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________________ तक प्रभु गृहवास में रहे। तदनन्तर वर्षीदान देकर मुनि बने। केवलज्ञान प्राप्त कर धर्मतीर्थ की स्थापना की। चौरासी लाख पूर्व की आयुष्य पूर्ण कर प्रभु मोक्ष जाएंगे। अजित सेन नन्दपुर नगर के सेठ रत्नाकर का पुत्र और महासती शीलवती का पति। (देखिए-शीलवती) अट्टणमल्ल उज्जयिनी नरेश जितशत्रु की मल्लशाला का प्रधान मल्ल और अपने समय का सुनामी पहलवान। पड़ोसी राज्य सोपारक में होने वाले वार्षिक मल्ल-महोत्सव में हमेशा ही अट्टणमल्ल विजयी होता। धन और प्रतिष्ठा पाता। इससे खीझ कर सोपारक नरेश सिंहगिरि ने एक युवक मच्छेरे को खिला-पिलाकर मल्ल विद्या में पारंगत बनाया और उसे मच्छियमल्ल नाम दिया। वार्षिक मल्ल युद्ध महोत्सव में मच्छियमल्ल ने अट्टणमल्ल को धूल चटा दी। तदनन्तर अट्टणमल्ल ने भी एक युवा और बलिष्ठ किसान को मल्ल विद्या में पारंगत बनाया और उसे फलिहमल्ल नाम दिया। आगामी वर्ष मच्छियमल्ल और फलिहमल्ल की सुबह से शाम तक कुश्ती चली पर जय-पराजय का निर्णय न हो सका। रात्रि में अट्टणमल्ल के पूछने पर फलिहमल्ल ने अपने शरीर के दर्द कर रहे भागों के बारे में बताया और लक्षपाक तैल की मालिश से अट्टणमल्ल ने उसे तन्दुरुस्त बना दिया। उधर मच्छियमल्ल से भी राजा ने वैसा ही प्रश्न किया जिस पर उसने अहंकारी स्वर में कहा कि उसे कहीं दर्द नहीं है। दूसरे दिन के मल्ल युद्ध में तरोताजा फलिहमल्ल ने मच्छियमल्ल को क्षण भर में ही परास्त कर दिया। (आलोचना-प्रतिक्रमणादि से साधक स्वस्थ / आत्मस्थ बन शीघ्र ही आत्मलक्ष्य को साध लेता है। जो शल्यों को छिपाता है, वह मंजिल से दूर ही रहता है।) -उत्त. टीका अणुल्लिया . यवपुर नगर के महाराज यव की पुत्री। (देखिए-यवराजर्षि) अतिभद्रा प्रभास गणधर की जननी। अतिमब्बे चालुक्य राजवंश के महादण्डनायक वीर नागदेव की धर्मप्राण धर्मपत्नी। वह एक तेजस्विनी महिला और पतिव्रता सन्नारी थी। जैन धर्म और जिन भगवान के प्रति उसके हृदय में दृढ़ अनुराग था। एक बार मालवराज परमार नरेश मुंज ने तैलपदेव के राज्य पर आक्रमण किया। नागदेव के नेतृत्व में चालुक्य सेना ने उसका प्रबल विरोध किया। परमार सेना को धकेलते हुए नागदेव उनके राज्य की सीमा के अन्दर तक ले गया। पर इस युद्ध में वह स्वयं बुरी तरह घायल हो गया। युद्ध जीतकर लौटते हुए चालुक्य सेना को एक विकट स्थिति का सामना करना पड़ा। गोदावरी नदी में भयंकर बाढ़ आ गई। नदी को पार करने के साधन मौजूद नहीं थे और सेनापति नागदेव गंभीर रूप से घायल था। नदी के दूसरे किनारे पर रहे हुए चालुक्य सैनिक और अधिकारी काफी चिन्तित थे। पति की घायलावस्था के समाचार को जानकर अतिमब्बे भी गोदावरी तट पर उपस्थित हुई। पति की अवस्था को वह देख न सकी। गोदावरी तट के निकट एक टीले पर चढ़कर उसने उच्च स्वर में कहा, यदि मैंने आजीवन पतिव्रत धर्म का पालन किया है ...जैन चरित्र कोश ... --- 13 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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