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________________ (क) संगम (देव) सौधर्मेन्द्र का एक सामानिक देव। उसे अपने बल पर बहुत घमण्ड था। एक बार जब इन्द्र ने प्रभु महावीर की समता, समाधि और साधना की गद्गद भाव से प्रशंसा की तो उससे यह प्रशंसा सहन न हुई। उसने इन्द्र को चुनौती दे डाली कि वह भगवान को समता समाधि से चलित करके दिखाएगा। संगम धरती पर आया और उसने महावीर पर कष्टों की बरसात कर दी। एक ही रात्रि में बीस प्रकार के मारणान्तिक उपसर्ग उसने उपस्थित किए। पर भगवान की समता-समाधि को वह भंग नहीं कर पाया। इसी से वह संतुष्ट नहीं हुआ और निरंतर भगवान के साथ रहकर उन्हें उपसर्ग देने लगा। छह मास तक वह निरंतर प्रभु के कदम-कदम पर कठिनाइयां उपस्थित करता रहा। पर प्रभु को चलित करने में असफल रहा। अंततः प्रभु से क्षमा मांगकर लौटने लगा तो कहते हैं कि प्रभु के नेत्र आर्द्र हो गए। संगम ने सोचा, साथ रहकर वह जो न कर पाया साथ छोडते हए वह हो गया। उसने प्रभ से उनके आंसओं का कारण पछा तो प्रभ ने संगम के अंधकाराछन्न भविष्य की बात कही और कहा, उनके पास आने वाला तो हल्का होकर लौटता है पर वह बहुत भारी बनकर लौट रहा है। महावीर की इस निःशब्द करुणा ने संगम को चौंका दिया। वह कल्पना नहीं कर सकता था कि किसी मानव में करुणा का वैसा विकास भी संभव है। वह प्रभु के चरणों पर नत हो गया और अपने कृत के लिए पुनः-पुनः क्षमा मांगने लगा। महावीर की भगवत्ता से चमत्कृत बना संगम अपने लोक को लौट गया जहां सौधर्मेन्द्र ने उसका स्वागत वज्र से किया और उसे स्वर्ग से बहिष्कृत कर दिया। -आवश्यक चूर्णि (ख) संगम (शालिभद्र) धन्या नामक निर्धन और विधवा महिला का पुत्र । संगम के जन्म लेने से पूर्व धन्या एक भरे-पूरे परिवार वाली महिला थी। उसके पति के पास अनेक गाएं थी। दूध-दही के विक्रय से परिवार-पोषण सानन्द होता था। पर समय बदला तो समस्त पारिवारिक-जन परलोकवासी हो गए। उसके पास रह गया उसका अल्पायुषी पुत्र संगम। उदर पोषण का कोई साधन धन्या के पास शेष न था। ऐसे में अपना गांव छोड़कर वह राजगृह नगर में आ गई। वहां धनाढ्य श्रेष्ठियों की बस्ती के पास ही एक झोंपड़ी डालकर वह रहने लगी। श्रेष्ठियों के घरों में झाडू-बर्तन करने से उतना अन्न मिल जाता जिससे वह अपना तथा अपने पुत्र का उदर पोषण कर लेती। कुछ बड़ा होने पर संगम श्रेष्ठियों के पशु चराने जंगल में जाने लगा। माता मजदूरी करती। ऐसे में समय सरक रहा था। एक दिन किसी उत्सव पर बालक संगम ने हमउम्र बालकों से सुना कि उनके घरों में खीर बनी है। नन्हा बालक झोंपड़ी में आकर खीर के लिए माता से जिद्द करने लगा। नन्हे पुत्र की जिद्द ने माता को रुला दिया। सेठानियों को ज्ञात हुआ तो उन्होंने करुणावश चावल, शक्कर और दूध धन्या को मधुर उपालंभ के साथ उपलब्ध करा दिए। धन्या ने खीर बनाई। आधी खीर उसने थाली में डाली और पुत्र .. जैन चरित्र कोश ... -- 611 ..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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