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________________ सत्यभामा वासुदेव श्रीकृष्ण की पटरानी। भगवान अरिष्टनेमि से प्रव्रजित बनकर उसने मोक्ष प्राप्त किया। -अन्तगडसूत्र वर्ग 5, अध्ययन 6 सत्यभूति एक चतुर्ज्ञानी मुनि। (देखिए-कैकेयी) सत्यवती रत्नपुर नरेश रत्नांगद की पुत्री। नवजात अवस्था में ही किसी पापात्मा पुरुष ने सत्यवती का अपहरण कर लिया और उसे हस्तिनापुर के निकट यमुना नदी के तट पर रख दिया। वहां एक केवट की दृष्टि बालिका पर पड़ी। निःसंतान केवट ने नवजात कन्या को उठाकर कण्ठ से लगा लिया। यही बालिका 'सत्यवती' नाम से जानी गई। यौवनावस्था प्राप्त कर सत्यवती का रूप अत्यधिक खिल उठा। हस्तिनापुर नरेश शान्तनु उसके रूप पर मोहित हुआ और उसने केवट से उसकी याचना की। केवट चतुर था और सत्यवती पर उसका असीम वात्सल्य भी था। प्रत्येक परिस्थिति में वह अपनी पुत्री को प्रसन्न देखना चाहता था। उसने राजा से कहा, महाराज ! इस शर्त पर मैं अपनी पुत्री का पाणिग्रहण आपके साथ कर सकता हूँ कि उसका पुत्र ही युवराज बने। इससे शान्तनु विवश हो गया। क्योंकि गांगेय कुमार उसका पुत्र था और वही हस्तिनापुर का भावी राजा था। विवश होकर शान्तनु अपने महल में लौट गया। परन्तु सत्यवती का रूपाकर्षण उसके लिए व्यथा का कारण बन गया। राजा की क्षुधा और निद्रा विलुप्त हो गई। ___ आखिर गांगेय कुमार ने पिता की उदासी का कारण ज्ञात किया। गांगेय केवट के पास गए और उन्होंने वचन दिया कि सत्यवती का पत्र ही हस्तिनापर का राजा बनेगा। परन्त इतने भर से केवट सन्तष्ट नहीं हुआ। उसने कहा, कुमार ! मैं इस आशंका से भी त्रसित हूँ कि आपकी संतान मेरी पुत्री की संतान को वैर-दृष्टि से देखेंगी। गांगेय ने कहा, प्रश्न पिता की प्रसन्नता का है, उनके सुख के लिए मैं कोई भी मूल्य चुकाने के लिए तैयार हूँ, सुनो केवट! तुम्हारी आशंका को दूर करने के लिए मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा करता हूँ। गांगेय कुमार की इस प्रतिज्ञा से केवट अभिभूत बन गया। अपनी इसी प्रतिज्ञा के कारण गांगेय कुमार का नाम "भीष्म" विख्यात हुआ। सत्यवती का विवाह महाराज शान्तनु के साथ हुआ। कालक्रम से सत्यवती के दो पुत्र हुए-चित्रांगद और विचित्रवीर्य । युवावस्था में चित्रांगद हस्तिनापुर का राजा बना। चित्रांगद ने कई राजाओं को जीतकर अपना राज्य बढ़ाया। उसकी प्रत्येक विजय में उसके बड़े भाई भीष्म का आशीर्वाद और पराक्रम उसके साथ था। परन्तु चित्रांगद इसे अपने ही पराक्रम का फल मानता था। उसके मस्तिष्क में अहं का सर्प प्रवेश कर गया और उसने भीष्म की उपेक्षा करनी शुरू कर दी। ___एक बार नीलांगद नामक राजा ने चित्रांगद पर आक्रमण किया। भीष्म को सूचित किए बिना ही चित्रांगद युद्ध में कूद पड़ा और मारा गया। भीष्म को ज्ञात हुआ तो उन्होंने रणक्षेत्र में पहुंचकर नीलांगद को धराशायी करके भाई की मृत्यु का प्रतिशोध पूर्ण किया। चित्रांगद की मृत्यु के पश्चात् विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर के सिंहासन पर आसीन किया गया। भीष्म के पराक्रम के कारण काशीराज की तीन पुत्रियों-अंबा, अंबालिका और अंबिका के साथ विचित्रवीर्य का ...618 .0 ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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