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________________ महासती। सीता अनिंद्य सौन्दर्य की स्वामिनी थी। उसके विवाह के लिए महाराज जनक ने स्वयंवर का आयोजन किया था। पृथ्वी के समस्त यशस्वी राजा और राजकुमार उस स्वयंवर में सम्मिलित हुए थे। जब कोई भी राजा और राजकुमार धनुष पर प्रत्यंचा नहीं चढ़ा पाया तब श्री राम ने यह काम बहुत ही सहजता से कर दिया। सीता ने श्री राम को अपना पति चुन लिया। सीता एक आदर्श कन्या तो थी ही, वह एक आदर्श पत्नी भी बनी। जब पितृवचन की रक्षा के लिए श्रीराम वन जाने लगे तो सीता ने भी पति के साथ वन में जाने का प्रण किया। कोमलांगी होते हुए भी वह वन-बाधाओं से कभी त्रसित नहीं हुई। लंकाधिपति रावण ने छल-वेश धारण कर दण्डकारण्य से सीता का हरण कर लिया। वह उसे लंका ले गया और अशोकवाटिका में उसे बन्दिनी बना दिया। सीता को रावण से उसकी पटरानी बनने के असंख्य प्रस्ताव मिले पर सीता को उन प्रस्तावों को सुनना भी स्वीकार्य न था। आखिर श्री राम और लक्ष्मण ने रावण को परास्त कर सीता को मुक्त कराया। अयोध्या लौटने पर भी महासती सीता की कष्ट कथा का अन्त न हुआ। वैदिक रामायण के अनुसार एक धोबिन के अपलाप पर और जैन रामायण के अनुसार श्रीराम की अन्य पलियों के षडयन्त्र के कारण सगर्भा सीता को पुनः एकाकी वन में धकेल दिया गया। वन में पुंडरीकिणी नरेश वज्रजंघ ने सीता को भगीनी का मान दिया और उसे अपने नगर में ले गया। वहां सीता ने लव और कुश- इन दो पुत्रों को जन्म दिया। किशोरावस्था प्राप्त करते-करते लव और कुश में अद्भुत शौर्य उतर आया। जब उन्हें सच्चाई का ज्ञान हुआ तो दोनों नन्हें वीर अयोध्या पर चढ़ आए। अयोध्या की विशाल सेना और सेनापति का उन्होंने देखते ही देखते मान मर्दन कर दिया। लक्ष्मण, राम, हनुमान आदि भी युद्ध में उतरे। पर उनका कोई शस्त्र उन नन्हें वीरों का कुछ अहित न कर सका। राम और लक्ष्मण को लगने लगा कि अब उनकी पराजय सुनिश्चित है। तब देवर्षि नारद ने श्री राम को रहस्य भेद बताया। सारा वातावरण बदल गया। पराजय भी विजय में बदल गई। आखिर पिता पुत्र गले मिले। सीता को ससम्मान लाया गया। जब श्री राम ने सीता से महलों में चलने के लिए कहा तो सीता ने कहा, जिस संदेह के कारण उसे वन में भेजा गया था, उस संदेह का निराकरण तो अब भी शेष है। महासती सीता ने अपनी पवित्रता का प्रमाण देने के लिए अग्निस्नान का संकल्प किया। विशाल अग्नि-कुण्ड तैयार किया गया। सीता ने उच्च घोष पूर्वक कहा, मैंने यदि स्वप्न में भी श्रीराम के अतिरिक्त किसी पुरुष का चिन्तन किया है तो अग्नि मुझे भस्म कर दे। कहकर सीता अग्नि में कूद गई। देखते ही देखते अग्नि कुण्ड नील-सलील जल से पूर्ण हो गया। जल के मध्य प्रगट हुए स्वर्ण सिंहासन पर बैठी सीता मुस्कुरा रही थी। इस प्रकार सीता ने अपनी पवित्रता को प्रमाणित किया। वैदिक रामायण के अनुसार उक्त घटना के बाद सीता पृथ्वी में समा गई। जैन रामायण के अनुसार सीता ने महलों में चलने के श्रीराम के प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक अस्वीकार करके प्रव्रज्या धारण की और विशुद्ध संयम और कठोर तप की साधना के द्वारा देहोत्सर्ग कर वह बारहवें स्वर्ग में सीतेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुई। भविष्य में वह गणधर पद पर अभिषिक्त बनकर मोक्ष प्राप्त करेगी। (ख) सीता द्वारिका नरेश सोम की रानी। (देखिए-पुरुषोत्तम वासुदेव) सीमन्धर स्वामी (विहरमान तीर्थंकर) बीस विहरमान तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थंकर जिनका जन्म जम्बूद्वीप के पूर्व महाविदेह क्षेत्र में पुष्कलावती ... जैन चरित्र कोश ... -647 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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