभद्र की अर्धांगिनी, नारी के समस्त गुणों में दक्षा, सुरूपा और सुशीला नारी। एक बार गुणभद्र को व्यापारिक-कार्य के लिए विदेश जाना पड़ा। पति की अनुपस्थिति में सुप्रभा पर एक विकट कष्ट आन पड़ा। उसी नगरी के रहने वाले भवभूति नामक एक कामी-कपटी क्षत्रिय युवक ने एक क्लीव को अपना सहयोगी बनाकर सुप्रभा को अपनी पत्नी बनाने का षडयन्त्र रचा। षडयन्त्र के अनुसार क्लीव ने एक बन्द रथ में बैठकर नारी स्वर में नगर भर में यह दुष्प्रचार कर दिया कि वह गुणभद्र वणिक की पत्नी सुप्रभा है, वह स्वेच्छा से अपने पति का त्याग कर आज से सातवें दिन भवभूति को अपने पति के रूप में स्वीकार करेगी। क्योंकि रथ चारों ओर से बन्द था इसलिए लोग सत्य को नहीं जान सके और सुप्रभा के निर्णय पर अवर्णवाद करने लगे। उक्त सूचना जब तक सुप्रभा के कानों तक पहुंची तब तक जन-जन के मुख पर उसके लिए घृणा व्याप्त हो चुकी थी। पति की अनुपस्थिति में सुप्रभा के लिए उक्त दुःसह परिस्थिति से पार पाना सरल नहीं था। उसने अपने माता-पिता का आश्रय लिया पर उनसे भी उसे फटकार ही मिली। आखिर अपने पति के एक विश्वस्त मित्र को उसने अपने पति के पास भेजा। वस्तुस्थिति से परिचित बनकर गुणभद्र अविलम्ब अपने नगर में पहुंचा। उसने सुप्रभा को धैर्य बंधाया। रात्रि के अन्धकार में अपनी पत्नी को साथ लेकर वह नगर नरेश यशोवर्म के पास पहुंचा। यशोवर्म एक बुद्धिमान और न्याय परायण नरेश थे। सुप्रभा के दर्शन-वचन से ही वे विश्वस्त हो गए। दूसरे ही दिन उन्होंने अद्भुत बुद्धिमत्ता से क्लीव को रथ से खींच लिया। षडयन्त्र के अनावृत्त होते ही नागरिक सत्य से परिचित बन गए। सुप्रभा का यश सर्वत्र फैल गया। क्लीव और भवभूति को अपमानित, तिरस्कृत और ताड़ित करके राजा ने अपने देश से निर्वासित कर दिया। (ख) सुप्रभा महाराज दशरथ की रानी और शत्रुघ्न की जननी। (देखिए-दशरथ) (ग) सुप्रभा द्वारिका नगरी के महाराज रुद्र की पटरानी। (देखिए-स्वयंभू वासुदेव) सुबाहु कुमार ____ महावीर युगीन हस्तिशीर्ष नगर के राजा महाराज अदीनशत्रु और उनकी रानी धारिणी का पुत्र, एक अत्यन्त सुकुमार और सुरूप राजकुमार। पुष्पचूला प्रमुख उसकी पांच सौ रानियां थीं जिनके साथ रहकर वह देव-दुर्लभ सुखों का भोगोपभोग करता था। एक बार जब भगवान महावीर अपने मुनि संघ के साथ हस्तिशीर्ष नगर में पधारे तो माता-पिता और पत्नियों के साथ सुबाहु कुमार प्रभु के दर्शनों के लिए गया। सुबाहु की सुकुमारता और सुरूपता देखकर गौतम स्वामी सहित सभी अणगार सुप्रसन्न बन गए। अज्ञ-सुज्ञ श्रमणों के मनोभावों के पारखी इन्द्रभूति गौतम ने प्रभु से प्रश्न किया, प्रभु ! सुबाहु कुमार की सुकुमारता और सुरूपता देखकर हम श्रमण भी अत्यन्त हर्ष अनुभव कर रहे हैं। सुबाहु कुमार ने ऐसा क्या पुण्य किया है कि वह निर्मोही अणगारों का भी प्रीतपात्र बन रहा है? ... जैन चरित्र कोश ... 1665...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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