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________________ वनमाला वीरक नामक माली की पत्नी। (दखिए-तिष्यगुप्त) वनराज चावड़ा (राजा) बृहद् गुजरात राज्य की स्थापना करने वाला वनराज चावड़ा एक जैन राजा था। चैत्यवासी परम्परा के आचार्य शीलगुणसूरि और उनके पट्टशिष्य देवचन्द्र सूरि से उसने जैन धर्म के संस्कार प्राप्त किए। राजा बनने पर उसने जैन धर्म के पवित्र सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार किया और राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर जैन श्रावकों की नियुक्ति भी की। आचार्य शीलगुणसूरि के कहने पर उसने चैत्यवासी जैन मुनियों के अतिरिक्त अन्य सभी सम्प्रदायों के धर्मगुरुओं के गुजरात प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। वनराज चावड़ा आचार्य शीलगुणसूरि के प्रति पूर्णतः समर्पित था। इसका कारण था कि आचार्य शीलगुण सूरि ही वनराज के जीवन निर्माता और जीवन त्राता थे। वनराज जब मातृगर्भ में ही था तो शत्रुराजा ने उसके पिता के राज्य पर आक्रमण कर दिया था। युद्ध में वनराज के पिता मारे गए। वनराज की माता रूपसुंदरी ने विजन वन में छिप कर अपना तथा गर्भस्थ शिशु (वनराज) का जीवन बचाया। वन में जन्म लेने के कारण शिशु 'वनराज' कहाया। वन में ही शीलगुणसूरि की भेंट रूपसुंदरी से हुई। आचार्य श्री ने रूपसुंदरी को सर्वविध विश्वस्त किया और उसकी तथा उसके शिशु के रहन-सहन की व्यवस्था गुप्त रूप से जैन संघ को प्रदान की। ___ वनराज की शिक्षा-दीक्षा आचार्य शीलगुणसूरि के पट्टशिष्य देवचन्द्र सूरि के सान्निध्य में हुई। युवावस्था में अपने बाहुबल और गुरु आशीर्वाद के बल पर वनराज ने गुजरात का शासन सूत्र संभाला। वह वीर और साहसी था। अनेक कष्टों का उसने सामना किया और अपने लक्ष्य की प्राप्ति की। ___जीवन भर वनराज चावड़ा जैन धर्म के सिद्धान्तों का पालन करता रहा। इतिहास में उसे 'जैन राजा' के रूप में स्थान प्राप्त हुआ। वप्रा चक्रवर्ती जय की जननी। वयरसेन हस्तिनापुर नरेश शूरसेन का प्रबल पुण्यवान और पराक्रमी पुत्र। (देखिए-अमरसेन) (क) वरदत्त पद्मपुर नगर का राजकुमार जो पूर्वकृत कर्मों के कारण गंभीर रूप से जड़बुद्धि था। उसके पिता महाराज अजितसेन ने उसे आठ वर्ष की अवस्था में कलाचार्य के पास भेजा, पर एक वर्ष तक कठिन श्रम करके भी कलाचार्य वरदत्त को एक शब्द भी नहीं सिखा पाया। कलाचार्य ने महाराज अजितसेन को उनका पुत्र वरदत्त सौंप दिया और वस्तुस्थिति स्पष्ट की, राजन् ! पूर्वकृत कर्म के कारण राजकुमार का ज्ञानावरणीय कर्म अति प्रगाढ़ है, उस पर श्रम व्यर्थ है। कोई ज्ञानी मुनि ही ज्ञानावरणीय कर्म के उच्छेदन की उचित विधि बता सकते हैं, मैं असमर्थ हूँ। राजा अजितसेन बहुत चिन्तित हुआ। वह प्रतीक्षा करने लगा किसी ज्ञानी मुनि की। उधर वरदत्त युवा हो गया। पूर्वकृत कर्मों ने अपने खेल दिखाए और वरदत्त की देह में कुष्ठ रोग फूट पड़ा। राजा ने देश-विदेश ... 530 - - ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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