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________________ सुजात मुनि ने निरतिचार संयम की आराधना द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। राजा और मंत्री को भी अपने आप पर ग्लानि हुई। सच्चे हृदय से संसार का त्याग कर उन्होंने भी मुनिव्रत अंगीकार किए और उत्कृष्ट तप से समस्त कर्मों को निर्जरित कर वे भी परमपद के अधिकारी बने। -धर्मरत्न प्रकरण टीका,गाथा 9 (ख) सुजात कुमार सुजात कुमार वीरपुर नामक नगर का युवराज था। उसके पिता महाराज वीरकृष्णमित्र एक नीतिनिपुण शासक थे। उसकी माता का नाम श्रीदेवी था जो नारी के सभी सद्गुणों से सम्पन्न तथा निर्ग्रन्थ धर्म की अनुगामिनी थी। ___युवराज सुजात कुमार के जीवन में समस्त प्रकार की समृद्धि थी। समस्त मानवीय गुण उसके जीवन में मौजूद थे। उसके जीवन में महनीय सद्गुणों की विद्यमानता के साथ-साथ उसका रूप भी अत्यन्त मनोहर था। सहज ही वह सबकी प्रीति और श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ था। उसका विवाह बलश्री प्रमुख पांच सौ राजकन्याओं के साथ सम्पन्न हुआ था। उत्कृष्ट सांसारिक भोगोपभोगों का रसास्वादन करते हुए वह जीवन यापन कर रहा था। __ एक बार ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी अपने मुनि संघ के साथ वीरपुर नगर में पधारे और मनोरम नामक उद्यान में विराजमान हुए। प्रभु के आगमन का सुसंवाद जानकर राजा और रानी सहित सभी नगर निवासी उनके दर्शन-वन्दन के लिए उद्यान में गए। युवराज सुजात भी भगवान के दर्शनों के लिए उपस्थित हुआ। प्रभु का प्रवचन सुनकर राजा, रानी और नागरिक अपने-अपने स्थान को लौट गए। सुजात कुमार पर प्रभु के वचनों का विशेष प्रभाव पड़ा। प्रभु को वन्दन कर उसने सविनय निवेदन किया-भगवन्! आपके वचन यथारूप और पूर्ण प्रामाणिक हैं। परन्तु मेरे अन्दर अभी इतना सत्त्व नहीं है कि मैं श्रमणधर्म का आराधन कर सकूँ। मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे श्रावकधर्म में दीक्षित करने की कृपा करें। सुजात कुमार की प्रार्थना पर भगवान ने उसे श्रावकधर्म में दीक्षित किया। प्रभु को वन्दन कर और व्रत सम्पदा को हृदय में धारण कर उल्लसित चित्त से सुजात कुमार अपने महल में लौट गया। ____ सुजात कुमार के लौट जाने पर भगवान के प्रमुख शिष्य आर्य इन्द्रभूति गणधर ने भगवान के चरणों में जिज्ञासा प्रस्तुत की-भंते! सुजात कुमार ने ऐसे कौन से शुभ पुण्य कर्म किए जिनके परिणामस्वरूप उसे ऐसे रूप, गुण और समृद्धि प्राप्त हुई है? भगवान महावीर ने फरमाया-गौतम! पूर्वजन्म में युवराज सुजात कुमार इक्षुसार नगर का ऋषभदत्त नामक गाथापति था। वह सरल और उदार था। एक बार ऋषभदत्त के घर एक मास के उपवासी पुष्पदत्त नामक अणगार पधारे। ऋषभदत्त ने उत्कृष्ट भावों से मुनि को आहार दान दिया। देवताओं ने पांच दिव्यों की वर्षा करके उसके उत्कृष्ट दान की प्रशस्ति की। उसी उत्कृष्ट दान के फलस्वरूप ऋषभदत्त कालक्रम से कालधर्म को प्राप्त कर यहां सुजात कुमार के रूप में जन्मा है। इसे उसी पुण्य के फल रूप में यहां पर उत्कृष्ट ऋद्धि और अनुपम रूप की प्राप्ति हुई है। भगवान के वचन सुनकर गौतम को अपनी जिज्ञासा का समाधान प्राप्त हो गया। कालक्रम से भगवान अपने संघ सहित अन्यत्र विहार कर गए। ... जैन चरित्र कोश .. -- 655 ..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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