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________________ और जिनदेव को अपना अनन्य धर्मदेव माना है तो गोदावरी मेरे पति और उसके साथी सैनिकों को मार्ग दे दे। महासती के चमत्कार से गोदावरी ने नागदेव और उसके सैनिकों को मार्ग दे दिया। इस चमत्कारिक घटना से महासती अतिमब्बे की जय-जयकार हुई। घायल नागदेव ने पत्नी की गोद में जीवन यात्रा पूर्ण की। । महासती अतिमब्बे ने धर्म-ध्यान और दान-पुण्य में अपने जीवन को सफल बनाया। अतिमब्बे 11वीं सदी ई. की वीरांगना और धर्मशीला सन्नारी थी। अतिमुक्त कुमार पोलासपुर के महाराज विजय और उनकी रानी श्रीदेवी के अंगजात । बालक अतिमुक्त एक बार साथी बालकों के साथ उद्यान में खेल रहा था। उधर से गौतम स्वामी भिक्षा के लिए गुजर रहे थे। मुनि को देखकर अतिमुक्त खेल को भूल गया और दौड़कर मुनि के पास आया। उनका परिचय पूछा। पूरी बात जानकर उनकी अंगुली पकड़कर अपने महल में लाया। धर्मजहाज की अंगुली पकड़े अपने पुत्र को देख श्रीदेवी का रोम-रोम खिल गया। भिक्षा लेकर गौतम स्वामी लौटने लगे तो अतिमुक्त उनके साथ ही भगवान महावीर के पास गया। भगवान महावीर के दर्शन करके वह अति प्रसन्न हुआ। भगवान ने उसे उपदेश दिया, जिसे सुनकर वह मुनि बनने के लिए उत्सुक हो गया। घर आकर माता से अपनी इच्छा कही। नन्हे पुत्र के मुख से इतनी बड़ी इच्छा सुनकर श्री देवी खूब हँसी। आखिर उसे पुत्र के भावों की गहराई ज्ञात हो गई। माता-पिता के आग्रह पर अतिमुक्त एक दिन के लिए पोलासपुर का राजा बना। ___ अतिमुक्त मुनि बना। एकदा बालमुनि स्थविर मुनियों के साथ शौचार्थ जंगल में गया। कुछ समय पहले वर्षा हुई थी। पहाड़ियों से बहकर जल तलहटियों में जमा हो रहा था। बहते जल को देखकर बाल मन चंचल बन गया। उसने एक जगह पर पानी पर पाल बांध दी। जल संचित हो गया। उसमें अपनी पात्री को तैराकर अतिमुक्त गाने लगा - मेरी नाव तिरे - मेरी नाव तिरे। स्थविर मुनि शौच से लौटे। मुनि अतिमुक्त को जल में खेलते देखा। बाल मुनि को वहीं छोड़कर स्थविर मुनि भगवान के पास आए और भगवान से उसकी शिकायत की। भगवान ने कहा-मुनियो ! अतिमुक्त चरम शरीरी है। उसकी आशातना मत करो ! उसकी भक्ति करो ! ___ अतिमुक्त मुनि ने दीर्घकाल तक साधना की। गुणरत्नसंवत्सर आदि कठिन तप किए। अन्त में केवली बनकर विपुलगिरि पर संथारा करके मोक्ष प्राप्त किया। -अंतगडसूत्र, वर्ग 6 अतिमुक्त मुनि ___ मथुरानरेश उग्रसेन के पुत्र और कंस के सहोदर। कंस ने जब अपने पिता को पिंजरे में बन्दी बना दिया तो अतिमुक्त को बड़ा दुख हुआ। वे विरक्त बन गए। मुनि बनकर आत्मसाधना करने लगे। साधना से उन्हें अनायास ही अनेक सिद्धियां मिल गईं। देवकी-वसुदेव के विवाह के प्रसंग पर संयोगवश अतिमुक्त मुनि मथुरा आ गए। वे भिक्षा के लिए कंस के महल में गए। मदिरा में मत्त बनी कंस की रानी जीवयशा ने उनका मार्ग घेर लिया और अपने साथ नृत्य करने के लिए उन्हें बाध्य करने लगी। मुनि ने जीवयशा को विभिन्न विधियों - शब्दों से समझाकर मार्ग छोड़ने को कहा, पर वह नहीं मानी। तब मुनि के मुख से सहसा ही भविष्य प्रगट हो गया कि जिसके विवाह में तुम इतनी मत्त बनी हो, उसकी सातवीं संतान तुम्हारे पति का ... 14 ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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