SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 703
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का अपूर्व संगम था। राजपुरोहित की कन्या उसके रूप पर मुग्ध हो गई, पर उसने उसकी ओर आंख तक उठाकर नहीं देखा। इस पर पुरोहित-कन्या ने राजकुमार पर दोषारोपण कर दिया। पुरोहित की शिकायत पर राजा ने राजकुमार से स्पष्टीकरण पाए बिना ही उसे देश-निर्वासन का दण्ड दे दिया। वन में राजकुमार को एक मुनि के दर्शन होते हैं जिनसे वह परधन को मिट्टी के समान तथा परदारा को माता के समान मानने के नियम ग्रहण कर लेता है। उसके बाद राजकुमार अनेक देशों का भ्रमण करता है। उस यात्रा में उसके साहस, शौर्य और परोपकार वृत्ति के पुनः पुनः दर्शन होते हैं। वह स्वयं कष्ट झेलकर भी दूसरों को सुख पहुंचाता है। मधुपुर नगर में वह राक्षस का वध करके नगर की जनता को अभय बनाता है। अन्य अनेक प्रसंगों पर वह परोपकार के लिए अपने जीवन को भी संकट में डाल देता है। मणिपुर नरेश उसका शत्रु बन जाता है और उसकी अनमोल वस्तुओं को पाने के लिए उसकी हत्या के अनेक षडयन्त्र रचता है। परन्तु राजकुमार सुधासिन्धु उस पर भी उपकार ही करता है। बारह वर्षों तक देशाटन करके तथा अनेक राज्यों और राजकुमारियों का स्वामी बनकर सुधासिन्धु अपने नगर में लौटा। उसने अनेक वर्षों तक पृथ्वी के विशाल भूभाग पर न्याय और नीति से शासन किया। आयु के उत्तर पक्ष में संयम धारण कर वह सौधर्म कल्प में देव बना। वहां से महाविदेह में मनुष्य जन्म धारण करके और चारित्र की आराधना करके वह मोक्ष प्राप्त करेगा। (क) सुनंद हस्तिनापुर का एक प्राचीनकालीन नरेश । (देखिए-उज्झित कुमार) (ख) सुनंद प्रभु पार्श्वनाथ के प्रमुख श्रावकों में से एक। (क) सुनन्दा पृथ्वीभूषण नगर के राजा कनकध्वज की इकलौती पुत्री। सुनन्दा जब बालिका थी तो उसने एक व्यक्ति को अपनी पत्नी की निर्ममता पूर्वक पिटाई करते देखा। उस दृश्य को देखकर राजकुमारी के कोमल मन पर यह विश्वास-रेखा खिंच गई कि पुरुष स्वभावतः ही दुष्ट होते हैं। उसने निर्णय किया कि वह कभी विवाह नहीं करेगी। अपने निर्णय से उसने अपने माता-पिता तथा सहेलियों को भी अवगत करा दिया। पर किसी ने भी उसके निर्णय को गंभीरता से नहीं लिया। सुनन्दा युवा हुई। एक दिन उसने एक प्रेमीयुगल को प्रेमालाप करते देखा तो उसका बाल निर्णय बालू का तटबन्ध सिद्ध हो गया। उसके मन के आकाश पर वासना का वायु बहने लगा। सहसा गवाक्ष से नीचे झांकते हुए उसकी दृष्टि रूपसेन नामक सर्वांग सुन्दर युवक पर पड़ी। वह उसके प्रेमपाश में आबद्ध बन गई। रूपसेन भी सुनन्दा के रूप पर मोहित हो गया। कौमुदी महोत्सव के अवसर पर सुनन्दा और रूपसेन बहाना करके नगर में ही रुक गए। सुनिश्चित योजनानुसार सुनन्दा ने महल के पिछवाड़े से रस्सी निर्मित सीढ़ी लटका दी। उधर से एक जुआरी गुजर रहा था। रस्सी की सीढ़ी को महल के पिछवाड़े से लटकते देख कर जुआरी उस सीढ़ी से चढ़कर महल में पहुंच गया। अन्धेरे कक्ष में राजकुमारी ने जुआरी को ही रूपसेन मानकर स्वयं को उसके अर्पित कर दिया। जुआरी राजकुमारी के आभूषणों पर हाथ साफ करके नौ दो ग्यारह हो गया। रूपसेन घर से महल के लिए चला तो मार्ग में एक खण्डहर के सहसा गिर जाने से उसके नीचे दबकर ... 662 .. - जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy