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________________ और मनस्वी पुरुष। भारत की समस्त धर्म परम्पराओं और संस्कृतियों में श्रीराम को भगवद्स्वरूप पुरुष स्वीकार किया गया है। वैदिक परम्परा में तो श्रीराम को परब्रह्म परमेश्वर के अवतार के रूप में प्रतिष्ठा दी गई है। जैन परम्परा में भी उन्हें पहले मानव और फिर महामानव (परमात्मा) का पद दिया गया है। श्रीराम एक आदर्श पुरुष थे। महाराज दशरथ की तीन अन्य रानियों-कैकेयी, सुमित्रा और सुप्रभा से जन्मे तीन पुत्र-भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न श्रीराम के अनुज थे। चारों भाइयों में परस्पर अनन्य अनुराग था। . यह अनुराग सदैव अखण्ड और अटूट रहा। अयोध्या के राज परिवार में बड़ी-बड़ी घटनाएं घटी, पर भाइयों के प्रेम में किंचित् मात्र भी मैल नहीं आया। एक बार जब दशरथ ने संयम लेकर आत्मकल्याण का संकल्प लिया तो भरत ने भी पित-अनुगमन का संकल्प कर लिया। इससे महारानी कैकेयी विचलित बन गई। वह पति और पुत्र का विरह एक साथ सहन नहीं कर सकती थी। दशरथ कुल परम्परा के अनुसार श्रीराम को राजपद देना चाहते थे। कैकेयी ने विचार किया कि यदि उसके बेटे को राजपद मिल जाएगा तो वह संयम नहीं लेगा। इस विचार से कैकेयी ने महाराज दशरथ के पास धरोहर रूप अपने वचन को भरत के राजतिलक के रूप में मांग लिया। महाराज दशरथ के लिए राम और भरत में भेद न था, सो उन्होंने भरत के राजतिलक की घोषणा कर दी। परन्तु भरत इस बात से सहमत नहीं हुए और बोले कि अग्रज राम के रहते भला मैं राजपद कैसे ले सकता हूं। श्रीराम ने गहन मनोमंथन करते हुए पिता के वचन की रक्षा के लिए आत्मनिर्वासन का निर्णय कर लिया। सीता और लक्ष्मण ने श्रीराम के साथ वन में जाने का संकल्प किया। तीनों वन में चले गए। इससे भरत बहुत दुखी हुए। कैकेयी को भी बहुत कष्ट हुआ। कैकेयी अपने पुत्र भरत के साथ राम को लौटाने के लिए वन में गई। पर श्रीराम ने पिता के वचन का वास्ता देकर लौटने से इंकार कर दिया। चौदह वर्षों के लिए विवश मन से भरत को शासन सूत्र संभालना पड़ा। ___ श्रीराम लक्ष्मण और सीता के साथ चौदह वर्षों तक वन में रहे। उस अवधि में अनेक घटनाएं घटीं। एक बार अनजाने में लक्ष्मण के हाथ से राक्षस कुल के साधनारत युवक शंबूक का वध हो गया। इससे शनैः-शनैः समस्त राक्षस जाति श्रीराम और लक्ष्मण को अपना शत्रु मानने लगी। विशाल राक्षस सेना ने श्रीराम और लक्ष्मण पर धावा बोल दिया, पर परम पराक्रमी राम और लक्ष्मण ने राक्षसों को पराजित कर दिया। शंबूक की माता सूर्पणखा अपने भाई लंका नरेश राक्षस वंशीय रावण के पास सहायता के लिए गई। रावण ने सूर्पणखा की बात में विशेष रुचि नहीं दिखाई। तब रावण की दुर्बलता को कुरेदते हुए सूर्पणखा ने राम की पत्नी सीता के अनिंद्य सौन्दर्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह नारीरत्न लंकेश के महलों की शोभा होनी चाहिए। इससे रावण सीताहरण के लिए तैयार हो गया और उसने तर्क यह दिया कि अपनी पत्नी को छुड़ाने के लिए राम जब उसके पास आएगा तो उसे और उसके भाई को शंबूक के वध का दण्ड दिया जाएगा। रावण ने साधु का वेश बनाकर उस समय सीता का हरण कर लिया जब राम और लक्ष्मण खर आदि राक्षसों के साथ युद्ध में उलझे हुए थे। युद्ध से लौटकर कुटिया में सीता को न पाकर राम और लक्ष्मण चिंतित और दुखित हुए। वन-वन घूमकर सीता को खोजने लगे। उसी दौरान सुग्रीव और हनुमान से श्रीराम की भेंट हुई। परस्पर मैत्री हुई। श्रीराम के प्रयास से सुग्रीव को उसका खोया हुआ राज्य मिल गया। फिर सुग्रीव और हनुमान के प्रयासों से यह पता लगाया गया कि सीता लंका में है। आखिर हनुमान माता सीता को खोजने में सफल हो गए। हनुमान ने रावण को समझाया कि वह ससम्मान माता सीता को श्रीराम को लौटा दे। पर शक्ति के मद में चूर रावण ने हनुमान की बात का उपहास उड़ाया। राम की शक्ति का परिचय देने के लिए हनुमान ने रावण के पुत्र का वध कर दिया और लंका में आग लगा दी। तदनन्तर सकुशल श्रीराम के पास लौट आए। ... 490 .. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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