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________________ मंजूषा राजमहल ले जाई गई। महारानी ने मंजूषा के एक-एक करके चारों खण्ड खोले और उनमें पुरोहित, कोतवाल , मंत्री और राजा को देखकर दंग रह गई। वस्तुस्थिति वह समझ गई। चारों ने महारानी से अपना अपराध स्वीकार किया। तब राजा ने श्रीमती को आमंत्रित कर उससे अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी, उसे भगिनी का पद दिया और उसके निर्मल चारित्र की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की। पुरोहित, कोतवाल और मंत्री ने भी श्रीमती के चरण स्पर्श कर उससे क्षमा मांगी और उसे अपनी बहन माना। ___ श्रीमती ने आजीवन विशुद्ध पतिव्रत धर्म का पालन किया। कालान्तर में उसके एक पुत्र हुआ। पुत्र जब युवा हुआ तो एक श्रेष्ठि कन्या से उसका पाणिग्रहण कराया गया। पुत्रवधू के आ जाने पर श्रीमती ने स्वयं को दायित्व मुक्त माना और दीक्षा धारण कर ली। विशुद्ध चारित्र और तप की आराधना करके वह देवलोक में गई। आगे के भवों में वह निर्वाण प्राप्त करेगी। (ग) श्रीमती __जैन कुल में जन्मी एक कन्या। मातृ-दूध के साथ ही श्रीमती को जैन धर्म के अमृत संस्कार घुट्टी रूप में प्राप्त हुए थे। सामायिक साधना और नवकार मंत्र की आराधना उसके दैनिक जीवन के वैसे ही अंग थे जैसे अन्न और जल। श्रीमती युवा हुई। उसकी धर्मनिष्ठा भी उसी क्रम से सुदृढ़ बनती गई। पर उसका विवाह संयोग से ऐसे कुल में हुआ जहां धर्म शब्द से भी घृणा की जाती थी। श्रीमती श्वसुर-गृह में रहकर भी अपनी धार्मिक क्रियाएं निरंतर करती रही। इससे उसकी सास, श्वसुर और पति उसके विरोधी बन गए। सभी ने श्रीमती को धर्म क्रियाओं से विमुख करने के प्रयास किए। श्रीमती ने परिवार को समझाने के और स्वयं को व्यवस्थित करने के अनेक उपक्रम किए पर वह सफल न हो सकी। घर का पूरा वातावरण अशान्त बन गया। आखिर सास ने अपने पुत्र के साथ मिलकर श्रीमती की हत्या का षडयन्त्र रच दिया। षडयन्त्र के अनुसार उसने अपने पुत्र से घड़े में रखवा कर एक विषधर सर्प मंगवाया। घड़े को घर में उचित स्थान पर स्थापित कर दिया गया। योजनानुसार पति ने श्रीमती से मधुर शब्दों में कहा, प्रिय! जब से मैंने तुमसे विवाह किया है तब से तुम्हें एक भी उपहार मैं नहीं दे पाया हूं। आज मैं तुम्हारे लिए एक पुष्पाहार लेकर आया हूं। अन्दर घड़े में रखे उस पुष्पाहार को तुम धारण कर लो। पति के मधुर व्यवहार पर श्रीमती मुग्ध हो गई। उसका नियम था कि जब भी वह किसी नवीन वस्तु को ग्रहण करती पहले नवकार मंत्र का जाप करती थी। नियमानुसार नवकार मन्त्र पढ़कर उसने घड़े में हाथ डाला तो विषधर सर्प फूलों की माला बन गया। पति का उपहार श्रीमती ने गले में धारण कर लिया जिससे उसका रूप निखर उठा। यह चमत्कार देख कर पति, सास और श्वसुर दंग रह गए। सभी ने धर्म के महान प्रभाव को साक्षात् देखा और सर्प को फूल माला में बदलते हुए देखा। इससे सास, श्वसुर और पति के हृदय बदल गए। उन्होंने श्रीमती को अपने षडयन्त्र के बारे में बताया और अपने अक्षम्य अपराध के लिए क्षमा मांगी। सास, श्वसुर और पति के हृदय परिवर्तन देखकर श्रीमती को हार्दिक प्रसन्नता हुई। तब से उस घर का पूरा वातावरण धर्म के रंग में रंग गया। (घ) श्रीमती देवशाल नगर नरेश विजय सेन की रानी। (देखिए-कलावती) ... 604 .. -- जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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