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________________ के समक्ष अपनी पराजय स्वीकार कर ली। सहस्रमल्ल ने चौर्य कर्म में शिखर छू लिए। अथाह धन उसके पास जमा हो गया पर उसके मन से शान्ति कोसों दूर थी। एक बार नगर में विशुद्ध नामक केवली मुनि पधारे। मुनि का उपदेश सुनने सहस्रमल्ल भी गया। जीवन में प्रथम बार उसे शांति का अनुभव हुआ। उसका चिंतन आत्मोन्मुखी बन चला। अशांति फैलाकर भला शांति की आकांक्षा कैसे सफलीभूत बन सकती है। मेरे लिए यही उचित होगा कि मैं लूटा हुआ समस्त धन पुनः धन के मालिकों को लौटा दूं और प्रव्रजित बनकर आत्मकल्याण करूं। उसने अपने मन के भाव मुनि से कहे। मुनि ने उसके चिन्तन की अनुमोदना की। आखिर सहस्रमल्ल ने समस्त धन राजा को अर्पित कर संयमी होने के अपने संकल्प का उसे परिचय दिया। इससे राजा ने उसे क्षमा कर दिया और उसकी दीक्षा का समुचित प्रबन्ध किया। ___सहस्रमल्ल की मां ने भी पुत्र के साथ ही प्रव्रज्या धारण की। 'कम्मे सूरा सो धम्मे सूरा' सूत्र के सच को सहस्रमल्ल ने सच सिद्ध किया। वह पापकर्म में जितना शूर था धर्मपथ पर उससे भी बढ़कर शूर सिद्ध हुआ। उसी भव में केवलज्ञान को साधकर मोक्षधाम में जा विराजा। -वर्धमान देशना सहस्रांशु रावण का समकालीन, महिष्मती नगरी का राजा । सहस्रांशु एक जिनधर्मानुयायी राजा था। वह एक हजार राजाओं का स्वामी था। उसकी रानियों की संख्या भी इतनी ही थी। दिग्विजय के लिए निकला रावण रेवा नदी के किनारे बैठकर ध्यानमुद्रा में लीन बनकर साधना कर रहा था। उधर सहस्रांशु अपनी एक हजार रानियों के साथ रेवा नदी में जलक्रीडा के लिए गया। एक साथ एक हजार रानियों के नदी में उतरने से नदी में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। रावण की ग्रीवा तक सहसा जल आ गया। उससे उसका ध्यान भंग हो गया। क्रोधित हो रावण ने सहस्रांशु पर धावा बोल दिया। प्रचण्ड युद्ध के पश्चात् सहस्रांशु रावण का बन्दी बन गया। बन्दी सहस्रांशु को रावण की सभा में उपस्थित किया गया। उसी समय शतबाहु नामक मुनि आकाश मार्ग से उस सभा में उतरे। मुनि ने धर्मोपदेश दिया और अपना परिचय देते हुए कहा कि वे महिष्मती के पूर्व शासक और सहस्रांशु के संसार पक्षीय पिता हैं। पितृ-दर्शन से सहस्रांशु विरक्त हो गया। उसके वैराग्य भाव को देखकर रावण ने उसे मुक्त कर दिया और उसकी दीक्षा का आयोजन किया। सहस्रांशु मुनिधर्म का पालन कर सद्गति का अधिकारी बना। -जैन रामायण (क) सागर इनका समग्र परिचय गौतम के समान है। (देखिए-गौतम) । -अन्तगडसूत्र, प्रथम वर्ग, तृतीय अध्ययन (ख) सागर चम्पानगरी के समृद्ध श्रेष्ठी जिनदत्त का पुत्र। (दखिए-नागश्री) (ग) सागर (कुमार) समग्र परिचय गौतमवत् है। (देखिए-गौतम) -अन्तगड सूत्र, द्वितीय वर्ग, द्वितीय अध्ययन (क) सागरचन्द्र (कुमार) बलराम का पौत्र और निषधकुमार का पुत्र । सागरचंद्र सुरूप और महत्वाकांक्षी प्रकृति का युवक था। द्वारिका नगरी में ही धनसेन नामक सेठ रहता था जो धनी और मानी था। उसके एक पुत्री थी जिसका नाम ... जैन चरित्र कोश .. -- 635 ..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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