SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 549
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कालान्तर में प्रभु वासुपूज्य के शिष्य मुनि रूप्यकुंभ नागपुर पधारे। राजा-रानी सहित नगरजन मुनि श्री के दर्शन के लिए गए। मुनि का उपदेश सुनकर श्रोता धन्य बन गए। प्रवचनोपरान्त राजा ने मुनि से अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत की, महाराज ! मेरी रानी ने ऐसे कौन से पुण्य किए हैं जिनसे वह इस जीवन में सदा-सुखिया रही है, रोदन-दुख को जानती तक नहीं है? । मुनि ने रोहिणी के कई जन्मों की कथा सुनाई और अंत में स्पष्ट किया कि रोहिणी ने पूर्वजन्म में 'रोहिणी' नामक तप की आराधना की थी। उसी तप की आराधना के फलस्वरूप रोहिणी ने समस्त असातावेदनीय कर्मों को निर्मूल बना दिया। उसके पुण्य कर्म शेष हैं जिनका उपभोग कर वह मोक्ष जाएगी। रोहिणी को अपना पर्वभव सनकर जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसने श्रावक धर्म धारण कर लिया। राजा ने भी श्रावक के व्रत धारण किए। कालान्तर में रोहिणी ने प्रव्रज्या धारण कर मोक्ष पद प्राप्त किया। राजा अशोकचन्द्र भी दीक्षा धारण कर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। -रोहिणी-अशोकचन्द्र नृप कथा (कनक कुशल गणि-वि.सं.1656) (ग) रोहिणी सुदर्शन श्रेष्ठी और मनोरमा की आत्मजा जिसका विवाह बाल्यावस्था में ही कर दिया गया था, पर दुर्दैव वश रोहिणी युवावस्था में प्रवेश से पूर्व ही विधवा हो गई। पितृगृह में रहकर ही वह जीवन-यापन करने लगी। माता-पिता जिनानुयायी थे, वही संस्कार रोहिणी में भी थे। अन्य किसी तरह का दायित्व नहीं होने के कारण रोहिणी का अधिकांश समय साधु-साध्वियों के दर्शन, प्रवचन-श्रवण, ध्यान, सामायिक और स्वाध्याय में ही समर्पित बनता। रोहिणी धर्म और ध्यान में सदा संलग्न रहती। माता-पिता रोहिणी का पुनर्विवाह करना चाहते थे, पर रोहिणी उसके लिए तैयार नहीं हुई। उपाश्रय में साधु-साध्वियों की अनुपस्थिति में रोहिणी ही श्राविकाओं को स्वाध्याय कराती, शास्त्रवांचन करती। इससे रोहिणी का सम्मान सब ओर व्याप्त हो गया। पर उस सम्मान को रोहिणी स्थिर नहीं रख पाई। धर्मकथा कहते-कहते उसकी रुचि विकथाओं पर केन्द्रित बनने लगी। धीरे-धीरे उसने धर्मकथा को गौण और विकथा को प्रमुख मान लिया। उपाश्रय में विकथा-कथन पर रोहिणी को श्रावक-श्राविकाओं के प्रतिरोध को झेलना पड़ा। जो भी रोहिणी का विरोध करता, वह उसकी सार्वजनिक रूप से निन्दा करती। उसी क्रम में एक बार रोहिणी ने नगर-नरेश पर भी अंगुलि उठा दी। परिणामतः राजा ने उसे अपने नगर से निर्वासित कर दिया। रोहिणी विक्षिप्तावस्था में कई वर्षों तक यत्र-यत्र भटकती रही। उसके गृहीत समस्त व्रत खण्डित बन चुके थे। विकथा में रस का उसे अंतिम दुष्परिणाम नरक में जाकर भोगना पड़ा। -धर्मरत्न प्रकरण टीका, गाथा 20 (घ) रोहिणी राजगृही के समृद्ध सार्थवाह धन्ना की चार पुत्रवधुओं में सबसे छोटी और एक बुद्धिमति महिला। अपने बुद्धिबल से उसने श्वसुर प्रदत्त पांच अक्षत धानों को सहस्र गुणा बनाकर अपनी सुबुद्धि का परिचय दिया और गृहस्वामिनी का गौरव भी पाया। (देखिए-धन्ना सार्थवाह) - ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (ङ) रोहिणी (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (देखिए-कमला आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 21 .. 508 ... ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy