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________________ थे, पर दोनों ने ही एक-दूसरे के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। अन्ततः उन दोनों ने अपनी-अपनी सम्पत्ति को जनकल्याण में लगाने का निश्चय किया और वैसा ही किया भी। लक्ष्मीपुंज के समक्ष उपस्थित देवता ने कहा, मित्र ! पूर्वजन्म में तुम ही गुणधर श्रेष्ठी थे और मैं सूर नामक विद्याधर था। पूर्वजन्म में किए गए अदत्त त्याग और जनकल्याण के पुण्यों का ही यह फल है कि इस जन्म में तुम्हें अकूत सम्पत्ति और उत्कृष्ट भोगोपभोगों की अयत्न से ही प्राप्ति हो गई है। मैं व्यंतर देव बना हूं। चूंकि मैंने पूर्वभव में तुम्हे अपना गुरु स्वीकार किया था, फलतः अपने गुरु के दर्शनों के लिए मैं उपस्थित हुआ हूं। देव के मुख से अपना पूर्वभव सुनकर लक्ष्मीपुंज को जातिस्मरण ज्ञान हो गया। वह अपना पूर्वभव देखने लगा। उसका चिन्तन आत्मोन्मुखी बन गया। उसने सोचा, एक व्रत पालन का ही ऐसा महाफल है तो सर्वव्रत पालन का कितना बड़ा फल होगा? निश्चित ही सर्वव्रत पालन का फल मोक्ष होगा। इस चिन्तन के साथ ही लक्ष्मीपुंज ने सर्वव्रत पालन का दृढनिश्चय कर लिया। वह मुनि बन गया। सर्वविरति संयम का पालन कर वह बारहवें देवलोक में गया। वहां से च्यव कर वह एक भव मनुष्य का करेगा और चारित्र की आराधना द्वारा सर्व कर्म खपा कर मोक्ष में जाएगा। लक्ष्मीवती षष्ठम वासुदेव पुरुषपुण्डरीक की जननी। लच्छीनिवास श्रीपुर नगर के मंत्री का पुत्र। (देखिए-धनसागर) (क) ललितांग ___प्राचीन भारतवर्ष के श्रीबाल नामक नगर के राजा नरवाहन और उसकी रानी कमला का पुत्र, एक अतिशय रूप और गुण सम्पन्न राजकुमार । ललितांग कुमार समस्त कलाओं में पारंगत था। धर्म पर उसकी प्रगाढ़ आस्था थी। दीन-दुखियों के लिए वह कल्पवृक्ष के तुल्य था। दोनों हाथों से वह दीन-दुखियों को दान दिया करता था। ___सज्जन नामक एक युवक से ललितांग की प्रगाढ़ मैत्री थी। पर सज्जन नाम से ही सज्जन था, कर्म से दुर्जन था। ईर्ष्या, विश्वासघात आदि दुर्गुण उसके स्वभाव में कूट-कूट कर भरे थे। पर ललितांग उसे अपना मित्र मानता था और मित्र के दुर्गुण प्रायः दिखाई नहीं दिया करते हैं। एक बार राजकुमार ने एक लाख मूल्य का अपना गलहार भिखारी को दान में दे दिया तो सज्जन ने राजा से चुगली की कि महाराज राजकुमार को समझाया नहीं गया तो उसकी दानशीलता के परिणामस्वरूप शीघ्र ही राजकोष रिक्त हो जाएगा। राजा को सज्जन की बात तथ्यपरक लगी। उसने राजकुमार को अपने पास बुलाया और धन की महत्ता बताते हुए दान में उसके व्यय पर अंकुश लगाने के लिए कहा। राजकुमार ने पिता का आदेश शिरोधार्य कर लिया। परन्तु मेघगर्जन सुनकर जैसे मयूर बिना कूहके नहीं रह सकता वैसे ही जरूरतमंद को सामने पाकर दानी बिना दिए नहीं रह सकता है। एक अन्य प्रसंग पर राजकुमार ने दान दिया तो सज्जन ने फिर से राजा के कान भरे। नाराज होकर राजा ने ललितांग को अपने देश से निर्वासित कर दिया। ___ ललितांग पिता के आदेश को वरदान के रूप में स्वीकार करके प्रदेश के लिए चल दिया। सज्जन भी उसके साथ हो लिया। दूर जंगल में पहुंचकर दोनों एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। दुर्जन ने अधर्म की महिमा का ... 516 ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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