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________________ (च) रोहिणी (आर्या) रोहिणी आर्या का जन्म काम्पिल्यपुर नगर में हुआ। मृत्यु के पश्चात् वह शक्रेन्द्र महाराज की पट्टमहिषी के रूप में जन्मी। इनका शेष कथावृत्त काली आर्या के समान है। (देखिए-काली आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 9, अ. 5 रोहिणेय चोर राजगृह नगर के निकट ही स्थित वैभारगिरि पर्वत की कन्दराओं में रहने वाला एक चोर। चोरी करना उसका पुश्तैनी कार्य था। उसका पिता भी नामी चोर था। पिता ने मृत्यु के क्षण में रोहिणेय को अन्तिम सीख दी थी कि वह चाहे और कुछ भी करे पर महावीर नामक तीर्थंकर के न तो निकट जाए तथा न उसका एक भी वचन सुने। पिता की सीख को सदैव स्मरण रखता हुआ रोहिणेय उन स्थानों से सदैव दूर-दूर रहता था जिन स्थानों पर महावीर विराजते थे। पर एक बार उसे गुणशील उद्यान के निकट से गुजरना पड़ा। उद्यान में भगवान उपदेश दे रहे थे। महावीर का कोई शब्द कानों में न पड़ जाए इसलिए उसने दोनों कानों में अंगुलियां डाल लीं। संयोग से उसके पैर में कांटा चुभ गया। कांटा निकालना अनिवार्य था। उसने कांटा निकाला। उस समय महावीर के कुछ शब्द उसके कानों में पड़े। भगवान देवताओं की विशेषताओं का वर्णन कर रहे थे कि देवताओं की देह की प्रतिच्छाया नहीं बनती, उनके गलहार सदैव खिले रहते हैं, उनके पैर पृथ्वी से चार अंगुल ऊपर रहते हैं और वे पलक नहीं झपकते हैं। रोहिणेय इन शब्दों को भुला देना चाहता था पर उसने जितना भूलना चाहा उतनी ही प्रखरता से वे शब्द उसकी स्मृति पर अंकित हो गए। उन्हीं दिनों में रोहिणेय अभय के जाल में फंस गया। विभिन्न प्रकार से भय दिखाकर अभय ने रोहिणेय से उस द्वारा की गई चोरियां स्वीकृत करानी चाहीं पर उसने स्वीकार नहीं की। इसीलिए किसी प्रमाण के अभाव में उसे दण्ड नहीं दिया जा सका। आखिर अभय ने एक युक्ति निकाली। उसने रोहिणेय को मादक द्रव्य पिलाकर अचेत कर दिया। उसे एक ऐसे स्थान पर लिटा दिया गया जो देवलोक की अनुकृति मालूम होता था। जैसे ही रोहिणेय को होश आया तो उसने अपने को देवलोक में पाया। सामने खड़ी देवियों ने रोहिणेय का मधुर शब्दावलि में स्वागत करते हुए पूछा कि उन्होंने ऐसे क्या सत्कर्म किए कि उन्हें देवलोक में जन्म प्राप्त हुआ है? ___ अभय ने यह पूरा समायोजन इसलिए किया था कि इससे रोहिणेय स्पष्ट कह देगा कि उसने सत्कर्म नहीं, चोरी के धंधे ही किए हैं, जिसके आधार पर उसे दण्ड दिया जा सकेगा। पर कुछ कहने से पूर्व ही रोहिणेय को भगवान के वचन स्मरण हो आए। उसने देखा कि इन देवियों की तो पलकें भी झपक रही हैं, गलहार के पुष्प मुरझाए हुए हैं, देह की छाया बन रही है और पैर जमीन पर टिके हैं। उसे विश्वास हो गया कि यह अभय का फैलाया हुआ जाल है। वह सचेत हो गया और बोला कि उसने बहुत सत्कर्म किए हैं जिससे उसे देवलोक में जन्म मिला है। ___अभय का दांव असफल हो गया। उसने रोहिणेय को मुक्त कर दिया। मुक्त होकर रोहिणेय को भगवान के वचनों पर गहरी श्रद्धा हो गई। उसने सोचा कि अनिच्छा से सुने वचनों ने उसकी प्राण रक्षा कर दी। यदि भगवान के वचन श्रद्धा से सुने जाएं तो निःसंदेह कल्याण हो जाए। रोहिणेय ने चोरी किया हुआ समस्त धन राजकोष में जमा करा दिया और भगवान के पास जाकर दीक्षित हो गया। उसे सद्गति प्राप्त हुई। -व्यवहार सूत्र वृत्ति ...जैन चरित्र कोश... --509 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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