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________________ उक्त संकल्प के साथ ही गुणसुन्दर को नींद आ गई। प्रातःकाल वह उठा तो पूर्णतः स्वस्थ था। अपने अभिभावकों से उसने अपने संकल्प की बात बताई और दीक्षित हो गया। यही गुणसुन्दर जगत में अनाथी मुनि के नाम से ख्यात हुए। एक बार अनाथी मुनि राजगृह के मण्डीकुक्षी नामक उद्यान में ध्यानस्थ थे। मगधेश श्रेणिक उद्यान भ्रमण को आया। उस समय तक श्रेणिक बौद्ध धर्मी था। सुन्दर युवक को मुनि वेश में देखकर उसके मन में कई प्रश्न उठे। उसने मुनि से युवावस्था में मुनि बनने का कारण पूछा तो मुनि ने उत्तर दिया कि वह अनाथ था इसलिए मुनि बन गया। श्रेणिक ने कहा कि वह उसका नाथ बनेगा। वह उसके साथ राजमहल चले। उसके पास हजारों हाथी, घोड़े और विशाल सेना है। वह सुन्दर बालाओं से उसका विवाह करेगा। मुनि ने स्पष्ट किया कि यह सब तो उसके पास भी था। इन समस्त साधनों का सनाथता से सम्बन्ध नहीं है। श्रेणिक की जिज्ञासा पर अनाथी मुनि ने अपनी पूरी कहानी उस को सुनाई। सुनकर श्रेणिक के अन्तर्चक्षु खुल गए। वह नाथ और अनाथ की पूरी परिभाषा से परिचित बन गया। उसी दिन से उसने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। विशुद्ध संयमाराधना से सर्व कर्म खपा कर अनाथी मुनि निर्वाण को उपलब्ध हुए। -उत्तराध्यनन सूत्र अनाधृष्टि महाराज वसुदेव और रानी धारिणी के पुत्र। (इनका शेष परिचय दारुकवत् है) (दखिए-दारुक) -अंतकृद्दशांगसूत्र वर्ग 3, अध्ययन 13 अनियसेन वासुदेव श्री कृष्ण के अग्रज तथा देवकी और वसुदेव के पुत्र । इनका परिचय इस प्रकार है-भद्दिलपुर वासी नाग नामक गाथापति की पत्नी का नाम सुलसा था। उसे एक नैमित्तिक ने बताया कि वह मृतवत्सा होगी। उसके छह पुत्र होंगे पर वे सभी मरे हुए होंगे। सुलसा ने आराधना से हरिणगमेषी देव को प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि वह जीवित पुत्रों की मां बनना चाहती है। हरिणगमेषी देव ने ज्ञानोपयोग से देखा कि देवकी द्वारा जन्म दिए जाने वाले सभी पुत्र दीर्घायुष्य वाले हैं। पर कंस की क्रूर दृष्टि उन पर टिकी है। सो उसने देव शक्ति से ऐसा विधान किया कि देवकी और सुलसा एक साथ पुत्रों को जन्म देतीं। वह सुलसा के मृतपुत्रों के साथ देवकी के जीवित पुत्रों को बदल देता। इस प्रकार उसने देवकी के प्रथम छह पुत्र सुलसा की गोद में पहुंचा दिए। उनके नाम रखे गए-अनीयसेन, अनन्तसेन, अनिहतसेन आदि। उक्त छह पुत्र देवकी के अंगजात होते हुए भी सुलसा-पुत्र कहलाए। यौवन वय में अनियसेनादि के विवाह किए गए। बाद में किसी समय भगवान अरिष्टनेमि का प्रवचन सुनकर ये छहों भाई प्रतिबुद्ध हो गए। दीक्षा ग्रहण की। उग्र तपाराधना से केवली बनकर सिद्ध हुए। इन छहों भाइयों के रंग-रूप एक समान थे। दर्शक भ्रमित हो जाते थे। -अन्तगडसूत्र तृतीय वर्ग, प्रथम अध्ययन अनिरुद्ध प्रद्युम्न का वैदर्भी से उत्पन्न पुत्र । यौवनावस्था प्राप्त होने पर वह इन्द्र जैसा रूप-बल सम्पन्न बना। विद्याधर नरेश बाण की पुत्री उषा से उसने विवाह रचाया। बाण की सेना से अनिरुद्ध का युद्ध भी हुआ। ... 18 ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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