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________________ (ङ) श्रीमती वसन्तपुर नगर के एक श्रेष्ठी की रूप-गुण सम्पन्न पुत्री, जिसने आर्द्रक मुनि को पति रूप में चुना था। (देखिए-आर्द्रक कुमार) (च) श्रीमती ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की एक रानी। (देखिए-ब्रह्मराजा) (छ) श्रीमती कुण्डलपुर नरेश महाराज सर्वार्थ की रानी, नृप सिद्धार्थ की जननी और चरम तीर्थंकर महावीर की पितामही। श्रीमती भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा की एक आदर्श श्राविका थी। परम पुण्योदय से उसे तीर्थंकर महावीर की पितामही-दादी होने का मंगलमय संयोग प्राप्त हुआ। (ज) श्रीमती ___ आबू पर्वत के जिनमंदिर के निर्माता विमलशाह की अर्धांगिनी। विमलशाह भीमदेव राजा का मंत्री था। वह जैन धर्म का अनन्य अनुरागी था। ___श्रीमती भी अनन्य जिनोपासिका श्राविका थी। श्रीमती और विमलशाह के जीवन में सर्वतोभावेन समृद्धि थी। एक अभाव था, उनके कोई संतान नहीं थी। विमलशाह ने अपनी कुलदेवी अम्बिका की आराधना में तीन दिन का निर्जल उपवास किया। देवी प्रगट हुई। विमलशाह ने देवी से दो वर मांगे -(1) पुत्र प्राप्ति और (2) आबू पर्वत पर जिनमंदिर का निर्माण। देवी ने कहा, तुम्हारा पुण्य इतना ही है कि तुम द्वारा याचित एक ही वर सफल हो सकता है, तुम एक ही इच्छित वर की याचना करो। __देवी से आज्ञा प्राप्त कर विमलशाह अपनी पत्नी के पास पहुंचा और उसे देवी द्वारा कही गई बात बताई। श्रीमती ने कहा, प्राणधन! सन्तति तो जन्म-जन्म में प्राप्त होती है, भवसन्तति के विनाश रूप में जिनमंदिर निर्माण रूप वर देवी से प्राप्त कर लीजिए! विमलशाह ने वैसा ही किया। देवी के वरदान स्वरूप महामंत्री विमलशाह ने आबू पर्वत पर कलात्मक जिनालय का निर्माण कराया जो स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है। ___ श्रीमती ने ममत्व को विसार कर एक ऐसा भव्य पारितोषिक विश्व को प्रदान किया जिसका उदाहरण अन्यत्र मिलना दुष्कर है। ____उक्त जिनमंदिर का निर्माण ई. सन् 1032 में हुआ। ई. सन् 1010 से 1062 तक विमलशाह का कार्यकाल रहा। श्रीमद् रायचंद भाई उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध के एक आदर्श जैन श्रावक। श्रीमद् रायचंद भाई बाल्यकाल से ही अंतर्मुखी थे। जन्म, जीवन और मृत्यु के रहस्यों को जानने की उनमें सघन जिज्ञासा थी। जब वे 6-7 वर्ष के ही थे तो पड़ोस में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई। मृत्यु के यथार्थ को जानने के लिए बालक रायचंद उस व्यक्ति के अंतिम संस्कार को देखने के लिए श्मशान में जा पहुंचे। बड़े-बुजुर्गों ने बालक रायचंद को बालक समझकर श्मशान परिसर में न जाने दिया। इससे रायचंद की उत्कण्ठा और तीव्र हो गई। कुछ दूरी पर खड़े एक वृक्ष पर वे चढ़ गए और शव दाह क्रिया को एकटक हो निहारने लगे। वे यह देखना चाहते थे कि शरीर से जीव ... जैन चरित्र कोश .. - 605 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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