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________________ धंसा हूँ। उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई और उसने निश्चय किया कि भविष्य में वह धर्माचरण के साथ जीवन जीएगा। उसने तोते से अपने हृदय के भाव कहे और अपने लिए उत्तम पथ पूछा। तोते ने उसे देव-गुरु-धर्म की श्रद्धा का मार्ग बता दिया। उसके बाद श्रीगुप्त ने तन-मन-वचन से स्वयं को धर्माराधना में अर्पित कर दिया। घर में रहते हुए ही उसने उत्कृष्ट जप-तप की आराधना की और मरकर देव गति में गया। देव गति से च्यव कर कुछ अच्छे और उच्च कुलों के भव करके वह सिद्ध होगा। -कथारत्न कोष भाग 1 श्रीदेव राजा ____ पांचाल देश के कपिलपुर नगर का राजा। उसके पिता का नाम श्रीहर्ष था। श्रीहर्ष एक पराक्रमी राजा था और उसने अनेक देशों पर विजय-वैजयन्ती फहराई थी। पर कामरु देश के राजा को वह पराजित न कर सका था। आखिर वह विरक्त होकर मुनि बन गया और आत्मकल्याण की साधना में लीन हो गया। उसके मुनि बन जाने पर प्रतिशोध की भावना से कामरु नरेश ने कपिलपुर पर आक्रमण कर दिया। राजा श्रीदेव उसका सामना अधिक दिनों तक नहीं कर पाया और मंत्री की सलाह पर जंगल में चला गया। वहां उसे एक मुनि के दर्शन हुए। मुनि ने श्रीदेव को धर्म का उपदेश दिया। श्रीदेव के हृदय में सम्यक्त्व का उदय हुआ। उसे निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर अटूट श्रद्धा हो गई, पर उसने चारित्र ग्रहण नहीं किया। उसके हृदय में तो पराजय का अपमान-जनक क्षोभ भरा था। वह मुनि से ऐसा उपाय चाहता था जो उसे उसके लक्ष्य तक पहुंचाए। उसकी जिज्ञासा पर मुनि ने उसे नवकार मंत्र की आराधना की सलाह दी। श्रीदेव ने सविधि नवकार मंत्र की आराधना की। एक लाख जप पूर्ण होने पर एक सम्यक्त्वी देव श्रीदेव के समक्ष उपस्थित हुआ। श्रीदेव ने देव से अपनी कष्ट कथा कही और अपने खोए हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने की आकांक्षा व्यक्त की। देव के कृपापूर्ण आशीर्वाद से श्रीदेव को उसका खोया हुआ राज्य प्राप्त हो गया। श्रीदेव का तेज इतना बढ़ा कि कामरुनरेश दूम दबा कर अपने देश को भाग गया। श्रीदेव राजा ने सुदीर्घ काल तक निष्कण्टक शासन किया। नवकार मंत्र पर उसकी अगाध आस्था थी। वह अपनी प्रजा को भी नवकार मंत्र की आराधना के लिए निरंतर प्रेरणाएं दिया करता था। वृद्धावस्था में उसने अपने पुत्र को राजपद प्रदान किया। शेष जीवन उसने नवकार मंत्र का जप करते हुए पूर्ण किया और मरकर देवलोक में गया। वहां से च्यव कर सिद्ध होगा। -कथारत्न कोषः भाग 1 (क) श्रीदेवी अयोध्या नरेश महाराज शूर की रानी और सतरहवें तीर्थंकर प्रभु कुन्थुनाथ की माता। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र (ख) श्रीदेवी ___ कपिल केवली की माता और कौशाम्बी के राजपुरोहित काश्यप की पत्नी। (देखिए-कपिल केवली) (ग) श्रीदेवी पोलासपुर नरेश महाराज विजय की रानी और अतिमुक्त मुनि की माता। वह अकेली ऐसी माता थी जो अपने पुत्र के मुख से दीक्षा की बात सुनकर आह्लादित होकर मुक्तमन से हंसी थी। (क) श्रीपाल (मैनासुंदरी) पौराणिक जैन साहित्य के पृष्ठों पर श्रीपाल का जीवनवृत्त भावपूर्ण शैली में अंकित है। वह अंगदेश ... जैन चरित्र कोश... ... 599 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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