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________________ काल और दोषों का परिज्ञान नहीं था। काल-अकाल का भेद किए बिना वे अध्ययन में जुटे रहते, ज्ञानातिचार लगाते रहते। परिणामतः बहुत पढ़कर भी उन्हें कुछ स्मरण नहीं रहता, वे पढ़ते जाते और पढ़े हुए को भूलते जाते। परिणामतः उनका ज्ञान और आचार दोनों अपूर्ण रह गए। उनका सम्यक्त्व भी विशुद्ध नहीं रह पाया। आयुष्य पूर्ण कर मुनि अभिनन्दन गंगा में मत्स्य योनि में जन्मे। किसी समय एक मुनि गंगा के किनारे बैठे हुए स्वाध्याय कर रहे थे। स्वाध्याय के स्वर मत्स्य के कानों में पडे। वे स्वर उसे मधर लगे। उसके अन्तर्मानस में चिन्तन चलने लगा कि वे स्वर उसके द्वारा सने जा चके हैं. पर कहां सने, उसे कछ स्मरण नहीं आया। पनः पनः उसने स्मति पर जोर दिया और उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसे सब स्मरण हो गया कि पूर्वजन्म में वह मुनि था, पर अकाल-दुष्काल स्वाध्याय से उसने ज्ञान के अतिचारों का सेवन किया और चारित्र का पालन करके भी उसके मधु परिणाम से वंचित रहा। मत्स्य को सम्यक्त्व की प्राप्ति हो गई। उसने श्रावक धर्म अंगीकार कर लिया। श्रद्धापर्वक चित्त से श्रावक धर्म का पालन करके वह मत्स्य देवलोक में गया। -बृहत्कथा, कोष भाग 1 (आ. हरिषेण) अभिमन्यु अर्जुन का सुभद्रा से उत्पन्न पुत्र, एक वीर शिरोमणि युवक। उसका विवाह विराटराज की पुत्री उत्तरा के साथ सम्पन्न हुआ था। वैदिक महाभारत के अनुसार अभिमन्यु ने मातृगर्भ में रहते हुए ही चक्रव्यूह को भेदने की कला सीख ली थी और महाभारत के युद्ध में आवश्यकता पड़ने पर उसने ऐसा करके भी दिखाया था। कौरव पक्ष के कई महारथियों ने एक साथ मिलकर अभिमन्यु से युद्ध किया। वीरता से लड़ते हुए अभिमन्यु की मृत्यु हुई। उसके शौर्य और युद्ध कौशल से कौरव पक्ष के महारथी चकित रह गए थे। -जैन महाभारत अमर कुमार ___मगध देश की राजधानी राजगृह नगरी के रहने वाले दीन-दरिद्र ब्राह्मण ऋषभदत्त के चार पुत्रों में सबसे छोटा पुत्र, जो स्वभाव से ही सरल, विनीत और सौम्य था। अमर का परिवार निर्धनता और अभाव की चक्की में ऐसा पिस रहा था कि पूरे परिवार द्वारा जी तोड़ मेहनत करने पर भी भरपेट रोटी प्राप्त नहीं कर पाता था। अल्पायुषि अमर अग्रजत्रय के साथ जंगल में लकड़ियां लेने जाता था। किसी समय जंगल में जाते हुए अमरकुमार को एक मुनि के दर्शन हुए। मुनिदर्शन से अमर का मन पुलक से भर गया। मुनि ने बालक अमर को धर्म का मर्म समझाया और महामंत्र नवकार स्मरण कराया। मुनि ने कहा, नवकार मंत्र के श्रद्धापूर्वक जाप से व्यक्ति के समस्त कष्ट कट जाते हैं। अमर ने नवकार मंत्र को स्मरण कर लिया और अविचल श्रद्धाभाव से वह प्रतिदिन उसका जाप करने लगा। उन दिनों श्रेणिक राजगृह का राजा था। जिस समय का यह वृत्त है, उस समय तक श्रेणिक वैदिक क्रियाकाण्डों का विश्वासी था। उसने एक महल बनाने का निश्चय किया। महल की दीवारें बनाई गईं, लेकिन रात्रि में वे दीवारें ढह गईं। कई बार दीवारें बनाई गईं और प्रत्येक बार बिना किसी शिल्प दोष के ही दीवारें " ढह गईं। पुरोहित ने राजा को इसे प्रेत बाधा का कारण बताया और कहा कि नरबलि के बिना यह बाधा दूर नहीं की जा सकती है। श्रेणिक ने राज्य में घोषणा करा दी कि जो भी पुरुष अथवा नारी अपने पुत्र को बलि कर्म के लिए राजा को अर्पित करेगा, उसे उसके पुत्र के वजन के तुल्य स्वर्ण प्रदान किया जाएगा। इस ... 26 .. ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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