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________________ दृढ़धर्मानुरागिणी श्राविका थी। उसके पति धन ने जब उससे प्रव्रज्या की अनुमति मांगी, उस समय वह गर्भवती थी। जिनानुराग/धर्मश्रद्धा की प्रबलता के कारण उसने अपने पति को मुनिदीक्षा धारण करने की अनुमति प्रदान कर दी। यथासमय उसने पुत्र को जन्म दिया। कहते हैं कि पुत्र को जन्म ग्रहण करने के कुछ समय बाद ही जातिस्मरण ज्ञान हो गया। मातृ-ममत्व से मुक्ति पाने के लिए नवजात शिशु ने अनवरत रोदन प्रारंभ कर दिया। छह मास की अवधि सुनन्दा के लिए छह युगों के समान व्यतीत हुई। आखिर धनगिरि की झोली में पुत्र को रख कर सुनन्दा ने कह दिया कि-पुत्र का दायित्व पिता पर भी होता है, अब वही अपने पुत्र को संभालें। बालक वज्र को जो चाहिए था वह प्राप्त हो गया था। उसने कृत्रिमरोदन बन्द कर दिया। उसका पालन-पोषण जैन संघ की महिलाओं द्वारा हुआ। ____ कुछ वर्ष बाद अपने तेजस्वी पुत्र को प्राप्त करने के लिए सुनन्दा ने कई प्रयास किए। विवाद राजदरबार तक गया। आखिर बालक वज्र के निर्णयानुसार सुनन्दा को अपने प्रयास में सफलता प्राप्त नहीं हुई। पुत्र के धर्मानुराग को देखकर सुनन्दा भी विरक्त हो गई और उसने भी जिनदीक्षा धारण कर ली। विशुद्ध संयम की परिपालना कर वह सद्गति की अधिकारिणी बनी। (देखिए-वज्रस्वामी) सुनक्षत्र अणगार भगवान महावीर का शिष्य जिसे गोशालक ने तेजोलेश्या प्रगट कर भस्म कर दिया था। (देखिए- गोशालक) सुपार्श्वनाथ (तीर्थंकर) सप्तम तीर्थंकर । वाराणसी नरेश प्रतिष्ठ और उनकी रानी पृथ्वी के आत्मज। सुपार्श्व ने सुदीर्घ काल तक राज्य का संचालन किया और बाद में दीक्षित होकर केवलज्ञान प्राप्त कर धर्मतीर्थ का प्रवर्तन किया। भगवान के 95 गणधर थे जिनमें विदर्भ नामक गणधर प्रमुख थे। सुन्दरबाहु के भव में भगवान ने तीर्थंकर गोत्र का अर्जन किया था। वहां से ग्रैवेयक देवलोक का एक भव करके सुपार्श्वनाथ के रूप में जन्मे। पांच सौ मुनियों के साथ भगवान सम्मेद शिखर से सिद्ध हुए। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र 4 सुप्रतिबुद्ध (आचार्य) __कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार आचार्य सुहस्ती के बाद गणाचार्य के रूप में सुप्रतिबुद्ध का नामोल्लेख हआ है। जिस एक और आचार्य के नाम का वहां उल्लेख हुआ है वे हैं आचार्य सुस्थित। वस्तुतः आर्य सुप्रतिबुद्ध और आर्य सुस्थित दोनों सहोदर और गुरु बन्धु थे। वे काकन्दी नगरी के राजकुमार और आचार्य सुहस्ती के शिष्य थे। दोनों में अतिशय प्रीति थी। दोनों मुनिवर साथ-साथ तप-जप करते थे और साथ-साथ विचरण करते थे। महाराज खारवेल द्वारा कुमारगिरि पर्वत पर आहूत महाश्रमण सम्मेलन में ये दोनों मुनिवर उपस्थित हुए थे। बन्धुद्वय आचार्य प्रवर ने बहुत वर्षों तक श्रमण संघ को सफल नेतृत्व प्रदान किया और जिनशासन की प्रभूत प्रभावना की। -कल्पसूत्र स्थविरावली सुप्रतिष्ठित गाथापति ___श्रावस्ती नगरी के एक धनी गाथापति जो भगवान महावीर के पास प्रव्रजित हुए और सत्तावीस वर्ष का संयम पालकर विपुलाचल से सिद्ध हुए। -अन्तगड सूत्र, वर्ग 6, अध्ययन 13 ... 664 ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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