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________________ 1 बाण को कई विद्याएं सिद्ध थीं । उसने अनिरुद्ध को नागपाश में जकड़ लिया । आखिर प्रद्युम्न और श्रीकृष्ण के पहुंचने पर बाण की पराजय सुनिश्चित हो गई । उषा से विवाह रचाकर अनिरुद्ध द्वारिका लौट आया। कालान्तर में भगवान अरिष्टनेमि के चरणों में अनिरुद्ध प्रव्रजित बना । वह उसी भव में मोक्ष को उपलब्ध हुआ। - जैन महाभारत / अन्तगडसूत्र, वर्ग 4, अध्ययन 8 अनिहतसेन देवकीपुत्र । सुलसा व नाग इनके पालक माता-पिता थे । (देखिए-अनियसेन) - अन्तगडसूत्र, तृतीय वर्ग, तृतीय अध्ययन अनोखी विक्रमपुर नगर के रहने वाले एक साधारण शिल्पकार की पुत्री, जो अपठिता होते हुए भी अद्वितीय बुद्धिमती थी। कर्णसिंह विक्रमपुर का युवराज था जो स्वभावतः हठी और दंभी था। युवराज्ञी स्वर्णमंजरी को वह प्रतिदिन पांच जूते मारकर अपने दंभ का पोषण करता था । यह चर्चा पूरे नगर में फैल गई थी कि राजकुमार अपनी पत्नी को प्रतिदिन पांच जूते मारता है । अनोखी ने एक बार अपनी सखियों से कहा कि यदि वह स्वर्णमंजरी के स्थान पर होती तो युवराज के झूठे दंभ को तोड़ देती। इतना ही नहीं, वह युवराज से अपने पैर दबवाती, उससे जूते पहनती और अपना पगधोवन तक उसे पिला देती । कान दर कान अनोखी की यह गर्वोक्ति युवराज कर्णसिंह के कानों तक भी पहुंच गई । उसका अहं कसमसा उठा। उसने अनोखी से विवाह कर लिया । सुहागरात के समय अहंकार और क्रोध में उबलता हुआ युवराज अनोखी के शयन कक्ष में पहुंचा। जूता निकालकर बोला, स्वर्णमंजरी को तो मैं प्रतिज्ञावश जूता छुआता ही हूं पर तुम्हारी तो ऐसी पिटाई करूंगा कि तुम सारी गर्वोक्ति भूल जाओगी। अनोखी ने विनम्रता से कहा, मैं आपके जूते खाने के लिए प्रस्तुत हूं पर उससे पहले अपने पौरुष का तो मुझे प्रमाण दो । युवराज ने कहा, क्षत्रियों के पौरुष का प्रमाण तो रणक्षेत्र में प्राप्त होता है, वैसा अवसर आएगा तो मैं अपने पौरुष का प्रमाण अवश्य दूंगा। अनोखी ने कहा, पौरुष के प्रमाण के लिए रणक्षेत्र की आवश्यकता नहीं है। उसका एक अन्य उपाय भी है और वह है बीसाबोली नामक राजकुमारी से विवाह करना । उस राजकुमारी ने अनेक राजाओं और राजकुमारों को अपना बन्दी बना लिया है। यदि आप उस राजकुमारी को अपना बना सके तो यह आपके पौरुष का प्रमाण होगा। युवराज ने गर्व से कहा, मैं वैसा अवश्य करूंगा, पर तुम्हारी उन गर्वोक्तियों का क्या होगा, जिनमें तुमने कहा था कि तुम मुझे अपना चरणोदक पिलाओगी, कि मेरे हाथों से जूते पहनोगी और मुझसे पैर दबवाओगी । अनोखी ने कहा, यदि आप इसके लिए मुझे बाध्य करते हो तो मैं वैसा अवश्य करूंगी। युवराज कर्णसिंह ने कहा, तुम वैसा कदापि नहीं कर पाओगी। मैं बीसाबोली से विवाह करके शीघ्र ही लौटूंगा और प्रतिदिन के गणित से पांच जूते मारूंगा । कहकर युवराज रवाना हो गया । वह बीसाबोली के नगर में पहुंचा। वहां पहुंचकर उसे ज्ञात हुआ कि जो भी राजा या युवराज बीसाबोली के बीस प्रश्नों का उत्तर देगा, उसे बीसाबोली के साथ-साथ उसके पिता का विशाल साम्राज्य भी प्राप्त होगा । कर्णसिंह बीसाबोली के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए उसके पास पहुंचा और प्रथम प्रश्न पर ही अटक गया। परिणामतः उसे बन्दी बनाकर घोड़ों की सेवा में लगा दिया गया । अनोखी जानती थी कि कर्णसिंह की क्या दशा होने वाली है। कई मास तक जब कर्णसिंह नहीं लौटा ••• जैन चरित्र कोश • 19 ♦♦♦
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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