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________________ भुवनपाल आदि राजा आचार्य अभयदेव के परम भक्त थे। सिद्धराज जयसिंह ने उन्हें मलधारी पद प्रदान किया था। उत्कृष्ट आचार के आराधक आचार्य मलधारी ग्रीष्म ऋतु में मध्याहून में गोचरी के लिए निकलते। अपरिचित और अजैन गृहों में गोचरी करते। घृत विगय के अतिरिक्त शेष चार विगयों का आजीवन परित्याग उन्होंने किया था। वी. नि. 1638 में आचार्य मलधारी ने अजमेर में संलेखना-संथारे सहित देहोत्सर्ग किया। उन्हें 47 दिन का संथारा आया। -प्रभावक चरित्र अभया ____ चम्पा नगरी के नरेश दधिवाहन की पटरानी। उसने अपने त्रिया चरित्र में श्रेष्ठीवर्य सुदर्शन को फांस कर उसे शूली का दण्ड दिलवाया था। पर अन्ततः सुदर्शन के शील धर्म के चमत्कार से शूली सिंहासन बन गई थी। (देखिए-सुदर्शन सेठ) -आवश्यक कथा अभिचन्द्र कुमार समग्र परिचय गौतमवत् है। (देखिए-गौतम) -अन्तगड सूत्र, द्वितीय वर्ग, अष्टम अ. अभीचिकुमार सिन्धु-सौवीर के सम्राट् उदायन का पुत्र और प्रभावती का आत्मज। महाराज उदायन मुनि बनने लगे तो उन्होंने 'राज्येश्वरी-नरकेश्वरी' का विचार करते हुए अपना राज्य अपने पुत्र को न देकर भाणजे केशी को दे दिया। पिता के उच्च भावों को अभीचिकुमार समझ न सका और मन ही मन उनके प्रति द्वेष से भर गया। वीतभय नगर को छोड़कर वह अपने मौसेरे भाई कोणिक के पास चला गया। किसी समय सन्तदर्शन से वह प्रतिबुद्ध हुआ और उसने श्रावक धर्म अंगीकार कर लिया। आयु के अन्त में उसने पन्द्रह दिन का अनशन किया। अपने पिता को शेष रखते हुए उसने चौरासी लाख जीवयोनियों के जीवों से क्षमापना की। देह त्यागकर वह देव बना। देवयोनि से च्यव कर अभीचिकुमार का जीव महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। वहां अपनी भूल को सुधारकर तथा संयम पालकर सिद्ध होगा। अभिनन्दन (तीर्थंकर) ___चौबीस तीर्थंकरों में चतुर्थ। अयोध्याधिपति संवर और उनकी महारानी सिद्धार्था के आत्मज । यौवनावस्था में भगवान ने राजपद को सुशोभित किया। आयु के अन्तिम भाग में दीक्षित होकर तीर्थंकर पद प्राप्त किया और जगत के लिए कल्याण का महाद्वार बने। ___ महाबल राजा के भव में भगवान ने अप्रतिम सरलता और साधुता को जीकर तीर्थंकर गोत्र का बन्ध किया था। वहां से एक भव अनुत्तर देवलोक का करके वे अभिनन्दन के रूप में जन्मे और सिद्ध हुए। -त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र अभिनन्दन मुनि शान्त और सरल प्रकृति के एक मुनि। ज्ञानाराधना में उनकी बहुत रुचि थी। वे पूरा दिन आगम स्वाध्याय में संलग्न रहते। वे सरल थे, स्वाध्याय-रुचि सम्पन्न थे, पर उन्हें स्वाध्याय और अस्वाध्याय के ... जैन चरित्र कोश .. .. 25 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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