SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 530
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजसिंह राजसेन सुसीमापुरी नरेश और पन्द्रहवें विहरमान तीर्थंकर श्री ईश्वर स्वामी के जनक । (देखिए - ईश्वर स्वामी) राजसेना पुण्डरीकिणी नगरी के राजकुमार वीरसेन (विहरमान तीर्थंकर) की परिणीता । (देखिए - वीरसेन स्वामी) राजी (आर्या ) प्राचीनकालीन एक राजा । (देखिए - पुरुषसिंह वासुदेव) प्रभु पार्श्वकालीन आमलकल्पा नामक नगरी में राजी नामक एक गाथापति रहता था। उसकी पत्नी का नाम राजश्री और पुत्री का नाम राजी था । कुमारी राजी ने प्रभु पार्श्व का धर्मोपदेश सुनकर प्रव्रज्या धारण की। शैनः शनै राजी आर्या शरीर बकुशा बन गई और आलोचना के बिना ही देह त्याग कर चमरेंद्र की पट्टमहिषी के रूप में जन्मी । वहां से आयुष्य पूर्ण कर वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगी और निरतिचार संयम की आराधना द्वारा सर्व कर्म खपा कर सिद्ध होगी। इनका विस्तृत परिचय काली आर्या के समान है। (देखिए -काली आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग, द्वि.श्रु., प्र. वर्ग, अध्ययन 2 राजीमती अपर नाम राजुल । सोलह सतियों में से एक। महाराज उग्रसेन की पुत्री तथा कृष्ण वासुदेव की रानी सत्यभामा की भगिनी । भगवान श्री अरिष्टनेमि की अपरिणीता। जैन पुराणों के अनुसार राजीमती और अरिष्टनेमि पिछले आठ भवों से पति-पत्नी रूप में रहते आए थे। वर्तमान भव में भी राजीमती ने पति की अनुगामिनी बनकर अपने प्रेम को अनन्त के लिए अमर कर दिया। वह साध्वी बनकर साध्वी संघ की प्रवर्तिनी बनी । राजीमती के जीवन की एक घटना अत्यन्त विश्रुत है । किसी समय भगवान अरिष्टनेमि गिरनार पर्वत पर विराजमान थे। साध्वी राजीमती साध्वी समुदाय के साथ भगवान के दर्शन करने जा रही थी । मध्य मार्ग आंधी और बरसात आ गई। सभी साध्वियां यहां-वहां हो गईं। राजीमती ने एक पर्वत गुफा में शरण ली। उसने आर्द्र वस्त्र उतारकर सूखने के लिए फैला दिए । संयोग से उसी गुफा में रथनेमि ध्यान साधना कर रहे थे। बादलों में विद्युत् चमकी। अंधेरी गुफा प्रकाश से भर गई । क्षणिक प्रकाश रेखा में रथनेमि और राजीमती ने एक-दूसरे को देखा। राजीमती लज्जा और संकोच से भर गई। उसने देह पर वस्त्र लपेटे । पर रथनेमि का मन संयम रूपी गृह से बाहर भटक गया। उसने राजीमती से भोग प्रार्थना की और पुनः गृहस्थ में लौटने की बात कही। राजीमती रथनेमि के कुत्सित विचार सुनकर सिंहनी की तरह दहाड़ उठी । उसने विभिन्न कठोर-मृदु शब्दों से रथनेमि को पुनः संयम में सुस्थिर बना दिया । राजीमती ने विशुद्ध संयमाराधना द्वारा कैवल्य साधकर भगवान अरिष्टनेमि से चौवन दिन पहले सिद्धत्व प्राप्त किया । 'राज्यपाल बीसवें विहरमान तीर्थंकर अजितवीर्य स्वामी के जनक । (देखिए - अजितवीर्य स्वामी) राम (बलदेव) अयोध्यापति सूर्यवंशी महाराज दशरथ के नन्दन, कौशल्या के अंगज, मर्यादापुरुषोत्तम, तपस्वी, यशस्वी ••• जैन चरित्र कोश 489 444
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy