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________________ (ख) सुदर्शना ___ द्वारिका नरेश सोम की रानी। (देखिए-पुरुषोत्तम वासुदेव) (ग) सुदर्शना (आर्या) इनकी सम्पूर्ण कथा कमला आर्या के समान है। (देखिए-कमला आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 4 सुदृढ़ राजा द्वितीय विहरमान तीर्थंकर प्रभु युगमन्धर स्वामी के जनक । (देखिए-युगमन्धर स्वामी) सुधर्मा अणगार एक उत्कृष्ट तपस्वी अणगार, जो निरंतर एक-एक मास का उपवास करते थे। (देखिए-जिनदासकुमार) -विपाक सूत्र, द्वितीय श्रुत., अ. 5 सुधर्मा स्वामी (गणधर) तीर्थंकर महावीर के ग्यारह गणधरों में पंचम गणधर। अग्निभूति, वायुभूति आदि नौ गणधर भगवान महावीर की विद्यमानता में ही सिद्ध हो गए थे और प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम भगवान के निर्वाण प्राप्त करने की रात्रि में केवली बन गए थे। केवली संघीय दायित्व के संवहन से परिमुक्त बन जाते हैं अतः भगवान के प्रथम पट्टधर सुधर्मा स्वामी बने। सुधर्मा स्वामी कोल्लाक सन्निवेश वासी वेश्यायन गोत्रीय धनमित्र ब्राह्मण के पुत्र थे। उनकी माता का नाम भहिला था। वे अपने युग के एक बहत बड़े विद्वान थे। वेद-वेदांगों और शास्त्रों के मर्मज्ञ थे। इतना सब होने पर भी उनके मस्तिष्क में एक संदेह कण्टक गड़ा था। उनका संदेह था-प्राणी जैसा इस भव में होता है परभव में वैसा ही रहता है या उसका स्वरूप भिन्न हो जाता है। इस संदेह का वे निवारण नहीं कर पाए थे। इन्द्रभूति आदि विद्वान ब्राह्मण जब भगवान महावीर को परास्त करने उनके पास पहुंचे और स्वयं परास्त बनकर उनके शिष्य बन गए तो सुधर्मा पर ब्राह्मण धर्म के गौरव की रक्षा का दायित्व आ गया। सो वे भी भगवान को शास्त्रार्थ में पराजित करने के लिए अपनी शिष्य मण्डली के साथ भगवान के पास पहुंचे। भगवान ने सुधर्मा को देखकर कहा-सुधर्मा ! तुम स्वयं संदेहशील हो। पहले अपना संदेह तो मिटा लो, बाद में अन्य कुछ सोचना। और भगवान ने उनके संदेह को मिटा दिया। संदेह के दूर होते ही सुधर्मा का मानस निर्भार और सुनिर्मल बन गया। उन्होंने भगवान को अपना गुरु मान लिया और मुनि बनकर स्व-पर कल्याण की साधना में रत बन गए। भगवान महावीर के श्रीमुख से धर्म के स्वरूप को अर्थ रूप में ग्रहण कर सुधर्मा स्वामी ने उसे सूत्र रूप में ग्रथित किया। गण के नेता होने से वे गणधर कहलाए। भगवान के निर्वाण के बाद सुधर्मा के शिष्य जम्बू स्वामी ने उनसे प्रश्नोत्तर के माध्यम से आगम साहित्य की परम्परा को स्वरूप प्रदान किया। आज जो आगम उपलब्ध हैं वे सुधर्मा प्रणीत हैं। अतः उनका जगत पर महान उपकार है। भगवान के निर्वाण के बारह वर्ष बाद सुधर्मा केवली बने और आठ वर्ष केवली अवस्था में रहकर सम्पूर्ण सौ वर्ष की आयु में सिद्ध हुए। -आवश्यक चूर्णि सुधासिन्धु ____ कंचनपुर नगर का धीर, वीर और चारित्र सम्पन्न युवराज । सुधासिन्धु का तन और मन रूप और गुणों .. जैन चरित्र कोश ... --661 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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